क्रांति यानी आनंद

Last Updated 22 Oct 2021 02:54:01 AM IST

ऐसा होता है कि हम अक्सर दुखी रहना ही चुनते हैं। ऐसा क्यों है कि हमें इतना होश नहीं कि यह हमारा ही चुनाव है?


आचार्य रजनीश ओशो

यह मनुष्य की समस्याओं में सब से क्लिष्ट समस्या है। इसे गहरे में सोचना होगा, और यह किताबी बात नहीं है। इसका संबंध आपसे है। हर व्यक्ति इसी तरह का व्यवहार कर रहा है। सदा गलत ही चुनने का, सदा उदास, अवसाद से भरे हुए, दुखी रहने का व्यवहार। इसके गहरे कारण रहे होंगे और हां, कारण हैं।

पहली बात, व्यक्ति की परवरिश की उसके जीवन में बहुत बड़ी भूमिका है। अगर आप दुखी हैं तो उससे आपको कुछ मिलता है। अगर आप प्रसन्न हैं तो आप कुछ खोते हैं। शुरु आत में ही एक सचेत बच्चा इस अंतर को समझने लगता है।

वह जब भी दुखी होता है, हर व्यक्ति उससे सहानुभूति जतलाता है, उसे सहानुभूति मिलती है। हर व्यक्ति उससे प्रेमपूर्ण होने का प्रयास करता है, उसे प्रेम मिलता है। और इससे भी अधिक :वह जब भी उदास होता है, हर व्यक्ति उसकी ओर ध्यान देता है उसे सभी का ध्यान मिलता है। और यह ध्यान अहंकार की खुराक है। बल्कि यूं कहें कि यह एक नशा है।

यह आपको बल देता है। और आप सोचते हैं कि आप कुछ हो। तभी अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की इतनी आवश्यकता, इतनी इच्छा रहती है। अगर हर व्यक्ति आपको देख रहा है, आप बड़े हो जाते हैं, अगर आपकी ओर कोई ध्यान नहीं देता तो आपको लगता है जैसे आप हैं ही नहीं, आप नहीं रहे, आप ना कुछ हो गए।

लोगों का आपकी ओर ध्यान देने का अर्थ है कि वे आपका ध्यान रखते हैं। इससे आपको बल मिलता है।

अहंकार रिश्तों में जीता है। जितने अधिक लोग आपकी ओर ध्यान देंगे उतना आपका अहंकार बढ़ेगा। अगर कोई आपकी ओर नहीं देखता तो अहंकार विसर्जित हो जाता है।

अगर कोई आपको भूल गया है तो अहंकार कैसे जिएगा? तो आपको कैसे लगेगा कि आप हैं। तभी तो समाज-संस्थाओं, क्लबों इत्यादि की जरूरत रहती है।

क्लब पूरे विश्व में मौजूद हैं, रोटरी, लायंस, मेसोनिक..लाखों क्लब, लाखों ग्रुप, सोसायटी केवल इसलिए हैं कि जिन व्यक्तियों की ओर कभी ध्यान न जा सका उनको ध्यान मिल सके।

किसी देश का राष्ट्रपति होना तो संभव नहीं है, हां कॉरपोरेशन का मेयर तो हुआ ही जा सकता है।



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