जानें कौन हैं बिहार के बाहुबली आनंद मोहन सिंह, आजादी के बाद के पहले नेता जिसे मिली थी मौत की सजा

Last Updated 27 Apr 2023 01:16:17 PM IST

बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह को आज सुबह 4.30 बजे जेल से रिहा कर दिया गया है। बता दें कि आनंद मोहन अभी तक डीएम जी.कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे थे।


आनंद मोहन सिंह (फाइल फोटो)

उन्हें बाहर निकालने के लिए जेल नियमों में बदलाव कर रिहाई देने के मामले में नीतीश सरकार पर लगातार सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

सवाल यह भी है कि आखिर कौन हैं बाहुबली आनंद मोहन सिंह, जिनकी रिहाई को ले कर बिहार की राजनीती में हलचल मची हुई है।

आनंद मोहन को 2007 में 1985 बैच के आईएएस अधिकारी और 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या का दोषी ठहराया गया था।

आनंद मोहन को निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनाई थी। फिर पटना उच्च न्यायालय ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था। सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई। पर वहां भी आजीवन कारावास की सजा कायम रही।

आनंद मोहन सिंह का जन्म 26 जनवरी, 1956 को बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव में हुआ। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। 17 साल की उम्र में जेपी आंदोलन के प्रभाव में आ कर पढ़ाई से नाता तोड लिया और आंदोलन से जुड गए।

इमरजेंसी के दौरान दो साल तक जेल में भी रहे ।

जेल से बाहर आते ही उनकी पहचान राजपूत नेता के तौर पर होने लगी। उन्होने समाजवादी क्रंती सेना बनाई। तब तक आनंद मोहन के दबंगई की कहानी चर्चा में आने लगी थी।

1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के एक भाषण के दौरान आनंद मोहन को उन्हें काले झंडे दिखाने पर भी चर्चा में रहे।

साल 1979-80 में कोसी रीजन में यादवों के खिलाफ मोर्चा खोलकर वो लाइमलाइट में आए। इस घटना के बाद पहली बार उनका नाम गैर कानूनी गतिविधियों में पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ

1990 में  जनता दल के टिकट पर पहली बार महिषी सीट से विधायक बने। उसी साल पप्पू यादव सिंहेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय जीतकर विधानसभा पहुंचे।

90 के दशक में बिहार की राजनीतिक में जातीवाद की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी। तब बिहार में  कमंडल और मंडल की राजनीति जोर पर थी। साल 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने मंडल कमीशन का समर्थन किया। तब आनंद मोहन ने उनका विरोध किया। इसके बाद लालू सरकार में बहुबली आनंद पर NSA, CCA और MISA के तहत कई आपराधिक धाराओं में मुकदमें दर्ज किए

आनंद मोहन उन दिनों लालू यादव के सबसे बड़े विरोधी थे। तब आनंद मोहन सवर्णों के नेता बनकर उभरे थे। उस दौर में उन्होंने राजपूतों के बीच मजबूत पकड़ बनाई।

1993 में आनंद मोहन ने बिहार पीपल्स पार्टी बनाई। अपनी पार्टी को स्थापित करने के लिए आक्रमक रुख अपनाने से भी नहीं चूकते थे। उस दौर में बिहार में जाति की लड़ाई चरम पर थी। उस दौर में अपनी-अपनी जातियों के लिए राजनेता भी खुलकर प्रतिक्रिया देते थे। उसी दौर में आनंद मोहन लालू के घोर विरोधी के रूप में उभरे। तब आनंद मोहन पर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हुए।

लेकिन कुछ सालों में ही अपनी पार्टी से उनका खुमार उतर गया और आगे चल कर दूसरे दलों का दामन थामकर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने लगे।

अगड़ी जातियों में उनकी धमक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1996 में जेल में रहते हुए ही आनंद मोहन ने शिवहर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उस समय उनकी तरफ से नारा लगाया जाता था कि 'संधि नहीं अब रण होगा संघर्ष महाभीषण होगा'।

आनंद मोहन का नाम उन नेताओं में शामिल है जिनकी बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में तूती बोला करती थी।

 साल 1994 में एक मामला ऐसा आया जिससे बिहार सहित पूरे राज्य में हलचल मच गई। 1994 में बिहार पीपल्स पार्टी के नेता ओर गैंगस्टर छोटन शुक्ला को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। उसकी शवयात्रा में हजारों लोग इकट्ठा हुए। इसी दौरान दौरान भीड़ बेकाबू हो गई और डीएम को सरेआम गोली मार दी गई।

लेकिन 1999 के आम चुनाव में बीजेपी का समर्थन मिला। इसके बावजूद वे जीत नहीं सके और राजद उम्मीदवार ने उन्हें हरा दिया। इसके बाद तमाम कोशिशो के बावजूद उनकी पत्नी और वे चुनाव नहीं जीत पाए।

1998 में आनंद मोहन शिवहर लोकसभा क्षेत्र से दोबारा सांसद चुने गए।

1994 में बिहार पीपल्स पार्टी के नेता ओर गैंगस्टर छोटन शुक्ला को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। उसकी शवयात्रा में हजारों लोग इकट्ठा हुए। इसी दौरान दौरान भीड़ बेकाबू हो गई और डीएम को सरेआम गोली मार दी गई। भीड़ को भड़काने केआरोप में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई गई। 

आनंद मोहन IAS अधिकारी की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पिछले 15 वर्षों से बिहार की सहरसा जेल में सजा काट रहे थे। वह उन 27 कैदियों में शामिल हैं, जिन्हें जेल नियमों में संशोधन के बाद बिहार की जेल से रिहा किया गया  है।

 

 

 

 


 

 

समय लाइव डेस्क
नई दिल्ली


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