राष्ट्रपति चुनाव : जिताने न सही, हराने को मिलें
राष्ट्रपति चुनाव का समय (25 जुलाई से पहले) जैसे-जैसे करीब आ रहा है, विपक्ष इस पद का साझा उम्मीदवार तय करने के लिए अधिक सक्रिय हो उठा है.
![]() राष्ट्रपति भवन |
लगातार बैठकों और बातचीत के जरिए कोशिश ये हो रही है कि राष्ट्रपति का चुनाव भले ही न जीता जा सके पर इसके जरिए विपक्ष अधिक संख्या में एक हो जाए. यानी आगे के चुनावों में मोदीमय भाजपा से मुकाबले के लिए विपक्ष बौना न नजर आए.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस बात के लिए भी तैयार हो गए हैं कि राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति (10 अगस्त से पहले) के चुनाव में सभी गैर भाजपा दलों का समर्थन जुटाने की कोशिश की जाए. यानी एनडीए में शामिल शिवसेना-अकाली दल ही नहीं बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्रवादी और जगन रेड्डी की बाईएसआर कांग्रेस से भी सोनिया को बात करने में कोई परहेज नहीं है.
मोदी के नेतृत्व वाले मजबूत एनडीए से टक्कर लेने के लिए सोनिया राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति का गैर कांग्रेसी उम्मीदवार भी स्वीकार करने को तैयार हैं. अगर विपक्ष को लगता है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अच्छी चुनौती दे सकते हैं तो सोनिया को इस पर भी कोई आपत्ति नहीं है. जहां तक शरद पवार के अच्छे उम्मीदवार होने की बात है और अगर वो मान जाएं, तो सोनिया उनके नाम पर भी तैयार हो जाएंगी.
कम वोट होने के बावजूद सोनिया राष्ट्रपति ही नहीं, उपराष्ट्रपति चुनाव को भी बहुत गंभीरता से ले रही हैं. यही वजह है कि वो कुछ नेताओं को छोड़कर सारे बड़े नेताओं (पवार, नीतीश, शरद यादव, येचुरी, डी.राजा, लालू, मुलायम) से या तो मिल चुकी हैं या बात कर चुकी हैं. बसपा नेता मायावती, तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी और द्रमुक नेता स्टालिन से उनकी बात अभी नहीं हुई है.
हालांकि इसके एक हफ्ते के भीतर होना प्रस्तावित है. ऐसा नहीं है कि राहुल कोई भूमिका नहीं निभा रहे हैं. वो पवार और येचुरी से मिले हैं और नीतीश व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनकी फोन पर बात हुई है. ममता से भी उनकी मुलाकात प्रस्तावित है. सोनिया-राहुल दोनों की कोशिश है कि कांग्रेस के नेतृत्व में गैर भाजपा दलों का बड़ा समूह खड़ा किया जाए. इसकी खातिर दोनों अपने रुख में हर स्तर पर लचीलापन लाने के लिए भी तैयार हैं.
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