ओमीक्रोन का प्रसार, हम कितने तैयार?

Last Updated 11 Dec 2021 01:34:14 AM IST

कोरोना के ताजा-तरीन वेरिएंट ओमीक्रोन की आमद इस बात का इशारा है कि न तो महामारी अभी खत्म हुई है, न इसका खतरा टला है। दक्षिण अफ्रीका में करीब एक पखवाड़े पहले इसका पहला मामला सामने आने के बाद से अब तक 57 देशों में इसके पहुंचने की पुष्टि हो चुकी है। राहत की बात यह जरूर रही कि दक्षिण अफ्रीका ने अपने मजबूत वैज्ञानिक तंत्र के बूते समय रहते दुनिया को इस नये मेहमान के बारे में आगाह कर दिया।


कोरोना के ताजा-तरीन वेरिएंट ओमीक्रोन

हालांकि अभी भी इस नये वेरिएंट पर दुनिया की मालूमात आधी-अधूरी ही हैं। इसमें शंका नहीं कि नया वेरिएंट तेजी से फैल रहा है, लेकिन यह कितना घातक है, इस बारे में ज्यादा कुछ साफ नहीं है। वैक्सीन इसके खिलाफ कितनी कारगर है, इस पर भी कुहासा है। बच्चे-बुजुर्ग, युवाओं पर संक्रमण के असर को लेकर काफी बातें हो रही हैं। लेकिन ये सब फिलहाल शुरु आती अनुमान भर हैं, इनके ठोस जानकारी में बदलने में अभी भी दो से तीन हफ्ते लग सकते हैं। लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया एक बार फिर से हाई अलर्ट पर है।

दक्षिण अफ्रीका में जहां इसका पहला मामला सामने आया है, वहां स्टेज-1 का लॉकडाउन लगा दिया गया है। वहां नवम्बर 29 से दिसम्बर 5 के बीच के हफ्ते में कोविड के मामलों में 111 फीसद का उछाल आया है और नये कोविड संक्रमण का दैनिक औसत 20 हजार मामलों तक पहुंच गया है। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि इनमें से ओमीक्रोन के कितने मामले हैं लेकिन संक्रमण की बढ़ती रफ्तार से उसका कनेक्शन स्पष्ट तौर पर दिख रहा है। इसी तरह के हालात बोत्सवाना, नाइजीरिया, यूगांडा में भी दिख रहे हैं। उधर यूरोप के नॉर्वे में अब घरों में भी 10 से ज्यादा लोगों के पार्टी करने पर पाबंदी लग गई है। ब्रिटेन में ओमीक्रोन के औसतन 150 नये मामले आ रहे हैं। सबसे बुरा हाल जर्मनी का है, जहां लगातार 60 हजार नये मामले दर्ज हो रहे हैं। फ्रांस, डेनमार्क, स्कॉटलैंड, क्रोएशिया से लेकर ऑस्ट्रिया तक सब जगह हालत बिगड़ने लगे हैं। ओमीक्रोन ने दक्षिण कोरिया जैसे उन देशों की सुरक्षा को भी भेद दिया है, जिन्होंने कोरोना की पिछली लहरों का सफलतापूर्वक सामना किया था। वहां महामारी शुरू होने के बाद पहली बार संक्रमित मरीजों का प्रति दिन का आंकड़ा 7000 को पार कर गया है। संक्रमण बढ़ने के साथ ही प्रतिबंध भी लौट आए हैं। बड़े समारोहों को सीमित किया जा रहा है, सार्वजनिक आयोजनों के लिए वैक्सीन धारकों को जारी किए जाने वाले पास जरूरी कर दिए गए हैं, और बीमारों एवं बुजुगरे के लिए बूस्टर डोज की मांग जोर पकड़ने लगी है।

