महिला नीति का बुरा हाल
राष्ट्रीय महिला नीति को लेकर अब महिला और बाल विकास मंत्रालय ने भी उम्मीद छोड़ दी है.
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सरकार के महिला नीति को मंजूरी नहीं देने के चलते महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इसके विषयों पर अलग से काम करना शुरू कर दिया है. इज ऑफ डूइंग बिजनेस पर जोर देने वाली सरकार में महिला नीति के मसौदे की बुरी गत बनी है.
महिला अधिकारों में इजाफा करने वाली महिला नीति को 11 बार मंत्रिसमूह का सामना करना पड़ा. पिछले साल से स्वीकृति के लिए ये प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में पड़ी है.
पीएमओ ने लंबे समय से महिला और बाल विकास मंत्रालय से नई राष्ट्रीय महिला नीति को लेकर कोई बात नहीं की है. मंत्रालय ने भी उम्मीद छोड़ दी है. उसे नहीं लगता है कि बचे हुए 11 महीनों में सरकार महिला नीति को मंजूरी दे पाएगी. महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी इस विषय पर कुछ नहीं बोलती, उनका बस इतना ही कहना है कि महिला नीति का जो डाक्युमेंट बना है वो बहुत अच्छा है और महिलाओं को मजबूत बनाने वाला है.
वहीं महिला और बाल विकास मंत्रालय के सचिव राकेश श्रीवास्तव कहते हैं कि महिला नीति में उठाए कई विषयों पर मंत्रालय स्वाभाविक ढंग से अमल करने की कोशिश कर रहा है. पिछली महिला नीति 2001 में बनी थी, इसे नए दौर के मद्देनजर पुराना व अनुपयोगी मानकर ही सरकार ने नई नीति पेश करने की मई 2016 में घोषणा की थी.
क्या था महिला नीति में
हेल्थ कार्ड : महिलाओं के मुफ्त हेल्थ कार्ड बनते, जिससे वो रूटीन हेल्थ चेकअप ही नहीं कैंसर जैसी बड़ी बीमारियों की भी मुफ्त जांच करा पातीं.
मुफ्त उच्च शिक्षा : बीपीएल श्रेणी की लड़कियों को जहां तक पढ़ाना चाहें वहां तक उन्हें मुफ्त पढ़ाया जाता, इसमें मेडिकल व इंजीनियरिंग जैसी महंगी पढ़ाई भी शामिल होती.
रोजगार की जगह होस्टल : कामकाजी महिलाओं के लिए उन स्थान पर कामकाजी होस्टल बनते जहां अधिक रोजगार है.
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