दृष्टिकोण
जरा सोच कर देखिए कि आपका मन कब-कब दुखी होता है? जब दूसरे लोग आपकी उम्मीदों के अनुसार व्यवहार नहीं करते.
![]() जग्गी वासुदेव |
कभी अगर आप राह में पड़े किसी भिखारी की ओर पचास पैसे का सिक्का फेंकते हैं और अगर वह अहसानमंद होकर हाथ जोड़े तो आप खुश हो जाते हैं. महज पचास पैसे के खर्च में ही वह भिखारी आपके मन को खुश कर देने वाले मनोचिकित्सक का काम करता है.
इसके उल्टा अगर वह उदासीनता बरते, कोई अहसान न दिखाए, तो बेकार में आपकी भावना घायल हो जाती है. इसी तरह हर चीज के लिए अगर आप अपनी उम्मीदों को बढ़ा लेंगे, तो आपका हर काम बोझ बन जाएगा. अनावश्यक रूप से जिंदगी जटिल हो जाएगी.
भीख देने से आपका फर्ज खत्म हो जाता है. उसके बाद वह उसका पैसा है. उसके लिए धन्यवाद देना या न देना उसकी मर्जी है. लेकिन आपको इस बात का दुख होता है कि उसने आपको बेवकूफ बना दिया.
इसे उसकी धोखेबाजी न समझकर इस तरह देखिए कि आपने अपने जीवन का निर्वाह सही ढंग से किया या नहीं. एक बार एक प्रोफेसर के घर में चूहों को इधर से उधर दौड़ते देखकर उनका छात्र घबरा गया.
अपनी किताब को सीने से लगाते हुए उसने पूछा, ‘सर, आपने चूहों को यों छोड़ रखा है. उन्हें पकड़कर हटा नहीं सकते?’ ‘यह सच है कि चूहे मेरी किताबों को कुतर डालेंगे. लेकिन अगर मैं उन चूहों को पकड़ने की कोशिश में लग जाऊं तो वह मेरे हाथ में आए बिना कहीं छिप जाएंगे. उनका शिकार करने में ही मेरी जिंदगी कट जाएगी.
उसके बजाए खास किताबों को सावधानी के साथ अलमारी में रखकर ताला लगा देता हूं. इस तरह से वह आखिर तक अदना ही बना रहता है. किसी भारी भूत-पिशाच की तरह मुझे डराता नहीं. हरेक चीज को भारी चिंता के रूप में ले लोगे तो चिंताएं तुम्हें खा जाएंगी’- प्रोफेसर ने समझाया. एक बार शंकरन पिल्लै अपनी पत्नी के साथ जुरासिक पार्क सिनेमा देखने गए.
पर्दे पर जब डायनासोर भयंकर रूप से मुंह बाए आगे की ओर लपका तो पिल्लै अपनी सीट पर दुबक गए. ‘अरे, यह तो बस फिल्म ही है’ उनकी पत्नी ने कहा. ‘यह तो तुम्हें पता है. मुझे भी पता है. लेकिन उस डाइनासोर को पता होना चाहिए न?’ आप भी उसी तरह सच्चाई और उम्मीदों को मिलाकर भ्रम में उलझ जाते हैं.
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