आतंकवाद : डिजिटल तकनीक भी चिंता की बात
टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की नई रिपोर्ट में आतंकी गतिविधियों में डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताई गई है।
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रिपोर्ट ने वैश्विक सुरक्षा के समक्ष एक नई और गहन चुनौती की ओर संकेत करते हुए आतंकी गतिविधियों में डिजिटल तकनीकों के बढ़ते प्रयोग को घोर चिंतजनक बताया है।
रिपोर्ट में ई-कॉमर्स, ऑनलाइन भुगतान, सोशल मीडिया, क्रिप्टोकरेंसी और डार्कनेट जैसे प्लेटफार्मो के माध्यम से आतंकी गतिविधियों के वित्त पोषण और संचालन के बढ़ते खतरे पर न केवल प्रकाश डाला गया है, बल्कि गंभीर चिंता भी जताई गई है। रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग ही पहलू की ओर ध्यान खींचा है। इसमें बताया गया है कि टेक्नॉलजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें और खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति की जरूरत है। विशेष रूप से पाकिस्तान जैसे देशों में पोषित आतंकी संगठन इन तकनीकों का उपयोग कर न केवल फंडिंग जुटा रहे हैं, बल्कि गोपनीयता और पहुंच के नये मार्ग भी तलाश रहे हैं। अब आतंकी संगठन विकेंद्रीकृत मॉडल की ओर भी बढ़ रहे हैं, जैसेकि अल-कायदा क्षेत्रीय इकाइयों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर धन जुटाना, संचालन करना।
भारत ने समय-समय पर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को बेनकाब करते हुए दुनिया से मिल रहे आर्थिक सहयोग पर चिंता जताई और कठोर कार्रवाई की मांग की, इस रिपोर्ट को भारत के रुख का समर्थन करने वाला महत्त्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। एफएटीएफ के मुताबिक, 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर एमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हमले में पैसों के लेन देन में ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। गोरखपुर वाले केस में आतंकी विचारधारा से प्रभावित शख्स ने इंटरनैशनल र्थड पार्टी ट्रांजैक्शन और वीपीएन सर्विस का उपयोग किया था। इस तरह से उसने आईएसआईएल के समर्थन में विदेश में धन भेजा था और उसे भी बाहर से आर्थिक मदद मिली थी।
वीपीएन डिजिटल तकनीक है जो इंटरनेट उपयोगकर्ता की लोकेशन और पहचान छुपाती है। 2024 तक दुनिया में 150 करोड़ से अधिक वीपीएन यूजर्स थे। इनमें से बड़ी संख्या एशिया और मध्य पूर्व से है, जहां सेंसरशिप या निगरानी से बचने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। भारत में 12 से 14 करोड़ वीपीएन उपयोगकर्ता हैं। भारत वीपीएन यूजर्स की संख्या में दुनिया के शीर्ष 3 देशों में शामिल है। वीपीएन का उपयोग कर आतंकी सोशल मीडिया और गुप्त चैनलों के जरिए युवाओं को बरगलाने और भर्ती करने का काम करते हैं। ूकुछ आतंकवादी समूह वीपीएन नेटवर्क का प्रयोग कर सरकारी वेबसाइटों, रक्षा प्रतिष्ठानों और बैंकिंग सिस्टम पर साइबर हमले करते हैं।
दुनिया की एक तिहाई आबादी ऑनलाइन शॉपिंग करती है। इस साल ग्लोबल ई-कॉमर्स मार्केट के 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। भारत इस लिस्ट में फिलहाल सातवें नंबर पर है लेकिन सवाल है कि इस डेटा के बीच अगर कुछ संदिग्ध लोग कुछ हजार डॉलर की खरीददारी करते हैं, जिसका इस्तेमाल आगे जाकर किसी आतंकी हमले में होता है, तो उसे चिह्नित कैसे किया जाए? एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा आतंकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। वे इंटरनेट की दुनिया की ओट ले रहे हैं, जो ज्यादा खतरनाक है।
एफएटीएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी समूहों ने पारंपरिक धन स्रेतों के साथ क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल वित्तीय माध्यमों का भी उपयोग कर रहे हैं। पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर भले हो गया हो लेकिन उसके खिलाफ आरोपों में कोई कमी नहीं आई है। अनेक ग्लोबल इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स और एफएटीएफ ऑब्जर्वेशंस इस बात की पुष्टि करती हैं कि पाकिस्तान में आतंकी गुटों को डिजिटल इकोसिस्टम का खुले तौर पर उपयोग करने दिया जा रहा है, या कभी-कभी सरकार की मौन सहमति से। उदाहरण के रूप में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने बिटकॉइन और अन्य डिजिटल टोकन के जरिए फंड जुटाने की नई तरकीबें अपनाई हैं।
कई मामलों में आतंकी फंडिंग के लिए फर्जी चैरिटेबल ट्रस्ट और सामाजिक मीडिया अभियानों का सहारा लिया गया है। ‘गजवा-ए-हिंद’ जैसे डिजिटल प्रोपेगेंडा प्लेटफॉर्म्स पाकिस्तानी जमीन से संचालित होकर भारत में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने में लगे हैं। डिजिटल तकनीक ने जहां मानव जीवन को सरल और तेज किया है, वहीं इसका दुरुपयोग करके आतंकवाद को नया चेहरा देने की कोशिशें चिंता का विषय है। एफएटीएफ फएटीएफ की चेतावनी को गंभीरता से लेने और वैश्विक सहयोग को मजबूत करने की जरूरत है। विशेष रूप से पाकिस्तान जैसे देशों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना होगा ताकि वे अपनी धरती पर पनप रहे आतंकवाद एवं डिजिटल आतंकवाद के अड्डों को समाप्त करें। तभी एक सुरक्षित डिजिटल वि और शांतिपूर्ण वैश्विक समाज की कल्पना की जा सकती है।
एफएटीएफ रिपोर्ट विश्लेषण करती है कि आतंकवादियों ने अपने उद्देश्यों के लिए वैश्विक दर्शकों से धन जुटाने के लिए सोशल मीडिया पर धन उगाहने वाले प्लेटफॉर्म और क्राउडफंडिंग से आतंकवाद के वित्त पोषण प्राप्त किया है। आतंकी संगठन पारंपरिक तरीकों के साथ डिजिटल तरीकों से भी धन जुटाकर आतंक को अंजाम दे रहे हैं। भारत ने एफएटीएफ रिपोर्ट को अपने रुख के समर्थन में महत्त्वपूर्ण कदम बताया है, जिसमें पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों पर कार्रवाई की मांग की गई है। यह रिपोर्ट आतंकवाद के वित्त पोषण और संचालन में शामिल देशों और व्यक्तियों पर दबाव बढ़ाने और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए नीतियों और रणनीतियों को विकसित करने में सहायक हो सकती है।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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