चेतना
चेतना के विभिन्न पहलू मन को अनुभव करने या अनुभव न करने में समर्थ बनाते हैं.
श्री श्री रविशंकर |
उदाहरण के लिए जब तुम किसी एक व्यक्ति के साथ बातचीत कर रहे होते हो तो तुम्हारी चेतना उस वक्त से अलग होती है जब तुम विभिन्न परिस्थितियों में भीड़ को संबोधित कर रहे होते हो और उस समय तुम्हारी चेतना कई अलग-अलग रूप धारण करती है. जब तुम्हारी बुद्धि इतनी तीक्ष्ण और सजग होती है कि चेतना ऐसा रूप लेती है, जहां ध्यान नहीं होता.
यहां प्रार्थना है,‘तुम्हारी दीप्ति को बिखेरो ताकि मैं तुम्हारे पवित्र रूप को देख सकूं.’ प्रार्थना है कि मुझे देखने दें क्योंकि मैं वही हूं! सो-हम. सभी संस्कृतियों में शरीर पर राख मलते हैं. इसका उद्देश्य यह याद दिलाना है कि यह त्वचा राख में बदलने वाली है. यह जानने पर हम अनासक्त हो जाते हैं, और यह हमें भूल करने से रोकता है.
यदि तुम जानते हो कि कोई राख में परिवर्तित होने वाला है, तो तुम फिर कभी उनसे नाराज नहीं होगे और उनके प्रति सभी नकारात्मकता गायब हो जाएगी. याद रखो, तुमने क्या किया है, और क्या अभी भी तुम्हें करना है. ‘ú’ मैं का वह असली नाम है, जो निराकार है. यह हमारा प्राचीनतम नाम है, और आत्मा का यह एक नाम तुम गहन ध्यान में सुन सकते हो.
फिर सही राह पर ले चलने के लिए एक प्रार्थना है. यह आह्वान है अग्नि के लिए. अग्नि, जिसका अर्थ मूलभूत निष्कलंक चेतना भी है. यह तुम्हारे अंदर वह आग है, जो तुमसे सोचने का कार्य करवाती है, और तुम्हें चलाती है. यह तुम्हें क्रोधित या विद्वेषपूर्ण बना सकती है, या नकारात्मक भावनाओं को जन्म दे सकती है.
हम प्रार्थना ही कर सकते हैं कि ‘मेरे अंदर यह अग्नि मुझे सही मार्ग पर लेकर चले.’ अग्नि के पास शुद्ध करने का गुण है. यदि कहीं ऐसा कुछ है, जिसके लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए तो वह प्रार्थना मेरे अंदर की इस अग्नि को सही दिशा मिले, इसके लिए होना चाहिए. जीवन में जो भी आकषर्क है, उसका रस लो परंतु अनासक्ति के बोध के साथ क्योंकि उसके पार ही सत्य स्थित है. सर्वशक्तिमान प्रभु से प्रार्थना करो कि तुम्हें उस पार का मार्ग दिखाएं. अन्तत: यह दैवी चेतना ही है, जो अग्नि की तरह अतीत की समस्त मलिनताओं और पापों का नाश करती है. और जब ऐसा होता है, तब हम शारीरिक रूप से स्वस्थ तथा आध्यात्मिक रूप से प्रफुल्लित महसूस करते हैं एवं हमारा व्यवहार सहज रूप से मधुर बन जाता है.
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