आदत
एक सवाल अकसर सामने आता है, विशेषकर नया साल शुरू होने पर कि बुरी आदतों से छुटकारा कैसे पाएं?
![]() धर्माचार्य जग्गी वासुदेव |
दरअसल, अच्छी आदत या बुरी आदत जैसी कोई चीज नहीं होती, आदतें सारी बुरी होती हैं. आदत का मतलब किसी काम को अचेतन तरीके से करना या उस काम का ऑटोमेटिक तरीके से यानी अपने आप होना है. उदाहरण के लिए दांतों को ब्रश करना भी दो तरीके से हो सकता है. एक तो आप इसे सचेतन रूप से कर सकते हैं, जिसका मतलब है कि आप दांत साफ करने में लगने वाला समय और ब्रश घुमाने की गति भी खुद तय करें.
यही होना भी चाहिए. या फिर आप इसे अपनी आदत अनुसार तीन मिनट तक घिस सकते हैं. अगर आप सचेत होंगे तो आप हर दिन उतना ही खाएंगे और सोएंगे, जितना शरीर के लिए जरूरी होगा. दरअसल आप हर काम ही जरूरत अनुसार करेंगे. लेकिन फिलहाल आपकी रोजाना की बहुत सारी गतिविधियां आपकी आदतों के अनुसार या फिर किसी डॉक्टरी निर्देश के अनुसार होती हैं, जैसे आपको कब जागना है, कितने बजे सोना जाना है, क्या खाना है और क्या नहीं खाना है.
अगर सब कुछ किसी के निर्देश से ही तय हो रहा है तो यह अपने आप में एक तरह की दासता ही है, चाहे आदेश किसी डॉक्टर का हो या मालिक का. अगर आप नहीं जानते कि किसी पल आपको किस चीज की जरूरत है तो इसकी वजह चेतनता की कमी है. आदतों को अच्छे या बुरे के श्रेणी में बांटना एक तरह से यह कहना है कि यह अच्छी अचेतनता है और यह बुरी अचेतनता.
अगर आप किसी आदत को अच्छी आदत के तौर पर देखते हैं तो यह कुछ ऐसा ही है कि आप अच्छे मायनों में अचेतन हैं, इसका एक तरह से मतलब यह भी है कि आप अच्छे मायनों में मृत हैं. जीवंत होने और मृत होने में बुनियादी फर्क यही है कि चेतन होना बनाम पूर्णत: अचेतन होना. आंशिक तौर पर अचेतन होने का मतलब है कि आंशिक तौर पर मृत होना. आप अपने भीतर किसी भी तरह की आदत बनने न दें.
एकांत वास में जाने या किसी आध्यात्मिक स्थान पर रहने के पीछे बुनियादी सोच यही होती है कि एक ऐसा मददगार माहौल मिल, जहां आप हर चीज सचेतन रूप से कर सकें. आपने रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए कुछ कोशिश करके कई तरह की आदतों को विकसित कर लिया है. जब आप किसी आध्यात्मिक स्थान पर आते हैं तो आपको चाहिए कि अपने शरीर, अपने मन, अपनी भावनाओं और ऊर्जा से जुड़ी जरूरतों पर ध्यान दें.
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