हठयोग

Last Updated 31 Aug 2017 03:38:57 AM IST

प्राप्राणायाम, प्रात्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि ‘यम नियमासन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधयोष्टावंगानि.’ (योगदर्शन पाद , सूत्र ) इन आठ में प्रारम्भिक दो अंगों का महत्त्व सबसे अधिक है.




श्रीराम शर्मा आचार्य

इसीलिए उन्हें सबसे प्रथम स्थान दिया गया है. यम और नियम का पालन करने का अर्थ मनुष्यत्व का सर्वतोमुखी विकास है. योग का आरम्भ मनुष्यत्व की पूर्णता के साथ होता है. बिना इसके साधना का कुछ प्रयोजन नहीं.

योग में प्रवेश करने वाले साधक के लिए यह आवश्यक है कि आत्मकल्याण की साधना पर कदन उठाने के साथ-साथ यम-नियमों की जानकारी प्राप्त करें. उनको समझें, विचारें, मनन करें और उनको अमल में, आचरण में लाने का प्रयत्न करें. यम-नियम दोनों की सिद्धियां असाधारण हैं.

महर्षि पतंजलि ने अपने योगदर्शन में बताया है कि इन दसों की साधना से महत्त्वपूर्ण ऋद्धि-सिद्धियां प्राप्त होती हैं. हमारा निज का अनुभव है कि यम-नियमों की साधना से आत्मा का सच्चा विकास होता है और उसके कारण जीवन सब प्रकार की सुख-शांति से परिपूर्ण हो जाता है.

यम-निमय का परिपालन एक ऐसे राजमार्ग पर चल पड़ने के समान है, जो सीधे गन्तव्य स्थल पर ही पहुंचाकर छोड़ता है. राजमार्ग का अर्थ है आम सड़क. वह रास्ता जिस पर होकर हर कोई चल सके, जिस पर चलने में सब प्रकार की सरलता, सुविधा हो, कोई विशेष कठिनाई सामने न आये. राजयोग का भी ऐसा ही तात्पर्य है.

जिस योग की साधना हर कोई कर सके, सरलतापूर्वक उसमें प्रगति कर सके और सफल हो सके, यह राजयोग है. हठयोग, कुंडलिनी योग, लययोग, तंत्रयोग, शक्तियोग आदि उतने सरल नहीं हैं और न ही उनका अधिकार ही हर मनुष्य को है. उनके लिए विशेष तैयारी करनी पड़ती है. पर राजयोग में ऐसी शत्रे नहीं हैं क्योंकि वह मनुष्य मात्र के लिए, स्त्री-पुरुष, गृही-विरक्त, बाल-वृद्ध, शिक्षित-अशिक्षित सबके लिए समान रूप से उपयोगी और सरल है.

योग का अर्थ-मिलना. जिस साधना द्वारा आत्मा का पररमात्मा से मिलना हो सकता है, उसे योग कहा जाता है. जीवन की सबसे बड़ी सफलता यह है कि वह ईश्वर को प्राप्त कर ले, छोटे से बड़ा बनने के लिए, अपूर्ण से पूर्ण होने के लिए, बंध से मुक्त होने के लिए वह अतीतकाल से प्रयत्न करता आ रहा है. चौरासी लक्ष योनियों को पार करता हुआ इतना आगे बढ़ आया है. 



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