पीना और जीना

Last Updated 02 Sep 2017 03:45:03 AM IST

मनुष्य इतना धोखेबाज है कि अपनी ही बातों से स्वयं को धोखा देने में समर्थ हो जाता है.


धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो

ईश्वर की बहुत चर्चा करते-करते तुम्हें लगता है ईश्वर को जान लिया. लेकिन ईश्वर के संबंध में जानना ईश्वर को जानना नहीं है. यह तो ऐसा ही है जैसे कोई प्यासा पानी के संबंध में सुनते-सुनते सोच ले कि पानी को जान लिया. प्यास तो बुझेगी नहीं. पानी की चर्चा से कहीं प्यास बुझी है? परमात्मा की चर्चा से भी प्यास न बुझेगी. और जिनकी बुझ जाए, समझना कि प्यास लगी ही न थी.

तो बुद्ध कहते हैं कि जानना ही हो तो परमात्मा के संबंध में मत सोचो, अपने संबंध में सोचो. क्योंकि मूलत: तुम बदल जाओ, तुम्हारी आंख बदल जाए, तुम्हारे देखने का ढंग बदले, तुम्हारे बंद झरोखे खुलें, तुम्हारा अंतर्तम अंधेरे से भरा है रोशन हो, तो तुम परमात्मा को जान लोगे. फिर बात थोड़े ही करनी पड़ेगी. ज्ञान मौन है. गहन चुप्पी है. फिर तुमसे कोई पूछेगा तो तुम मुस्कुराओगे. फिर कोई पूछेगा तो तुम चुप रह जाओगे.

ऐसा नहीं कि तुम्हें मालूम नहीं है, वरन अब तुम्हें मालूम है, कहो कैसे? गूंगे केरी सरकरा. कहना भी चाहोगे, जुबान न हिलेगी. बोलना चाहोगे, चुप्पी पकड़ लेगी. इतना बड़ा जाना है कि शब्दों में समाता नहीं. पहले शब्दों की बात बड़ी आसान थी. जाना ही नहीं था कुछ, तो पता ही नहीं था कि तुम क्या कह रहे हो. जब तुम ईश्वर शब्द का उपयोग करते हो तो तुम कितने महान शब्द का प्रयोग कर रहे हो, इसका कुछ पता न था. ईश्वर शब्द कोरा था, खाली था. अब अनुभव हुआ.

महाकाश समा गया उस छोटे से शब्द में. अब उस छोटे से शब्द को मुंह से निकालना झूठा करना है. अब कहना नहीं है. अब तुम्हारा पूरा जीवन कहेगा, तुम न कहोगे. इसलिए बुद्ध ने कहा, बात मत करो. चर्चा की बात नहीं है. पीना पड़ेगा. जीना पड़ेगा. अनुभव करना होगा. जो जानते नहीं, उनकी बात व्यर्थ है. जो जानते हैं, वे उसकी बात नहीं करते. ऐसा नहीं कि वे बात नहीं करते. बुद्ध ने बहुत बात की है. लेकिन परमात्मा के संबंध में न की.

मनुष्य के संबंध में की. मनुष्य बीमारी है. परमात्मा स्वास्थ्य है. बीमारी को ठीक पहचान लो, कारण खोज लो, निदान करो, चिकित्सा हो जाने दो; जो शेष बचेगा बीमारी के चले जाने पर-मनुष्य के तिरोहित हो जाने पर तुम्हारे भीतर जो शेष रह जाएगा-वही परमात्मा है. तुम जब तक हो तब तक परमात्मा नहीं है, तुम लाख सिर पटको, तुम लाख शब्दों का संयोजन जमाओ, तुम लाख भरोसा करो. तुम्हारा भरोसा तुम्हारा ही होगा.



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