नक्सली क्षेत्र : बदलाव की आहट
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में 11 सितम्बर को सुरक्षा बलों द्वारा किए गए ऑपरेशन में बड़े पैमाने पर सफलता हासिल हुई है, जिसमें सीसी सदस्य मनोज उर्फ बालकृष्ण सहित दस दुर्दात नक्सली मारे गए।
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यह मुठभेड़ शोभा और मैनपुर थाना क्षेत्र के जंगलों में हुई जिसमें एक करोड़ के इनामी तेलंगाना के वारंगल निवासी 58 वर्षीय मोडेम बालकृष्ण के मारे जाने की पुष्टि स्वयं एसपी निखिल राखेचा ने की। नक्सलियों के खिलाफ इस बड़ी कार्रवाई के महत्त्व को समझने के लिए हालिया महीनों में छत्तीसगढ़ और देश भर में नक्सलियों के खिलाफ हुए अभियानों की समीक्षा जरूरी है।
मई माह में नारायणपुर-अबूझमाड़ क्षेत्र में लगभग पचास घंटे चले ऑपरेशन में सुरक्षा बलों ने डेढ़ करोड़ के इनामी और माओवादियों के महासचिव नंबाला केशव उर्फ बसवराजू को मार गिराया था। उसकी मौत के बाद नक्सलियों ने लगभग छह करोड़ के इनामी देवजी उर्फ संजीव उर्फ पल्लव को संगठन का नया महासचिव नियुक्त किया जबकि दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सचिव पद की जिम्मेदारी भीषण माओवादी कमांडर माडवी हिडमा को दी गई। देवजी, जो करीमनगर (तेलंगाना) के दलित परिवार में जन्मा, बीते साढ़े तीन दशकों से नक्सलवाद से जुड़ा है। उस पर देश के विभिन्न राज्यों में छह करोड़ रु पये से अधिक का इनाम घोषित है। इसी प्रकार माडवी हिडमा, बस्तर के बीजापुर जिले के पुवर्ती गांव का निवासी, नक्सलियों की रणनीति और बड़े हमलों के लिए कुख्यात है।
बीते डेढ़ वर्ष में छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने 453 नक्सलियों को मार गिराया है जबकि 1602 ने आत्मसमर्पण किया और 1591 को गिरफ्तार किया गया। औसतन रोजाना छह नक्सलियों को पकड़ा जा रहा है, और एक से ज्यादा को मुठभेड़ में मार गिराया जाता है। गृह मंत्रालय के अनुसार, 2024 में देश भर में सुरक्षा बलों ने 290 नक्सलियों को मार गिराया, 1090 को गिरफ्तार किया, और 881 ने आत्मसमर्पण किया। 2025 के पहले चार महीनों में ही 148 माओवादी ढेर हुए, 104 की गिरफ्तारी हुई और 164 ने आत्मसमर्पण किया। अकेले बस्तर क्षेत्र में अनेक बड़े ऑपरेशन हुए हैं, जिनमें 29 नक्सलियों को कांकेर जिले (16 अप्रैल 2024) में, 31 को बीजापुर जिले (9 फरवरी 2025) में मारा गया।
सुरक्षा अभियानों की आक्रामक रणनीति के चलते नक्सली संगठनों की रीढ़ टूट रही है, और उनका जनसमर्थन तेजी से कमजोर पड़ रहा है। आंकड़ों की गणना करें तो पिछले एक वर्ष में देश भर में सुरक्षा अभियानों के दौरान कुल 357 नक्सलियों की मृत्यु हुई जिनमें 136 महिला नक्सली, चार केंद्रीय कमेटी सदस्य और 15 राज्य कमेटी के वरिष्ठ सदस्य शामिल हैं। दंडकारण्य क्षेत्र में ही 281 नक्सली मारे गए। छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों की जमीनी हकीकत यह है कि अब माओवादी सीमित क्षेत्रों में छिपे हैं जबकि पहले देश के 38 जिले पूरी तरह नक्सल प्रभावित थे, अब यह संख्या घट कर छह जिलों तक सीमित रह गई है।
