हिंसा की निंदा सार्वभौम हो, न कि चुनिंदा

Last Updated 06 Jan 2022 02:19:20 AM IST

हरिद्वार धर्म संसद में नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाने के खिलाफ सशस्त्र बलों के कुछ पूर्व प्रमुखों सहित कई जानी-मानी हस्तियों द्वारा कार्रवाई की मांग किए जाने के कुछ दिनों बाद भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के पूर्व अधिकारियों के एक समूह ने बुधवार को उन पर सरकार को ‘बदनाम करने का अभियान’ चलाने का आरोप लगाया और कहा कि ऐसी निंदा सार्वभौम होनी चाहिए, न कि चुनिंदा तरीके से की जानी चाहिए।


हिंसा की निंदा सार्वभौम हो, न कि चुनिंदा

कंवल सिब्बल, वीणा सीकरी, लक्ष्मी पुरी समेत 32 पूर्व आईएफएस अधिकारियों के समूह ने एक खुले पत्र में कहा है कि हिंसा के सभी तरह के आह्वानों की निंदा की जानी चाहिए, चाहे उसके धार्मिक, जातीय, वैचारिक या क्षेत्रीय उत्पत्ति स्थल कुछ भी हो तथा इसकी निंदा करने में किसी भी तरह का दोहरा मापदंड और चयनात्मकता उद्देश्यों व नैतिकता पर सवाल उठाती है।

उन्होंने आरोप लगाया कि सक्रियतावादियों के एक समूह, जिनमें माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले कई जाने माने वामपंथी शामिल हैं, के साथ कुछ पूर्व लोकसेवकों और अपने करियर में उच्च पदों पर रहे सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों के अलावा मीडिया के कुछ हिस्से ने मौजूदा सरकार को बदनाम करने का अभियान चला रखा है। उन्हें लगता है कि सरकार देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार का उल्लंघन कर रही है।

उन्होंने दावा किया कि ‘हिंदुत्व विरोध’ की आड़ में यह तेज़ी से ‘हिंदू विरोधी’ तत्व बन रह है। उन्होंने दावा किया कि हिंदू विरोध ‘धर्मनिरपेक्षता’ का दिखावा करने, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने के लिए ‘नाज़ीवाद’ और ‘नरंसहार’ जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करने और केंद्र मोदी सरकार को बदनाम करने का आसान बहाना हो गया है।

भाषा
नई दिल्ली


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