साधु ने ब्यां की डेरा की हकीकत, जांच हो तो मिलेंगे वहां नरकंकाल
डेरा सच्चा सौदा की शान में कसीदे पढ़ने वाले हकीक हंस ने रहस्योद्घाटन किया है कि अदालत या प्रशासन डेरा की जांच कराये तो डेरा से अनेक साधुओं और युवतियों के कंकाल मिल सकते हैं...
![]() साधु ने ब्यां की डेरा की हकीकत (फाइल फोटो) |
वर्षों तक देश-प्रदेश में सूफी गायकी से डेरा सच्चा सौदा की शान में कसीदे पढ़ने वाले हकीक हंस को मलाल है कि डेरा प्रमुख ने उसे और उसके जैसे लगभग 500 साधुओं को परमात्मा की प्राप्ति और भक्तिमार्ग में मन लगाने का झांसा देकर नपुंसक बना दिया और वे अब कहीं के नहीं रहे.
हकीक हंस का असली नाम हंसराज चौहान है जिसने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में डेरा प्रमुख के खिलाफ डेरा में रहने वाले लगभग 500 साधुओं को नपुंसक बनाने का आरोप लगाते हुये मामला दायर कर रखा है जिसकी अगली सुनवाई 25 अक्टूबर को होनी है.
हंस का मानना है कि साध्वी यौन शौषण मामले में फैसला आने के बाद उसे भी न्याय मिलेगा. उसको इसके साथ ही अपनी जान का पहले से ज्यादा खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है. उसका कहना है कि मुकदमें में शिकायतकर्ता और अनेक घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी और गवाह होने पर डेरा प्रमुख जेल में रहते हुये भी किसी भाड़े के गुग्रे से उसकी हत्या करा
सकते हैं.
हंस ने आज बातचीत में यह भी रहस्योद्घाटन किया है कि अदालत या प्रशासन डेरा की जांच कराये तो डेरा से अनेक साधुओं और युवतियों के कंकाल मिल सकते हैं जिन्हें डेरा की बात नहीं मानने या विरोध करने पर मरवा दिया गया. ऐसे लोगों को ठिकाने लगाने का काम कथित तौर पर डेरा प्रमुख की एमएसएफ यानि मन सुधार फोर्स करती थी.
टोहाना के डेरा अनुयायी पुरूषोत्तम और सतपाल सैनी की प्ररेणा से डेरा की राह देखने वाले 16 वर्षीय युवक हंसराज ने अपनी सूफी गायकी से डेरा प्रमुख का ऐसा मन जीता कि वह 1996 में स्वयं उसके टोहाना स्थित घर पहुंचे और माता बस्सो और पिता बल्लू राम से साधु बनाने के नाम पर उसे मांगा लेकिन परिजनों ने साफ इन्कार कर दिया.
हंस का कहना है कि दबाव बनाने के लिये उसने पुरूषोत्तम और सतपाल के कहने पर जहरीला पदार्थ निगल लेने का ड्रामा किया जिस पर उसके परिजन उसे डेरा भेजने पर राजी हो गए. इसके बाद उसने शादी के लिये पंजाब की मुनक तहसील के चांदू गांव में किया गया रिश्ता भी तोड़ दिया.
उसने बताया कि डेरा के साथ अधिकाधिक लोगों को जोड़ने के लिये उसने हिमाचल के छछिया से डेरा प्रमुख का यशगान करना शुरू किया और बाद में कई अन्य राज्यों में गाता रहा. उसके सूफिया कलाम से प्रभावित होकर डेरा प्रमुख ने उसे 15 जनवरी 1996 को उसे साधु का दर्जा देते हुए डेरा की भजन मंडली में शामिल कर लिया और उस पर बाहरी गाने सुनने, टेलीविान देखने, अखबार और काव्य संग्रह पढ़ने तथा बाजारी खानपान की पाबंदी लगा दी.
हंस के अनुसार इस दौरान उसकी मुलाकात डेरा प्रमुख के विस्त मोहन सिंह और दर्शन सिंह से हुई जो डेरा के साधुओं को नंपुसक बनाने के लिये प्रेरित करते थे. लगभग 250 साधुओं को डेरा प्रमुख के पैतृक गांव गुरूसर मोडिया अस्पताल ले जाकर नंपुसक बनाया गया. नपुंसक बनाए जाने से पूर्व साधुओं को काले रंग की एक गोली और कुछ
रसपान दिया जाता था जिससे वे बेहोश हो जाते और ऑपरेशन का दर्द नहीं होता था.
हंस ने बताया कि इसी तरह वह भी डेरा प्रमुख के झांसे में आकर नपुंसक बन गया लेकिन तीन दिन बाद ही उसे इसका पछतावा हुआ और परिजनों को यह बात बताई
तो वे सन्न रह गये. यह बात सुनकर उसकी मां बीमार पड़ गई और वर्ष 2006 में चल बसी. उसके पिता भी इस गम को बर्दाश्त नहीं कर सके और वह भी उसे अकेला
छोड़ दुनिया से विदा हो गया.
उसने बताया कि साधुओं को नपुंसक बनाने का सिलसिला उसके बाद डेरा के अखबार सच कहूं के कार्यालय के प्रथम तल पर बनाये गये अस्थाई ऑपरेशन थियेटर में चला और यह आंकड़ा लगभग 500 तक पहुंच गया. बाद में इन साधुओं को डेरा प्रमुख के पारिवारिक सदस्यों के गनमैन, शाही बेटियों के बसेरे और खुद की सुरक्षा में
तैनात किया जाता था.
हंस ने दावा किया कि डेरा प्रमुख ने नपुंसक साधुओं पर पूरा भरोसा करते हुए डेरा की सम्पत्तियां इनके नाम पंजीकृत कराई और उनसे खाली स्टॉम्प पेपर और स्वयं के नाम पॉवर ऑफ अटॉर्नी भी ले ली.
उसने बताया कि डेरा प्रमुख ने अपने अति विश्वासपात्रों की एमएसएफ यानि ‘मन सुधार फोर्स’ बना रखी थी. अगर कोई साधु अकड़ दिखाता या जिद्द करता तो उसे ‘मन सुधार फोर्स’ के हवाले कर दिया जाता जो उसे कथित तौर पर करंट या फिर किसी अन्य तरीके से मौत के घाट उतार दिया जाता था. हंस ने दावा किया कि डेरा की खुदाई करायी जाये तो वहां अनेक कंकाल मिल सकते हैं. उसने बताया कि ऐसे साधुओं के परिजन जब उनके बारे में कुछ जानने की प्रयास करते तो उनके अमर लोक ‘स्वर्ग’ चले जाने की बात कह कर उन्हें शांत कर दिया जाता था.
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