केंद्र सरकार का उद्देश्य मार्च, 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद से पूर्णतया मुक्त करना है। इसके लिए दोहरी नीति अपनाई जा रही है-सख्त सुरक्षा कार्रवाई और बहुआयामी विकास योजनाएं। छत्तीसगढ़ में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए देश की सबसे बेहतर पुनर्वास नीति लागू की गई है, तीन साल तक प्रति माह दस हजार रुपये प्रोत्साहन राशि, कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार, नकद इनाम, कृषि या शहरी भूमि का आवंटन। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्पष्ट किया है कि अब बंदूक की जगह किताबों का स्थान है, और सड़कों की गूंज सुनाई दे रही है। ‘नियद नेल्ला नार’ योजना के तहत बस्तर के दूरदराज गांवों में सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्ड, किसान क्रेडिट, प्रधानमंत्री आवास, मोबाइल टावर, वन अधिकार पट्टों जैसी सुविधाएं सुलभ कराई जा रही हैं। अधिकारियों के मुताबिक, अबूझमाड़ के रेकावाया गांव में पहली बार स्कूल खुल रहा है, जहां कभी नक्सली स्वयं स्कूल चलाते थे। बंद पड़े करीब पचास स्कूल दोबारा चालू किए गए हैं, नये भवन तैयार हो रहे हैं, और शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधाएं सुदूर इलाकों में पहुंच रही हैं। इसी तरह, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ग्राम पंचायत स्तर तक योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं, स्कूल, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य शिविर सक्रिय किए गए हैं।
नक्सलवाद का विश्लेषण किया जाए तो बीते छह दशकों में उसने भारत के लोकतंत्र को बार-बार चुनौती दी है। 2004-14 के बीच तेरह हजार से अधिक हिंसक घटनाएं, सैकड़ों सुरक्षाकर्मिंयों तथा नागरिकों की मृत्यु हुई लेकिन 2014 से 2024 के बीच इन घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आई है। हिंसक घटनाएं घटकर लगभग आधी रह गई हैं, सुरक्षाकर्मिंयों की मौतें 73 प्रतिशत और नागरिकों की मौतें 70 प्रतिशत कम हुई हैं। हालांकि नक्सलियों की विचारधारा लोकतंत्र, संविधान और न्यायपालिका को अस्वीकार करती है, वे हिंसा को जनता की आवाज बता कर खुद को वैध ठहराने की कोशिश करते हैं। ऐसे में सुरक्षा बलों, सरकार और समाज तीनों की जिम्मेदारी और मुस्तैदी बढ़ जाती है। नक्सल समर्थक शहरी नेटवर्क, एनजीओ, वकीलों, शिक्षकों आदि पर भी सरकार कठोर कार्रवाई कर रही है। शहरी नेटवर्क को खत्म करने और वैचारिक आतंकी ढांचे को धराशायी करने के लिए पुलिस, सुरक्षा बल और सरकार द्वारा संयुक्त रूप से अभियान जारी हैं।
स्पष्ट है कि राष्ट्र अब नक्सलवाद के अंतिम दौर की ओर है। विकास और सुरक्षा की समन्वित नीति, लगातार अभियानों, पुनर्वास योजनाओं और जनता की सोच में बदलाव ने नक्सली नेतृत्व, कैडर और संरचना को लगातार कमजोर किया है। यदि यही गति बनी रही तो मार्च, 2026 तक भारत को पूरी तरह नक्सल मुक्त घोषित करना संभव हो जाएगा। इस खूनी विचारधारा से देश को मुक्ति दिलाना ही लोकतंत्र की सच्ची विजय है, वह लोकतंत्र, जिसने दशकों तक हिंसा, विद्रोह और आतंक से जूझते हुए आज विकास, शिक्षा और स्थायी शांति की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाया है।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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