Malegaon Bomb Blast Case: मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में प्रज्ञा ठाकुर समेत सभी सातों आरोपी बरी

Last Updated 31 Jul 2025 12:01:19 PM IST

Malegaon Bomb Blast Case: 2008 के मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद आज राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए -NIA) की विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए सबूत के अभाव में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है।


मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल बाद सभी आरोपी बरी

इस मामले में छह लोगों की मौत होने के करीब 17 साल बाद एक विशेष अदालत ने BJP की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को आज (बृहस्पतिवार ःको बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई ‘‘विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं हैं।’’

अदालत ने कहा कि कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता है। उसने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन अदालत सिर्फ धारणा के आधार पर दोषी नहीं ठहरा सकती।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई के लिए यहां नियुक्त विशेष न्यायाधीश ए के लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया और कहा कि आरोपी व्यक्ति संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।

क्या था मामला

मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गयी थी और 101 अन्य लोग घायल हो गए थे।

इस मामले के आरोपियों में ठाकुर, पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे।

अदालत ने जैसे ही सातों आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया तो उन सभी के चेहरों पर मुस्कान छा गयी और उन्होंने राहत की सांस ली। उन्होंने न्यायाधीश और अपने वकीलों का आभार जताया।

‘‘विश्वसनीय और ठोस’’ सबूत नहीं

न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि मामले को संदेह से परे साबित करने के लिए कोई ‘‘विश्वसनीय और ठोस’’ सबूत नहीं है।

अदालत ने कहा, ‘‘मात्र संदेह वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता।’’ साथ ही, उसने यह भी कहा कि किसी भी सबूत के अभाव में आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।

न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘‘कुल मिलाकर सभी साक्ष्य अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए विश्वसनीय नहीं हैं। दोषसिद्धि के लिए कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं है।’’

अदालत ने कहा कि इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधान लागू नहीं होते।

अदालत ने यह भी कहा कि यह साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर पंजीकृत थी, जैसा कि अभियोजन पक्ष ने दावा किया था।

उसने कहा कि यह भी साबित नहीं हुआ है कि विस्फोट कथित तौर पर मोटरसाइकिल पर लगाए गए बम से हुआ था।

इससे पहले सुबह, जमानत पर रिहा सातों आरोपी दक्षिण मुंबई स्थित सत्र अदालत पहुंचे जहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी।

सभी आरोपियों पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता तथा शस्त्र अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने का आरोप था।

अभियोजन पक्ष का दावा था कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा स्थानीय मुस्लिम समुदाय को आतंकित करने के इरादे से किया गया था।

मामले की जांच करने वाली एनआईए ने आरोपियों के लिए ‘‘उचित सजा’’ का अनुरोध किया था। यह मुकदमा 2018 में शुरू हुआ और इस साल 19 अप्रैल को मामले की सुनवाई पूरी हो गयी थी।

शुरुआत में राज्य के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने मामले की जांच की थी, जिसने ‘अभिनव भारत’ समूह के सदस्य रहे दक्षिणपंथी चरमपंथियों पर विस्फोट का दोष मढ़ा था।

बाद में जांच एनआईए को सौंप दी गई, जिसने शुरू में ठाकुर को क्लीन चिट दे दी थी, लेकिन अदालत ने कहा था कि मामले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत मौजूद हैं।

एनआईए ने अपनी अंतिम दलील में कहा था कि अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी वाले शहर मालेगांव में विस्फोट षडयंत्रकारियों ने मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग को आतंकित करने, आवश्यक सेवाओं को बाधित करने, साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने और राज्य की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने के इरादे से किया था।

एनआईए ने बताया कि यह विस्फोट पवित्र रमजान महीने में, नवरात्रि से ठीक पहले हुआ था। एनआईए ने दावा किया कि आरोपियों का इरादा मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग को आतंकित करना था।

आरोपों में यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य करना) और 18 (आतंकवादी कृत्य करने की साजिश रचना) और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराएं शामिल थीं, जिनमें 120 (बी) (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 324 (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना) और 153 (ए) (दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) शामिल थीं।

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाह पेश किए, जिनमें से 37 अपने बयानों से मुकर गए।

इस मामले में अदालत ने कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में अंतर है और अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल में था।

विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई

बता दें कि प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे सप्लाई किया था और यह भी साबित नहीं हुआ कि बम किसने लगाया। घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई।

अदालत ने यह भी पाया कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ। साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी सिद्ध नहीं हो पाया।

साथ ही बता दें कि इससे पहले इस केस के मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा गया था।

इस मामले में सात लोग आरोपी थे, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व BJP सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं, जिन पर मुकदमा चला। इन सभी लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। सभी आरोपी वर्तमान में जमानत पर रिहा हैं।

समयलाइव डेस्क
नई दिल्ली


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