विश्रांति
मैं अकेला महसूस करता हूं, जो कि ठीक है, लेकिन मैं भ्रमित हूं. मैं नहीं जानता कि क्या हो रहा है. मेरे भीतर चीजें बदल रही हैं.
आचार्य रजनीश ओशो |
इसलिए कभी-कभी मैं आतंकित हो जाता हूं, कभी-कभी अस्थिर अहसास होते हैं. यह स्वाभाविक है. जब कभी तुम आतंकित महसूस करो, बस विश्रांत हो जाओ. इस सत्य को स्वीकार लो कि भय यहां है, लेकिन उसके बारे में कुछ भी मत करो. उसकी उपेक्षा करो, उसे किसी प्रकार का ध्यान मत दो. शरीर को देखो.
वहां किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए. यदि शरीर में तनाव नहीं रहता तो भय स्वत: समाप्त हो जाता है. भय जड़ें जमाने के लिए शरीर में एक तरह की तनाव दशा बना देता है. यदि शरीर विश्रांत है, भय निश्चित ही समाप्त हो जाएगा. विश्रांत व्यक्ति भयभीत नहीं हो सकता है. तुम एक विश्रांत व्यक्ति को भयभीत नहीं कर सकते. यदि भय आता भी है, वह लहर की तरह आता है..वह जड़ें नहीं जमाएगा.
भय लहरों की तरह आता है और जाता है और तुम उससे अछूते बनते रहते हो, यह सुंदर है. जब वह तुम्हारे भीतर जड़ें जमा लेता है और तुम्हारे भीतर विकसित होने लगता है, तब यह फोड़ा बन जाता है, कैंसर का फोड़ा. तब वह तुम्हारे अंतस की बनावट को अपाहिज कर देता है. तो जब कभी तुम आतंकित महसूस करो, एक चीज देखने की होती है कि शरीर तनावग्रस्त नहीं होना चाहिए. जमीन पर लेट जाओ और विश्रांत होओ, विश्रांत होना भय की विनाशक औषधि है; और वह आएगा और चला जाएगा. तुम बस देखते हो.
देखने में पसंद या नापंसद नहीं होनी चाहिए. तुम बस स्वीकारते हो कि यह ठीक है. दिन गरम है; तुम क्या कर सकते हो? शरीर से पसीना छूट रहा है..तुम्हें इससे गुजरना है. शाम करीब आ रही है, और शीतल हवाएं बहनी शुरू हो जाएंगी..इसलिए बस देखो और विश्रांत होओ. एक बार तुम्हें इसकी कला आ जाती है, और यह तुम्हारे पास बहुत शीघ्र ही होगी कि यदि तुम विश्रांत होते हो, भय तुम्हें पकड़ नहीं सकता कि यह आता है और जाता है और तुम्हें बगैर भयभीत किए छोड़ देता है; तब तुम्हारे पास कुंजी आ जाती है.
और यह आएगी. यह आएगी क्योंकि जितने हम बदलते हैं, उतना ही अधिक भय आएगा. हर बदलाव भय पैदा करता है, क्योंकि हर बदलाव तुम्हें अपरिचित में डाल देता है, अजनबी संसार में डाल देता है. यदि कुछ भी नहीं बदलता है और हर चीज स्थिर रहती है, तुम्हें डर नहीं लगेगा. यानी यदि हर चीज मृत हो, तुम डरोगे नहीं.
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