बहुभाषी रहे भारत
हिन्दी दिवस के एक दिन पहले से सोशल मीडिया पर जो माहौल इस भाषा की ऐतिहासिक यशस्विता से भरा था, वह अगले दिन देश के गृहमंत्री के भाषण और टिप्पणी के बाद हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान के खतरनाक विमर्श में बदल गया।
बहुभाषी रहे भारत |
यह मुद्दा तकरीबन इसी रोशनी में देखा-समझा जा रहा है। अमित शाह ने कहा कि अनेक बोलियां और भाषाएं ़देश की सबसे बड़ी ताकत हैं। परंतु ज़रूरत है कि देश की एक भाषा हो, जिसके कारण विदेशी भाषाओं को जगह न मिले। उन्होंने हिन्दी दिवस पर हिन्दी के माध्यम से पूरे देश को जोड़ने की भी अपील की। यह भी कहा कि हम अपनी-अपनी मातृभाषा के प्रयोग को बढाएं।
साथ में, हिन्दी का भी प्रयोग कर देश की एक भाषा के महात्मा गांधी और सरदार पटेल के स्वप्न को साकार करने में योगदान दें। टाइमिंग के लिहाज से यह उन प्रदेशों में विधानसभा चुनावों से पहले दिया गया एक सुविचारित वक्तव्य है, जहां हिन्दी का भाषिक प्रभुत्व है। यही वजह है कि शाह के बयान पर राजनीतिक विरोध तेज हो गया। प.बंगाल से लेकर आंध्र, तेलंगाना और तमिलनाडु से हिन्दी के नाम पर भाजपा के राष्ट्रवादी एजेंडे पर आक्रमण शुरू हो गया।
इसमें यह साफ दिखा कि कश्मीर के बाद हिन्दी एक ऐसा मुद्दा बनने जा रही है, जिसमें नरेन्द्र मोदी सरकार देश की अखंडता और एकसूत्रता के नाम पर हिन्दुत्ववादी कार्ड खुलकर खेलने की मंशा रखती है। अनुच्छेद 370 को हटाने के पहले से एनआरसी के नाम पर उत्तर-पूर्वी राज्यों में जिस तरह की हिंसक राजनीतिक-सामाजिक हलचल है, उसे देखते हुए लगता है कि हम एक ऐसे दौर में आ गए हैं, जब देश को राजनीतिक तौर पर जकड़ने की सोच हमारे चारों तरफ हावी है। गृहमंत्री ने अपने वक्तव्य में गांधी का स्मरण किया है।
पर क्या देश अपने राष्ट्रपिता के सपनों में रंग भरते हुए उनकी विकेंद्रीकरण की उस बुनियादी अवधारणा को भूल जाएगा, जिसके आधार पर उन्होंने विविधता का सम्मान करते हुए लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने की बात कही थी? हिन्दी अपनी बनावट में ही समन्वयी रही है, तमाम बोलियों और भाषाओं ने मिलकर इसे समृद्ध किया है। लिहाजा, हिन्दी की समृद्धि विकास के नाम पर देश को एक रंग में रंगना सही नहीं होगा। यह भी कि सियासी हिमाकतों की हद अगर देश के सांस्कृतिक रचाव को नुकसान पहुंचाने तक जाएगी तो यह अपूरणीय क्षति होगी।
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