थकान
कठोर शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों की अपेक्षा दफ्तरों की बाबूगीरी स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक खतरनाक है।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
स्वास्थ्य परीक्षण-तुलनात्मक अध्ययन आंकड़ों के निष्कर्ष और शरीर रचना तथ्यों को सामने रख कर शोध कार्य करने वाली इस संस्था के प्रमुख अधिकारी एरिफ हाफमैन का कथन है कि कुर्सयिों पर बैठे रहकर दिन गुजारना अन्य दृष्टियों से उपयोगी हो सकता है पर स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वथा हानिकारक है।
इससे मांसपेशियों के ऊतकों एवं रक्त वाहिनियों को मिली हुई स्थिति में रहना पड़ता है, वे समुचित श्रम के अभाव में शिथिल होती चली जाती हैं। फलत: उनमें थकान और दर्द की शिकायत उत्पन्न होती है। रक्त के नये उभार में, उठती उम्र में यह हानि उतनी अधिक प्रतीत नहीं होती पर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे आन्तरिक थकान के लक्षण बाहर प्रकट होने लगते हैं, और उन्हें कई बुरी बीमारियों के रूप में देखा जा सकता है।
कमर का दर्द (लेवैगो), कूल्हे का दर्द (साइटिका), गर्दन मुड़ने में, कंधा उचकाने में दर्द, शिरा स्फीति (वेरी कजोवेन्स), बवासीर, स्थायी कब्ज, आंतों के जख्म, दमा जैसी बीमारियों के मूल में मांसपेशियों और रक्त वाहिनियों की निर्बलता ही होती है, जो अंग संचालन, खुली धूप और स्वच्छ हवा के अभाव में पैदा होती है। इन उभारों को पूर्व रूप की थकान समझा जा सकता है।
बिजली की तेज रोशनी में लगातार रहना, आंखों पर ही नहीं, आन्तरिक अवयवों पर भी परोक्ष रूप से बुरा प्रभाव डालता है। आंखें एक सीमा तक ही प्रकाश की मात्रा को ग्रहण करने के हिसाब से बनी हैं। प्रकृति ने रात्रि के अन्धकार को आंखों की सुविधा के हिसाब से ही बनाया है। प्रात:-सायं भी मन्द प्रकाश रहता है।
उसमें तेजी सिर्फ मध्याह्न काल को ही आती है। सो भी लोग उससे टोप, छाया, छाता, मकान आदि के सहारे बचाव कर लेते हैं। आंखें सिर्फ देखने के ही काम नहीं आतीं। प्रकाश की अति प्रबल शक्ति को उचित मात्रा में शरीर में भेजने की अनुचित मात्रा को रोकने का काम भी करती हैं।
यह तभी सम्भव है जब उन पर प्रकाश का उचित दबाव रहे पर यदि दिन-रात उन्हें तेज रोशनी में काम करना पड़े तो देखने की शक्ति में विकार उत्पन्न होना तो छोटी बात है। बड़ी हानि यह है कि प्रकाश की अनुचित मात्रा देह में भीतर जाकर ऐसी दुर्बलता पैदा करती है कि थकान ही नहीं, कई अन्य प्रकार की तत्संबंधी बीमारियां भी पैदा होती हैं।
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