आत्मप्रशंसा
आत्मप्रशंसा अहंकार का बोधक माना जाता है. लेकिन आत्मप्रशंसा जब झूठा प्रदर्शन बनता है तभी उसे अहंकार माना जाता है. मैं यहां आत्मप्रशंसा के लिए अच्छे गुणों के विकास को केंद्र बनाता हूं.
![]() सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो) |
अगर मनुष्य प्रतिदिन अपनी आत्मप्रशंसा में यह कहे कि मैं एक अच्छा आदमी हूं, नैतिक जीवन जीता हूं, क्रोध नहीं करता, दूसरे की निंदा नहीं करता हूं, मैं एक सुंदर व्यक्ति हूं, मेरा शरीर काफी स्वस्थ है, मेरी आंखें सुंदर हैं, शरीर के सभी अंग स्वस्थ हैं. ऐसा अगर बार-बार संकल्पपूर्वक कहा जाए तो मन के विचारों से आप वैसा ही बनने लगेंगे. दूसरी ओर, अगर अपने बारे में बुरे विचार किए जाएं, हमेशा हीन भावना के विचार किए जाएं तो जीवन में अंधकार बढ़ जाता है.
आप प्रयोग करके देखें कि किसी व्यक्ति को दो-चार लोग प्रतिदिन कहना शुरू करें कि आप बूढ़े हो रहे हैं, बीमार लगते हैं, आपको क्या हो गया है, आप तो गलते जा रहे हैं, लगता है आप नहीं बचेंगे. ऐसा अगर किसी को बार-बार कहा जाए तो पांच दस दिन में वह बीमार हो जाएगा. क्योंकि वह व्यक्ति लोगों के विचार से आहत हो रहा है. इसलिए कभी किसी से यह नहीं कहना चाहिए कि आप रिटार्यड कर गए, बूढ़े हो गए हैं, आप तो बेकार हो गए हैं, ऐसे विचारों से मनुष्य को गहरा आघात लगता है.
इसीलिए आत्म कल्याण केंद्र में लोगों को हंसने, प्रसन्न रहने और अच्छे विचारों से हमेशा प्रभावित रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है. मनुष्य अगर स्वस्थ और प्रसन्न रहे तो फिर कभी मोक्ष की बात कर लेगा. लेकिन महत्त्वपूर्ण है जीवन को महोत्सव कैसे बनाया जाए. जीवन के फूलों की बगिया को सजाएं. हमारा जीवन दुख का घर न बन सके, इससे बचना चाहिए.
दुख और सुख तो हवा का झोंका है, दोनों हमारे जीवन में आते हैं. लेकिन जो लोग दुख और चिंता को पकड़कर बैठ जाते हैं वे जीवन भर दुखी रहते हैं. इस दुख को धक्का मारकर बाहर निकालना चाहिए. यह तभी संभव हो सकता है जब हम अपने मन में अच्छे विचारों को रखें और बुरे विचारों को बाहर निकालें. आत्मप्रशंसा जिजीविषा है, जीवन से प्रेम करने की विधि है.
जीवन में आकषर्ण पैदा करना, जीवन में रस पैदा करना बहुत आवश्यक है. कुछ लोग जीवन से उदास होकर जीने लगते हैं. वैसे लोग अच्छे कपड़े नहीं पहनते, अच्छा भोजन नहीं करते, हमेशा उदास और दुखी रहते हैं, उनकी जीवनी शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है.
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