जीवन एक फिल्म
इस पूरी जिंदगी को एक मिथक, एक कहानी की तरह देखना. वह है ही, लेकिन तुम इस तरह देखोगे तो तुम दुखी नहीं होओगे. दुख आता है अत्यधिक गंभीरता के कारण.
आचार्य रजनीश ओशो |
सात दिन के लिए इसका प्रयोग करो, सात दिन तक यही सोचो कि यह जगत एक नाटक है, और तुम वही नहीं रहोगे. सिर्फ सात दिन के लिए! तुम ज्यादा कुछ नहीं खोओगे क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं. कोशिश करो. सात दिन तक हर चीज को एक नाटक की तरह लो. जैसे कोई शो चल रहा है. इन सात दिनों में तुम्हें तुम्हारे बुद्ध स्वभाव की झलक मिलेंगी, तुम्हारी आंतरिक पवित्रता की. और एक बार तुम्हें झलक मिल जाए तो तुम वही नहीं रहोगे.
तुम खुश रहोगे. और तुम सोच भी नहीं सकते कि किस प्रकार की खुशी तुम्हें मिलेगी क्योंकि तुमने कभी खुशी जानी ही नहीं है. तुम्हें सिर्फ दुख की मात्राएं पता हैं. कभी तुम ज्यादा दुखी थे, कभी कम दुखी थे. जब तुम कम दुखी थे तो उसे तुम खुशी कहते थे. तुम नहीं जानते कि खुशी क्या है क्योंकि तुम जान नहीं सकते. खुशी तभी घटती है जब तुम इस रवैये में गहरे स्थिर हो जाते हो कि जगत एक नाटक है.
तो इसे करके देखो, और हर बात को उत्सव की तरह करके देखो, समारोह की भांति. एक अभिनय की भांति, वास्तविक घटना की भांति नहीं. यदि तुम एक पति हो तो पति का अभिनय करो; यदि पत्नी हो तो पत्नी होने का अभिनय करो. एक खेल बनाओ. और निश्चय ही उसके नियम हैं, किसी भी खेल के नियम तो होते ही हैं.
विवाह के नियम हैं और तलाक के भी नियम हैं लेकिन उनके बारे में गंभीर मत होओ. वे नियम मात्र हैं, और एक नियम से दूसरा नियम बनता है. तलाक बुरा है क्योंकि विवाह बुरा है. लेकिन उन्हें गंभीरता से मत लो, और फिर देखो तुम्हारे जीवन की गुणवत्ता कैसे बदलती है. तुम्हारी पत्नी या पति या बच्चों के साथ इस तरह बरताव करो जैसे तुम नाटक में काम कर रहे हो, और फिर इसका सौंदर्य देखो.
अगर तुम किरदार निभा रहे हो तो तुम उसमें कुशल होने का प्रयास करोगे मगर तुम विचलित नहीं होओगे. कोई जरूरत नहीं है. तुम किरदार निभाओगे और सो जाओगे. लेकिन ध्यान रहे, वह एक किरदार ही है. और सात दिन तक सतत यह रवैया जारी रखो. तब तुम्हें खुशी घट सकती है.और एक बार तुमने खुशी को जान लिया तो दुख में प्रवेश करने की जरूरत ही नहीं क्योंकि वह तुम्हारा चुनाव है.
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