डोकलाम पर घायल ड्रैगन कर सकता है पलटवार

Last Updated 03 Sep 2017 03:28:24 AM IST

ब्रिक्स सम्मेलन से पहले डोकलाम विवाद भले ही खत्म हो गया हो लेकिन इस पूरे प्रकरण में चीन को जो झटका भारत से मिला है उसे ड्रैगन इतनी आसानी से भूल जाएगा, यह बात कूटनयिकों के गले नहीं उतर रही है.


डोकलाम पर घायल ड्रैगन कर सकता है पलटवार

चीन के इतिहास को देखते हुए इस गतिरोध के सुलझने पर ज्यादा खुश होने के बजाय आगे की रक्षा रणनीतियों पर जोर देना होगा.

चीन ने ब्रिक्स सम्मेलन को देखते हुए तात्कालिक तौर पर अपने पैर पीछे खींचे हैं, आने वाले समय में वह फिर से भारत को घेरने की कोशिश करेगा. मोदी सरकार भी इस बात को समझ रही है. आने वाले दिनों में चीन की अपनी यात्रा में ब्रिक्स सम्मेलन से इतर चीन के राष्ट्रपति के साथ संभावित मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पूरा जोर जहां इस बात पर रहेगा कि भविष्य में फिर से डोकलाम जैसा कोई गतिरोध पैदा न हो. मोदी की पूरी कोशिश रहेगी कि आतंकवाद के मुद्दे पर चीन दोहरा रवैया न अपनाए. इसके अलावा सीमा विवाद निपटाने पर भी बात हो सकती है. आतकंवाद के मुद्दे पर मोदी जहां पाकिस्तान को एक्सपोज करने की कोशिश करेंगे वहीं उनका पूरा जोर हाफिज सईद जैसे आतकंवादी पर चीन के नजरिए को बदलने पर भी रहेगा. हालांकि चीन इस फिराक में है कि मोदी आतंकवाद मुद्दे पर उसके मित्र पाकिस्तान की बखिया न उधेड़ें.

डोकलाम घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके सिपहसालारों ने जिस दृढ़ता के साथ चीनी चुनौती का सामना किया उससे न केवल वैश्विक स्तर पर बल्कि एशिया में भी चीन की हनक को धक्का पहुंचा है. पड़ोसी देशों को यह संदेश देने में भी भारत सफल रहा है कि भारत चीन को उसी की भाषा में जवाब दे सकता है. इस पूरे घटनाक्रम में जहां वैश्विक स्तर पर चीन अलग थलग पड़ गया वहीं भारत को अमरीका, जापान और ब्रिटेन जैसे देशों से भी खासा समर्थन मिला. भारत यह संदेश देने में भी सफल रहा कि वह ऐसे नाजुक मुद्दों को बातचीत से भी हल कर सकता है और जरूरत पड़ने पर ताकत के साथ भी.

यह मोदी सरकार की बड़ी सफलता है और चीन की हार. भूटान, म्यांमार नेपाल श्रीलंका जैसे देश जो अभी तक चीन की नीतियों के सामने मुंह नहीं खोलते थे उन्हें भारत ने यह संदेश दे दिया है कि एशिया में भारत आंख बंद कर बैठने वाला नहीं है. यही बात चीन को लंबे समय तक कचोटती रहेगी और इसी के चलते यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में चीन फिर से कोई हिमाकत कर सकता है. इसी आशंका के मद्देनजर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जो रणनीति बनाई है उसमें सीमा पर आधारभूत ढांचे को मजबूती देने के साथ ही पड़ोसी देशों से रिश्तों को और अधिक मधुर बनाने की बात कही गई है.

डोकलाम विवाद से सबक लेकर दोनों देशों को भविष्य की ओर देखने की जरूरत है. मोदी सरकार भी यह जानती है कि एशिया में वर्चस्व की इस लड़ाई में चीन पीछे हटने को तैयार नहीं होगा ऐसे में पहली जरूरत इस बात की है कि डोकलाम विवाद से उत्साहित होने की वजाय सबक लेने की जरूरत है. भविष्य में ड्रैगन को मुहतोड़ जवाब देने के लिए भारत सीमा पर आधारभूत संरचनाओं की मजबूती में तेजी लाना शुरू कर दिया है.

कुणाल
समयलाइव डेस्क ब्यूरो


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