बाहुबली आनंद मोहन पर CM नीतीश का 'दांव', महागठबंधन को होगा फायदा या लगेगा झटका!
बिहार की नीतीश सरकार ने बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकालने के लिए नियमों में बदलाव करके बड़ा सियासी दांव खेला है।
![]() |
बिहार के राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आनंद मोहन की रिहाई से महागठबंधन को 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदा होने की उम्मीद है। राजपूत समाज को महागठबंधन के पक्ष में करने के लिए आनंद मोहन की रिहाई का दांव चला गया है।
जेडीयू और आरजेडी सवर्ण जातियों तक पहुंच बनाकर अपने वोटर बेस को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। आनंद मोहन सिंह के जरिए दोनों पार्टियां अगड़ी जाति वोट बैंक और राजपूत वोट बैंक तक पहुंचना चाहती हैं।
कभी नीतीश कुमार ने ही बाहुबली आनंद कुमार को सलाखों के पीछे भेजा था और नीतीश ही उन्हें निकालने कि लिए नियमों में बदलाव कर रहे हैं। आनंद मोहन कभी जेल से बाहर ना आ सके इसके लिए ही नीतीश ने ही कड़े कानून बनाए थे। जो अब बदल दिए गए हैं।
अपनी सोची समझी रणनीति के तहत नीतीश सरकार बिहार की कुछ विधानसभा सीटों पर नजर गड़ाए हुए है, जहां उन्हें आनंद मोहन की रिहाई से फायदा मिल सकता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि आनंद मोहन की रिहाई से जेडीयू अपर कास्ट वोटर और राजपूत वोटर को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।
वहीं जेडीयू और आरजेडी को इस बात की ओर खास ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं अपर कास्ट वोट बैंक को रिझाने के चक्कर में उनका पारंपरिक पिछडी, दलित, मुस्लिम वोट बैंक उनसे छिटक न जाए।
गौरतलब है कि 90 के दशक में आनंद मोहन की पहचान राजपूत और सवर्णों की राजनीति से बनी थी। बिहार में एक बड़े राजपूत दबंग नेता के रूप में पहचाने जाने थे। 15 साल के बाद आनंद मोहन की जेल से रिहाई कराई गई है तो उनके जरिए महागठबंधन अगड़ों खासकर राजपूत वोटों का समर्थन हासिल करने की रणनीति है।
साल 1994 को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या में आनंद मोहन को 2007 में कोर्ट ने उन्हें सजाए मौत की सजा सुनाई थी।बाद में यह सजा आजीवन कारावास में बदल गई थी। 15 सालों तक सजा काटने के बाद आनंद मोहन अब नीतीश सरकार के एक फैसले से रिहा हो गए हैं, जिसके बाद सियासत तेज हो गई है।
प्रदेश में राजपूत समाज की 6 फीसदी से ज्यादा आबादी है। बिहार में कई सीटों पर हार-जीत का सवर्णों के वोट पर ही टिका होता है। बीजेपी से अलग होने के बाद नीतीश की नजर 2024 में होने वाले चुनाव पर है। नीतीश कुमार लगातार विपक्षी दलों से मुलाकात कर महागठबंधन को मजबूत करने में लगे हुए हैं।
2024 की लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की नजर पीएम पद पर भी है। जिसके मद्देनजर वो कोई भी मौका चूकना नही चाह रहे।
पर दूसरे नजरिये से देखे तो उनका ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है। आनंद मोहन सिंह को जिस डीएम की हत्या के लिए सजा हुई थी, वह दलित समाज से थे। ऐसे में दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं में मायावती और चिराग पासवान ने इस फैसले का विरोध किया है। प्रदेश में दलितों की आबादी तकरीबन 18 फीसदी है और इसमें यदि पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्ग मिला दिया जाए तो यह आंकड़ा करीब 55 फीसदी पहुंच जाता है। ऐसे में अगर पिछड़ी जाति पर इसका गलत संदेश चला गया तो नीतीश का ये दाव उल्टा पड़ सकता है।
इससे पहले गोपालगंज और मोकामा सीट पर हुए उपचुनाव के वक्त भी नीतीश सरकार ने आनंद मोहन को पैरोल पर बाहर निकाला था। यह माना जा रहा था कि उनके बाहर आने से उपचुनाव में महागठबंधन को फायदा मिलेगा। पर बता दें कि ऐसा हो नहीं सका था। आनंद मोहन के गढ़ गोपालगंज में बीजेपी प्रत्याशी की जीत हुई थी।
आनंद मोहन के दौर में बिहार में जाति की लड़ाई चरम पर थी। अपनी-अपनी जातियों के लिए राजनेता भी खुलकर बोलते थे। तब आनंद मोहन पर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हुए। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या बाहुबली का दौर वापस आने वाला है? क्या दहशत का वो दौर लौट आऐगा?
| Tweet![]() |