पाकिस्तान को नसीहत
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने टेलीफोन पर नरेन्द्र मोदी को उनकी अभूतपूर्व विजय पर बधाई और शुभकामना देने के साथ ही दक्षिण एशिया में शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए साथ मिलकर काम करने की सद्इच्छा जाहिर की है।
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उन्होंने जो सद्भावना और सद्इच्छा प्रकट की है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। भारत की भी हमेशा से यही कोशिश रही है कि दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच मधुर संबंध कायम रहे, लेकिन पाकिस्तान जब तक सीमापार आतंकवाद पर प्रभावी लगाम नहीं लगाएगा तब तक दोनों के बीच न तो दोस्ताना संबंध कायम हो सकते हैं, और न द्विपक्षीय वार्ता ही बहाल हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी का रुख स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में शांति, प्रगति एवं समृद्धि के लिए पहले हिंसा मुक्त और आतंकवाद मुक्त वातावरण जरूरी है। इसलिए अगर पाकिस्तान सचमुच दक्षिण एशिया में शांति और प्रगति चाहता है, तो कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं पर पर्दा डालने की बजाय उसे उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी होगी। पाकिस्तान को समझना होगा कि सीमापार से की गई किसी भी आतंकवादी कार्रवाई के विरुद्ध मोदी के नये भारत की ओर से तीखी प्रतिक्रिया झेलनी होगी। अगर पाकिस्तान यह समझता है कि आतंकवाद और उग्रवाद पर कश्मीर की चादर ओढ़ाता रहे और भारत के साथ बातचीत भी होती रहे तो यह संभव नहीं है।
पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए भी आवश्यक है कि वह चाहे अपने देश की या फिर कश्मीर की आतंकवादी घटनाओं के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे। वह ऐसा नहीं करता है तो भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता का कोई मतलब नहीं होगा। गौरतलब है कि गत चौदह फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है। भारत ने छब्बीस फरवरी को पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के अड्डों पर एयर स्ट्राइक करके पुलवामा हमले का जवाब दिया था। दरअसल, पाकिस्तान एक व्यवस्थित देश नहीं रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी समस्या है कि कोई नहीं जानता कि देश कौन चला रहा है, और हमें किससे बात करनी चाहिए। यह सच है। सेना और आईएसआई के आगे निर्वाचित सरकार के मुखिया की एक नहीं चलती। दोनों देशों के बीच संवाद होना चाहिए लेकिन शर्त यही है कि पाकिस्तान आतंकवाद के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करे।
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