मणिपुर : शांति की पहल कितनी कारगर

Last Updated 13 Sep 2025 02:11:15 PM IST

फरवरी, 2023 में मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच दंगों की शुरु आत हुई थी। अब जाकर यहां स्थायी शांति की दिशा में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से कुकी समुदायों के संगठनों के बीच समझौते पर सहमति बन पाई है।


मणिपुर : शांति की पहल कितनी कारगर

कुकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (केएनओ) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) ने एक साल के लिए सभी ऑपरेशन निलंबित करने का फैसला लिया है। इससे राज्य में शांति की उम्मीद जगी है। 

इससे पहले मणिपुर में खूनी संघर्ष के चलते संबंधित पक्ष अपनी शत्रे मनवाने पर अडिग थे। लेकिन अब कुकी-जो के दोनों प्रमुख संगठनों और केंद्र व राज्य सरकार के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हो गए हैं। बावजूद कहना मुश्किल है कि स्थायी शांति बनी रहेगी? कुकी गुटों ने मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने पर सहमति जताई है, जो मैतेई समुदाय की प्रमुख मांग थी। वरना इसके पहले कुकी संगठन अलग पहाड़ी राज्य की मांग कर रहे थे। यह चुनौती बड़ी थी, जिसे स्वीकारा जाना कठिन था।

उम्मीद है कि टकराव और हिंसक संघर्ष की स्थिति समाप्त होगी। हालांकि इस समझौते के सामानांतर मणिपुर में नगाओं की संस्था ने मुक्त आवागमन के साथ भारत-म्यामार सीमा पर बाड़बंदी का विरोध करते हुए कारोबारी प्रतिबंध की घोषणा कर दी है। इस वक्तव्य के बाद कुकी-जो परिषद ने कहा है कि समझौते को मैतेई बस्तियों और कुकी-जो के क्षेत्रों के बीच के बफरजोन में किसी तरह की आवाजाही के रूप में नहीं समझा जाए। अब लोगों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करना सरकार का काम है। 13 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मिजोरम पहुंच रहे हैं। उम्मीद है कि उसके एक दिन पहले मोदी मणिपुर जा सकते हैं। प्रधानमंत्री यकीनन दोनों समुदायों को साधने की कोशिश करेंगे। मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद उनका यह पहला दौरा होगा। विपक्ष प्रधानमंत्री के मणिपुर नहीं जाने पर तल्ख टिप्पणी करता रहा है। 13 फरवरी, 2025 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। उसके बाद से गृह मंत्रालय के साथ केएनओ और यूपीएफ के प्रतिनिधियों से बातचीत चल रही थी। फलत: सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओएस) त्रिपक्षीय समझौता संभव हुआ। समझौता एक साल के लिए लागू रहेगा। 

याद रहे कि कुकी गुटों के साथ 2008 में ही एसओएस पर समझौता हुआ था, जिसे हर साल बढ़ाया जाता था। लेकिन हिंसा के चलते 2024 में इसे बढ़ाया नहीं गया और अब नई शतरे के साथ एसओएस पर समझौता हुआ है। समझौते के तहत मैतेई समुदाय की प्रमुख आपत्तियों के सामाधान भी तलाशे गए हैं। इसके तहत कुकी गुटों को अपने शिविर ऐसे स्थलों से हटाने होंगे जो मैतेई समुदाय से सटे हुए हैं। दरअसल, मैतेई समुदाय आरोप लगाता रहा है कि कुकी अपने शिविरों से मैतेइयों पर हमले करते रहते हैं। इन गुटों को यह भी सत्यापित करना होगा कि उनके गुटों में कोई विदेशी नागरिक तो शामिल नहीं है। इन गुटों के पास जो भी मारक हथियार हैं, उन्हें बीएसएफ और सीआरआरपीएफ के नजदीकी शिविरों में जमा करना होगा। इन शतरे पर पालन के लिए संयुक्त निगरानी समिति बनाई जाएगी।       

फरवरी, 2023 में राज्य सरकार ने पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों से अवैध प्रवासियों को बाहर करने की शुरुआत की थी। इन क्षेत्रों की नगा और कुकी समुदाय की 34 जातियां, जनजाति की श्रेणी में अधिसूचित हैं। अतएव इनके लिए चिन्हित भूभाग पर किसी गैर-जनजातीय समुदाय के लोग काबिज नहीं हो सकते हैं। विडंबना रही कि जिन लोगों को प्रवासी बता कर विस्थापन का सिलसिला शुरू हुआ तो उन्हें इस इलाके के मूल निवासी कुकी समुदाय ने अपना बताया। किंतु सरकार ने इस तथ्य पर ध्यान न देते हुए कुकियों की बेदखली का सिलसिला तो बनाए ही रखा, साथ ही मैतेई समुदाय को जब जनजाति का दर्जा मिल गया, तब उन्हें बलपूर्वक नगा और कुकी समुदाय के लोगों को आरक्षित भूखंडों पर भी काबिज होने से नहीं रोका। विवाद की असली जड़ यही विरोधाभास है।  

यह जातीय हिंसा इस हद तक भड़की कि अनेक निर्दोष महिलाओं पर बर्बर अत्याचार के साथ जघन्य रेप के मामले भी सामने आते रहे। करीब 250 लोग इस हिंसा में अपने प्राण गंवा चुके हैं। ज्यादातर मैतेई हिन्दू होने के साथ वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हैं। इनमें से कुछ मतांतरित मुसलमान भी हैं जबकि नगा और कुकियों में से 90 फीसद धर्मातरित ईसाई हैं। इस लिहाज से विवाद धार्मिंक रंग में बदल कर हिंसक हो गया था। इसे धार्मिंक रंग देने में ड्रग माफिया ने भी आग में घी डालने का काम किया। समूचे पूर्वोत्तर भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यातित नशे का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। यहां प्रत्येक माह हेरोइन बड़ी मात्रा में पकड़ी जाती है। यहां अफीम की खेती भी खूब होती है। बहरहाल, पूर्वोत्तर के एक बड़े भूभाग में विकास का वातावरण बना है। 
(लेख में विचार निजी हैं)

प्रमोद भार्गव


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