दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज किया केंद्रीय सूचना आयोग का आदेश, मोदी की डिग्री नहीं होगी सार्वजनिक

Last Updated 26 Aug 2025 09:38:54 AM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीआईसी (CIC) के उस आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया जिसमें पीएम नरेन्द्र मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया गया था।


अदालत ने इसे ‘व्यक्तिगत जानकारी’ करार देते हुए कहा कि इसमें कोई स्पष्ट या जनहित निहित नहीं है, जिससे इसे सार्वजनिक किया जाए।

न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने सीआईसी के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली विश्वविद्यालय की याचिका पर यह फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने 27 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायाधीश ने कहा, कुछ ऐसा जो जनता की जिज्ञासा का विषय हो और कुछ ऐसा जो जनता के हित में हो, ये दोनों बिल्कुल अलग बातें हैं। नीरज नामक एक व्यक्ति द्वारा आरटीआई आवेदन के बाद सीआईसी ने 1978 में बीए (कला स्नातक) की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के अभिलेखों के निरीक्षण की 21 दिसम्बर 2016 को अनुमति दे दी थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह परीक्षा वर्ष 1978 में ही उत्तीर्ण की थी। उच्च न्यायालय ने सीआईसी के आदेश पर 23 जनवरी 2017 को रोक लगा दी थी।

सोमवार को आए फैसले में यह पाया गया कि आरटीआई आवेदन के तहत मांगी गई जानकारी में कोई जनहित निहित नहीं है। साथ ही इसमें कहा गया कि शैक्षिक योग्यता कोई ऐसी वैधानिक आवश्यकता नहीं है जो किसी सार्वजनिक पद को संभालने या सरकारी जिम्मेदारियां निभाने के लिए जरूरी हो।

आदेश में कहा गया है, यह तथ्य कि मांगी गई जानकारी किसी सार्वजनिक व्यक्ति से संबंधित है, सार्वजनिक कर्तव्यों से असंबद्ध व्यक्तिगत डेटा पर निजता/गोपनीयता के अधिकार को समाप्त नहीं करता है।

इसमें कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को बढावा देने के लिए बनाया गया है, न कि सनसनी फैलाने के लिये। अदालत ने कहा, यह पूरी तरह स्पष्ट है कि ‘प्राप्तांक’, ग्रेड, उत्तर पुस्तिकाएं आदि निजी जानकारी की श्रेणी में आते हैं और आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1) के अंतर्गत संरक्षित हैं। हालांकि, यदि कोई स्पष्ट रूप से बड़ा जनहित मौजूद हो तो इनका आकलन किया जा सकता है।

केवल कुछ अवसरों पर ऐसी जानकारी प्रकाशित कर दिए जाने मात्र से उस जानकारी को मिलने वाला कानूनी संरक्षण समाप्त नहीं हो जाता। दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि सीआईसी का आदेश रद्द किया जाना चाहिए।

मेहता ने कहा, विश्वविद्यालय को अपना रिकॉर्ड अदालत को दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा, विश्वविद्यालय को अदालत को रिकॉर्ड दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 1978 की कला स्नातक की एक डिग्री है।

डीयू ने सीआईसी के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि उसने छात्रों की जानकारी को न्यासिक क्षमता में रखा है और जनहित के अभाव में ’केवल जिज्ञासा’ के आधार पर किसी को आरटीआई कानून के तहत निजी जानकारी मांगने का अधिकार नहीं है।

इससे पहले, आरटीआई आवेदकों के वकील ने सीआईसी के आदेश का इस आधार पर बचाव किया कि आरटीआई अधिनियम में व्यापक जनहित में प्रधानमंत्री की शैक्षिक जानकारी का खुलासा करने का प्रावधान है।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment