जल्द ही एयरपोर्ट पर हाथ दिखाकर होगी एंट्री
हवाई अड्डे पर एंट्री के लिए जल्द ही आपको पहचान पत्र की बजाय सिर्फ अपना हाथ दिखाना होगा.
![]() इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (फाइल फोटो) |
हैदराबाद और बेंगलुरु हवाई अड्डे पर पायलट परियोजना के तौर पर यह सुविधा शुरू की जा चुकी है और दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भी जल्द शुरू होने वाली है.
नागरिक उड्डयन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए टिकट बुक कराते समय ही यात्री को अपना आधार नंबर भी देना होगा. उसके बाद हवाई अड्डे पर प्रवेश के समय सुरक्षाकर्मी को पहचान पत्र और टिकट दिखाकर नाम और चेहरा मिलान करने की जरूरत नहीं होती है.
यात्री को वहां लगी मशीन के सामने अपना हाथ दिखाना होता है और मशीन उसकी उंगलियों के निशान का आधार और एयरलाइंस के डाटाबेस से मिलान कर यह सुनिश्चित कर देता है कि वह वैध टिकट धारक है. साथ ही मशीन से जुड़े स्क्रीन पर आधार डाटाबेस में स्थित यात्री की फोटो भी आ जाती है जिससे पास खड़ा सुरक्षाकर्मी चेहरे का मिलान कर लेता है. बेंगलुरु हवाई अड्डा जेट एयरवेज के साथ यह पायलट परियोजना चला रहा है.
हैदराबाद हवाई अड्डे पर कुछ इंच की दूरी से हाथ दिखाने की बजाय अंगूठा लगाकर इसी प्रकार की सुविधा का लाभ उठाया जा सकता है.
अधिकारी ने बताया कि पिछले पखवाड़े में दोनों हवाई अड्डे ने इस संबंध में मंत्रालय में एक प्रस्तुतीकरण दिया था और सभी एयरलाइंस को इससे जुड़ने की सलाह दी गयी थी. उन्होंने कहा कि टिकट बुक कराते समय आधार नंबर देना जरूरी तो नहीं बनाया जा सकता, लेकिन एयरलाइंस विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं के जरिये इसे बढ़ावा जरूर दे सकती हैं. इसके लिए वे प्राथमिकता के आधार पर प्रवेश या ज्यादा रिवॉर्ड प्वांइट जैसी घोषणाएं कर सकती हैं.
उन्होंने बताया कि दिल्ली हवाई अड्डे ने भी इस दिशा में काम शुरू कर दिया है और जल्द ही यहां भी हाथ दिखाकर प्रवेश की सुविधा पायलट परियोजना के तौर पर शुरू हो जायेगी. बाद में इसका विस्तार देश के सभी हवाई अड्डों तक करने की मंत्रालय की मंशा है जिसमें आधार आधारित प्रवेश और बिना आधार के प्रवेश, दोनों की सुविधा होगी.
देश भर में इस सुविधा के प्रसार के लिए मंत्रालय ने एक समिति बनायी है जिसमें हैदराबाद और बेंगलुरु हवाई अड्डों पर परियोजना से जुड़े तकनीकी पेशेवरों को भी शामिल किया गया है. समिति इस सुविधा के तकनीकी और आर्थिक पहलुओं पर विचार करेगी और एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने पर काम करेगी जो सभी हवाईअड्डों के अनुकूल हो.
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