जातिगत आधारित जनगणना पर रोक से बिहार के नेताओं की बुद्धि और विवेक पर सवाल!

Last Updated 05 May 2023 01:34:17 PM IST

बिहार में जातिगत आधारित जनगणना पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट के आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं हो सकती है, लेकिन इस आदेश के बाद बिहार के सभी नेताओं की बुध्दि और विवेक पर सवाल जरूर उठ गए हैं। जातिगत आधरित जनगणना के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के दौरान जिन बिंदुओं को अदालत ने पकड़ा है, वह मामूली नहीं हैं।


bihar c m nitish kumar

 याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि  जातिगत आधारित जनगणना से लोगों का वैधानिक और संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है। उनकी निजता का हनन होता है। साथ ही साथ कहा गया है कि जातिगत आधारित जनगणना कराने का अधिकार राज्य की सरकारों को है ही नहीं।

याचिकाकर्ता ने जिन बातों को उठाया है वो इतने कठिन नहीं है, जिसको समझा ना जा सके। बिहार में जातिगत आधारित जनगणना कराने को लेकर सभी पार्टियों की राय एक थी।उसमें भाजपा ,जदयू और राष्ट्रीय जनता दल  भी शामिल थी। 18 फ़रवरी 2019 और 27 फ़रवरी 2020 को विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित हुआ था। जिसका सबने समर्थन किया था। उस समय बिहार में एनडीए की सरकार थी। मतलब भाजपा के समर्थन से जदयू के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे। राजद नेता तेजस्वी यादव ने जातिगत आधारित जनगणना की बात उठाई थी।  जिसका सभी पार्टियों ने समर्थन किया था। बिहार में जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर बिहार का एक प्रतिनिधि मंडल प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिला था।

बिहार में जातिगत आधारित जनगणना की शुरुवात 7 जनवरी 2022 से हो गई थी। लेकिन इसकी अधिसूचना 6 जून 2022 को ही जारी हो गई थी। इसका पहला चरण 31 जनवरी को समाप्त हो गया था। दूसरे चरण की शुरुवात हो चुकी थी। 31 मई को दुसरा चरण भी समाप्त होने वाला था।  यानी जनगणना का काम लगभग 80 प्रतिशत पूरा हो चुका था। बिहार जैसे गरीब राज्य ने जनगणना के लिए 500 करोड़ रूपये का बजट बनाया था। राज्य के सभी 38 जिलों में जनगणना चल रही थी। इस काम में बिहार सरकार ने लाखों कर्मचारी लगाए थे। अब इस पर रोक  लग गई है। बिहार की ही तरह ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी अपने राज्य में अन्य पिछड़ी जातियों का सर्वे शुरू करवा दिया था। यानि बिहार के बाद ओडिसा देश का दुसरा ऐसा राज्य था जहाँ ओबीसी का सर्वे हो रहा था। बिहार में रोक लगने के बाद संभव है कि  ओडिसा में भी यह काम रुक जाए।

जनगणना पर रोक लगना शायद, उतनी बड़ी बात भले ना हो, बिहार सरकार ने इस काम पर 500 करोड़ रुपए खर्च किए, शायद यह भी उतनी बड़ी बात ना हो। बड़ी बात यह है कि बिहार के सभी नेता ,चाहें वो भाजपा के हों ,जदयू के हों  या राष्ट्रीय जनता दल के। सबके सब कितने अनजान हैं। सबके सब कितने अज्ञानी हैं। सभी नेता जनगणना से जुडी बुनयादी बातों को भी नहीं जानते थे। वह यह भी नही जानते थे कि जनगणना करवाना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जैसा की याचिकर्ता की बात पर हाई कोर्ट ने भी माना है।

अभी हाई कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से जनगणना पर रोक लगाईं है। 3 जुलाई को इस पर फिर सुनवाई होगी, उस समय तय होगा कि जनगणना करवाना सही है की गलत। नीतिश कुमार और तेजस्वी यादव को झटका जरूर लगा है। हाई कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीधे तौर पर किसी को आरोपित तो नहीं किया है, लेकिन उन्होंने इशारो- इशारों में यह जरूर कह दिया है कि ना जाने जनगणना करवाने से किसको दिक्क्त हो रही है, और क्यों हो रही है। हालांकि उनका इशारा सीधा-सीधा भाजपा की ओर है।

 उधर जातिगत जनगणना की वकालत करने वाली पार्टी भाजपा के नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तारकेश्वर प्रसाद अब ज्ञान दे रहे हैं। वो कह रहे हैं कि सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष ठीक से नहीं रखा ,अब ऐसे में कोई तारकेश्वर प्रसाद से यह पूछे कि आप और आपकी पार्टी भी तो इसके पक्ष में थी, फिर आपने ही कुछ क्यों नहीं किया। राजनीति करनी चाहिए, लेकिन ऐसी भी नहीं करनी चाहिए जिसे देखकर या सुनकर लोग आपका मजाक उड़ाएं। बहरहाल आज बिहार के सभी नेताओं के विवेक और बुद्धि पर सवाल उठ रहे होंगे।  बौद्धिक,सांस्कृतिक ,सामाजिक साहित्यिक धार्मिक सौहार्द रूप से मजबूत बिहार के नेता ऐसा अविवेकपूर्ण निर्णय लेंगे, शायद ही किसी ने कल्पना की होगी।
 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment