डर

Last Updated 20 Oct 2021 02:26:11 AM IST

आप भय को जबर्दस्ती भगा नहीं सकते। यदि आपके भीतर का डर वेश बदल कर हथियार ले ले, तो क्या उसे वीरता का नाम दे सकते हैं?




सद्गुरु

अपनी सुरक्षा के बारे में चिंता करते रहने के कारण ही भय एक मूल भावना बन गई है।

सवाल है कि आपके भय को कैसे दूर करें? आप इस समय उस आदमी की स्थिति में हैं, जो डायनासोर को जीवित करने के बाद सोचने लगता है कि उससे कैसे बचें। दरअसल, डर अगले क्षण के बारे में है। डर दमन करने की चीज नहीं है।

जर्मनी के ऑटोलिलियंता नामक वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए कि ‘आदमी उड़ नहीं सकता।’ उन्होंने पहले पहल उड़ने वाले यंत्र को रूप दिया। इस खुशी को अपने देशवासियों के साथ बांटना चाहा। एक दिन निश्चित किया गया। उन्होंने वादा किया कि उस दिन सबके सामने उड़कर दिखाएंगे। लेकिन जर्मनी के गिरजाघरों में पादरी लोग आगबबूला हो गए।

उन्होंने कड़ा विरोध जताया, ‘केवल देवदूत और देवता ही आकाश में उड़ सकते हैं। आदमी का उड़ना ईश्वर के विरु द्ध कार्य है।’ यही नहीं, नौ साल तक दिन-रात परिश्रम करके ऑटोलिलियंता ने जिस विमान का निर्माण किया था, रातों-रात आग लगाकर उसे जला डाला। लेकिन ऑटोलिलियंता हारे नहीं।

दुबारा एक विमान के निर्माण में उन्हें चार साल लगे, लेकिन तब तक राइट बंधुओं द्वारा निर्मिंत विमान आसमान में उड़कर इतिहास बना चुका था। क्या आदमी उड़ भी सकता है?-यदि ऑटोलिलियंता या राइट बंधु मन में अविश्वास, डर और संदेह ही पालते रहते तो क्या विमान का आविष्कार कर सकते थे? समझ लीजिए। जीवन और मरण साथ-साथ ही आते हैं। जीवन की इच्छा करेंगे तो मृत्यु के लिए भी अवसर देना ही होगा।

जीवन को डर के साथ देखेंगे तो सभी कुछ खतरनाक दिखाई देगा। बहुत ही हिफाजत के साथ जीने की इच्छा करेंगे तो कब्र में ही जाकर सिमटना होगा। भय होना सहज या प्राकृतिक नहीं है। उसे रूप देने वाले आप ही हैं। अगर आप डर को पैदा करना बंद कर देंगे तो सब नाटक ही खत्म हो जाएगा। डर को भगाने की बात न सोचिए, बल्कि सोचिए कि डर को पैदा किए बिना कैसे रहा जाए। डर के बिना जीना सीख लें तो आप पाएंगे कि जिंदगी में अवसर ही अवसर हैं।



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