समर्पण

Last Updated 04 Apr 2022 12:03:28 AM IST

कौन मना करेगा? कोई नहीं करेगा। खिला हुआ फूल बीवी के हाथ में रख दिया जाए, तो बीवी मना करेगी क्या?


श्रीराम शर्मा आचार्य

बेशक, नहीं बल्कि नाक से लगाकर सूंघेगी, छाती से लगा लेगी और कहेगी कि मेरे प्रियतम ने गुलाब का फूल लाकर के दिया है। ऐसा होगा लेकिन एक सवाल सहसा दिमाग में कौंधता है, और वह यह कि  मित्रो! फूल को हम क्या करते हैं? यही न कि उस सुगंध वाले फूल को हम पेड़ से तोड़कर भगवान के चरणों पर समर्पित कर देते हैं, और कहते हैं कि हे परम पिता परमेर! हे शक्ति और भक्ति के स्रोत! हम फूल जैसा अपना जीवन तेरे चरणारविन्दों पर समर्पित करते हैं। यह हमारा फूल, यह हमारा अंत:करण सब कुछ तेरे ऊपर न्यौछावर है।

हे भगवान! हम तेरी आरती उतारते हैं, और तेरे पर बलि बलि जाते हैं। हे भगवान! तू धन्य है। सूरज तेरी आरती उतारता है, चांद तेरी आरती उतारता है। हम भी तेरी आरती उतारेंगे। तेरी महत्ता को समझेंगे, तेरी गरिमा को समझेंगे। तेरे गुणों को समझेंगे और सारे विश्व में तेरे सबसे बड़े अनुदान और शक्ति प्रवाह को समझेंगे। हे भगवान! हम तेरी आरती उतारते हैं, तेरे स्वरूप को देखते हैं। तेरा आगा देखते हैं, तेरा पीछा देखते हैं, नीचे देखते हैं। सारे मुल्क में देखते हैं। यही तो आत्मसमर्पण है। तेरा तुझको अर्पण यही तो है।

जब हम इस प्रकार से समर्पण करते हैं, तो यकीनन अहंकार हमसे दूर जा छिटकता है। हम अहंकार से छुटकारा पा लेते हैं। हम शंख बजाते हैं। शंख एक कीड़े की हड्डी का टुकड़ा है, और वह पुजारी के मुखमंडल से जा लगा और ध्वनि करने लगा। दूर-दूर तक शंख की आवाज पहुंच गई। हमारा जीवन भी शंख के तरीके से जब पोला हो जाता है, इसमें से मिट्टी और कीड़ा जो भरा होता है, उसे हम निकाल देते हैं। जब तक इसे नहीं निकालेंगे, वह नहीं बजेगा मिट्टी को निकाल दिया, कीड़े को निकाल दिया।

पोला वाला शंख पुजारी के मुख पर रखा गया और वह बजने लगा। पुजारी ने छोटी आवाज से बजाया, छोटी आवाज बजी। बड़ी आवाज से बजाया, बड़ी आवाज बजी। हमने भगवान का शंख बजाया और कहा कि मैंने तेरी गीता गाई। भगवान! तूने सपने में जो संकेत दिए थे, वे सारे के सारे तुझे समर्पित कर रहे हैं। शंख बजाने का क्रियाकलाप मानव प्राणियों के कानों में, मस्तिष्कों में भगवान की सूक्ष्म इच्छाएं और आकांक्षाएं फैलाने का प्रशिक्षण करता है।



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