अमीर-गरीब

Last Updated 01 Sep 2017 05:52:50 AM IST

हमें इस बात को अच्छी तरह से समझना होगा कि हमने एक ऐसा आर्थिक ढांचा चुना है, जहां हर व्यक्ति केवल अपना फायदा देखता है.


जग्गी वासुदेव

बात सिर्फ  इतनी सी है कि गरीब लोग, जिनके पास कुछ नहीं होता, वे चीजों को बांटने में विास रखते हैं, लेकिन अमीर लोग कभी अपने संसाधनों को बांटना नहीं चाहते.

तो दुनिया में यह एक मजाक बन गया. इसमें मानवता के लिए कोई बड़ी कमिटमेंट जैसी चीज नहीं है, क्योंकि यह एक बाजार आधारित अर्थव्यवस्था है. इसमें हर व्यक्ति अपनी क्षमता, अपने कौशल के हिसाब से जितना बटोर सकता है, बटोरने की कोशिश करता है. सचमुच यह ‘लूटो और भागो’ वाली अर्थव्यवस्था है.

लेकिन हम लोगों ने ऐसी अर्थव्यवस्था को इसलिए अपनाया, क्योंकि दुर्भाग्य से समाजवादी और साम्यवादी यानी कम्युनिस्ट विचारधारा फेल हो चुकी थी. हालांकि इनके फेल होने की वजह यह नहीं थी कि वे बुरी थीं, वजह सिर्फ  इतनी थी कि लोग इनके लिए अभी तैयार नहीं थे. अगर अमीरों में साझा करने की जागरूकता आ जाती तो कम्यूनिज्म अपने आप में एक महान विचार रहा होता.

लेकिन हकीकत ये है कि गरीब साझा करने को तैयार है, लेकिन अमीर नहीं. ऐसी ही स्थिति दुनिया में हर जगह है. तो क्या दुनिया को चलाने का यही तरीका सबसे अच्छा है? नहीं. लेकिन क्या हमारे पास इससे बेहतर कोई विचार है? नहीं. तो इसीलिए फिलहाल हम ऐसी स्थिति में हैं.

इस दिशा में वाकई अगर हम कुछ कर सकते हैं तो सिर्फ  यह कि योग को हम अपने जीवन में एक जीवंत अनुभव के रूप में स्थापित करें. योग का मतलब न तो अपने शरीर को मरोड़ना है, न सिर के बल उल्टे खड़ा होना है और ना ही अपनी सांस को रोककर रखना है. योग का मतलब किसी तरह से अपनी भौतिक प्रकृति की सीमाओं को लांघना है.

जहां आप खुद को महज अपने भौतिक शरीर के रूप में पहचानने के बजाय, अपने जीवन को एक बड़ी संभावना के रूप में महसूस करना शुरू कर दें. एक बार जब यह चीज जीवंत अनुभव बन जाएगी तो सबके साथ साझेदारी और मिल-जुलकर रहना हर जगह एक आम अनुभव बन जाएगा. तो क्या इसका मतलब यह है कि इसके बाद हम समुदायों में सबके साथ मिलजुल कर रहना शुरू करने वाले हैं? नहीं. हम अपना कारोबार इस तरह चला सकते हैं, जिसमें सबको शामिल करने की भावना हो.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment