विशेष दायित्व

Last Updated 25 Oct 2021 02:59:05 AM IST

भगवान ने मनुष्य के साथ कोई पक्षपात नहीं किया है, बल्कि उसे अमानत के रूप में कुछ विभूतियां दी हैं, जिसको सोचना, विचारणा, बोलना, भावनाएं, सिद्धियां-विभूतियां कहते हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

ये सब अमानतें हैं। ये अमानतें मनुष्यों को इसलिए नहीं दी गई हैं कि उनके द्वारा वह सुख-सुविधाएं कमाए और स्वयं के लिए अपनी एय्याशी या विलासिता के साधन इकट्ठे करे और अपना अहंकार पूरा करे। ये सारी की सारी चीजें सिर्फ  इसलिए उसको दी गई हैं कि इन चीजों के माध्यम से वो जो भगवान का इतना बड़ा विश्व पड़ा हुआ है, उसकी दिक्कतें और कठिनाइयों का समाधान करे और उसे अधिक सुंदर और सुव्यवस्थित बनाने के लिए प्रयत्न करे।

मनुष्य के पास जो कुछ भी विभूतियां, अक्ल और विशेषताएं हैं, वे अपनी व्यक्तिगत एय्याशी और व्यक्तिगत सुविधा और व्यक्तिगत शौक-मौज के लिए नहीं हैं और व्यक्तिगत अहंकार की तृप्ति के लिए नहीं हैं।

इसलिए जो कुछ भी उसको विशेषता दी गई है, उसको उतना बड़ा जिम्मेदार आदमी समझा जाए और जिम्मेदारी उस रूप में निभाए कि सारे के सारे विश्व को सुंदर बनाने में, सुव्यवस्थित बनाने में, समुन्नत बनाने में उसका महान योगदान संभव हो। भगवान का बस एक ही उद्देश्य है-नि:स्वार्थ प्रेम। इसके आधार पर भगवान ने मनुष्य को इतना ज्यादा प्यार किया।

मनुष्य को उस तरह का मस्तिष्क दिया है, जितना कीमती कंप्यूटर दुनिया में आज तक नहीं बना। मनुष्य की आंखें, मनुष्य के कान, नाक, आंख, वाणी एक से एक चीज ऐसी हैं, जिनकी रुपयों में कीमत नहीं आंकी जाती है। ऐसा कीमती मनुष्य और ऐसा समर्थ मनुष्य-जिस भगवान ने बनाया है, उस भगवान की जरूर यह आकांक्षा रही है कि मेरी इस दुनिया को समुन्नत और सुखी बनाने में यह प्राणी मेरे सहायक के रूप में, और मेरे कर्मचारी के रूप में, मेरे असिस्टेंट के रूप में मेरे राजकुमार के रूप में काम करेगा और मेरी सृष्टि को समुन्नत रखेगा।

जब मनुष्य इस जिम्मेदारी को समझ ले और समझ ले कि ‘मैं क्यों पैदा हुआ हूं, और यदि मैं पैदा हुआ हूं? तो मुझे अब क्या करना चाहिए?’ यह बात समझ में आ जाए तो समझना चाहिए कि इस आदमी का नाम मनुष्य है, इसके भीतर मनुष्यता का उदय हुआ और इसके अंदर भगवान का उदय हो गया और भगवान की वाणी उदय हो गई, भगवान की विचारणाएं उदय हो गई।
 



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