शिक्षक व समाज
शिक्षक और समाज के संबंध में कुछ थोड़ी सी बातें जो मुझे दिखाई पड़ती हैं, वह मैं आपसे कहूं. शायद जिस भांति आप सोचते रहे होंगे उससे मेरी बात का कोई मेल न हो.
आचार्य रजनीश ओशो |
यह भी हो सकता है कि शिक्षाशास्त्री जिस तरह की बातें कहता है उस तरह की बातों से मेरा विरोध भी हो. न तो मैं कोई शिक्षाशास्त्री हूं और न ही समाजशास्त्री. इसलिए सौभाग्य है थोड़ा कि मैं शिक्षा और समाज के संबंध में कुछ बुनियादी बातें कह सकता हूं. क्योंकि जो शास्त्र से बंध जाते हैं उनका चिंतन समाप्त हो जाता है.
जो शिक्षाशास्त्री हैं उनसे शिक्षा के संबंध में कोई सत्य प्रकट होगा, इसकी संभावना अब करीब-करीब समाप्त मान लेनी चाहिए. क्योंकि पांच हजार वर्ष से वे चिंतन करते हैं लेकिन शिक्षा की जो स्थिति है, शिक्षा का जो ढांचा है, उस शिक्षा से पैदा होने वाले मनुष्यों की जो रूप-रेखा है वह इतनी गलत, इतनी अस्वस्थ और भ्रांत है कि यह स्वाभाविक है कि शिक्षाशास्त्रियों से निराशा पैदा हो जाए.
समाजशास्त्री भी, जो समाज के संबंध में चिंतन करता है वह भी अत्यंत रुग्ण और अस्वस्थ है. अन्यथा मनुष्य-जाति, उसका जीवन, उसका विचार बहुत अलग और अन्यथा हो सकते थे. मैं दोनों में से कोई भी नहीं हूं इसलिए कुछ ऐसी बातें संभव हैं, आपसे कह सकूं जो सीधी समस्याओं को देखने से पैदा होती हैं.
जिन लोगों के लिए भी शास्त्र महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं उनके लिए समाधान महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं और समस्याएं कम महत्त्व की हो जाती हैं. मुझे चूंकि कोई भी पता नहीं शिक्षाशास्त्र का इसलिए मैं सीधी समस्याओं पर आपसे बात करना चाहूंगा. सबसे पहली बात और जिस आधार पर आगे मैं आपसे कुछ कहूं, वह यह है कि शिक्षक का और समाज का संबंध अब तक अत्यंत खतरनाक सिद्ध हुआ है. संबंध क्या है शिक्षक और समाज के बीच आज तक? संबंध यह है शिक्षक गुलाम है, समाज मालिक है.
और शिक्षक से काम समाज कौन सा लेता है? शिक्षक से समाज काम यह लेता है कि उसकी पुरानी ईष्याएं, उसके पुराने द्वेष, उसके पुराने विचार वह सब जो हजारों वर्ष की लाशें हैं मनुष्य के मन पर, शिक्षक नये बच्चों के मन में उनको प्रविष्ट करा दे. मरे हुए लोग, मरते जाने वाले लोग जो वसीयत छोड़ गए हैं, चाहे वह ठीक हो चाहे गलत, उसे वह नये बच्चों के मन में प्रवेश करा दे. समाज शिक्षक से यह काम लेता रहा है और शिक्षक इस काम को करता रहा है, यह आश्चर्य की बात है!
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