ओमीक्रोन को लेकर लापरवाही
भारत के संदर्भ में तमाम देशों के बीच दक्षिण कोरिया का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि वहां के मौजूदा हालात और हमारे यहां की स्थिति में साम्यता दिख रही है। हमारे यहां भी रोजाना के मामले 8 हजार के आसपास हैं, और ओमीक्रोन के शुरु आती स्टेज में हमारे यहां भी वैसी ही लापरवाही देखी जा रही है। जो चिंतित हैं, वो कमोबेश वैसी ही मांग कर रहे हैं, जैसी दक्षिण कोरिया में की जा रही है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि हम इसके लिए कितने तैयार हैं? आशंका है कि ओमीक्रोन ही देश में कोरोना की उस तीसरी लहर की वजह बनेगा जिसे लेकर देश में पिछले काफी दिनों से तरह-तरह की बातें हुई हैं। अनुमान है कि यह तीसरी लहर जनवरी से शुरू हो सकती है, जो फरवरी में रोजाना के 1.5 लाख मामलों के साथ अपने शिखर पर पहुंचेगी। तुलनात्मक रूप से यह आंकड़ा कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के कहर के सामने भले कमजोर दिख रहा हो जब रोज के मामले चार लाख को पार कर गए थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ओमीक्रोन को हल्के में लिया जाए क्योंकि स्थिति कभी भी बदल सकती है।

अभी ओमीक्रोन के संक्रमितों को अस्पताल ले जाने की नौबत नहीं आई है, इससे मौत होने की भी कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन उस तस्वीर की कल्पना कीजिए जब इसके संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ेंगे और होम आइसोलेशन संभव नहीं होगा। तब यकीनन हमारे अस्पतालों पर दबाव पड़ेगा और संसाधनों का एक बार फिर वैसा ही इम्तिहान हो सकता है जैसा हमने पहले देखा है, खासकर कोरोना की दूसरी लहर में।

केंद्र सरकार ने इसी को देखते हुए राज्यों को तैयारी के निर्देश दिए हैं। राज्यों से कहा गया है कि वे चार लाख नहीं, बल्कि 5 लाख मामलों के लिए खुद को तैयार रखें। ऐसा आकलन है कि अगर हालात बिगड़ते हैं तो करीब 20 फीसद मरीजों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है यानी अस्पताल रोजाना एक लाख मरीजों के हिसाब से खुद को तैयार कर रहे हैं। दूसरी लहर की पीक के दौरान मेडिकल ऑक्सीजन की दैनिक जरूरत 9 हजार टन के आसपास रही थी। भविष्य में इसकी किल्लत न रहे, इसके लिए सरकार ने हाल के दिनों में देश के हर जिले में कम से कम एक ऑक्सीजन प्लांट की महत्त्वाकांक्षी योजना पर काम किया है। लक्ष्य 15 हजार टन दैनिक उत्पादन का है, जिसके लिए देशभर में 3,631 पीएसए प्लांट लगाकर वहां उत्पादन शुरू किया जा रहा है।

वैक्सीन की उपलब्धता
सबसे महत्त्वपूर्ण तैयारी वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करने की है। अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में वैक्सीन की औसत उपलब्धता 10.85 करोड़ डोज थी, जो अब दोगुनी होकर 21.66 करोड़ हो गई है। देश में 65 लाख प्रति दिन की औसत टीकाकरण दर के हिसाब से टीकों की उपलब्धता तो पर्याप्त दिखती है, लेकिन अगर हम इसी दर से आगे भी टीके लगाते रहे तो ओमीक्रोन को शिकस्त नहीं दे पाएंगे। सीधे तौर पर टीके लगाने की रफ्तार बढ़ाने की जरूरत है। देश में फिलहाल टीके की 131 करोड़ डोज लगाई जा चुकी हैं। इनमें 50 करोड़ लोगों को टीके की दोनों डोज लगाई जा चुकी हैं। इसे फिलहाल पूर्ण टीकाकरण बताया जा रहा है लेकिन हो सकता है कि आगे चलकर इस आबादी को भी बूस्टर डोज लगाने की जरूरत पड़े। लेकिन इस समय बड़ी चिंता देश की आबादी के उस 60 फीसद से ज्यादा हिस्से को लेकर है, जिसने या तो एक भी टीका नहीं लगवाया है या जो दूसरा टीका लगाने के लिए आगे नहीं आ रहा है। यह लक्ष्य शायद सामूहिक जिम्मेदारी समझ कर ही पूरा हो सकेगा।

अहम भूमिका वाले विषय
कुछ विषय और भी हैं जो ओमीक्रोन से हमारी लड़ाई की दिशा तय करने में अहम भूमिका में दिखाई दे सकते हैं। लॉकडाउन ऐसा ही एक विषय है। क्या अभी ऐसे हालात हैं कि दूसरी लहर की तरह देशभर में लॉकडाउन लगा दिया जाए या पाबंदियों का पैमाना स्थानीय परिस्थितियों को बनाया जाए? ट्रैवल बैन को लेकर भी इसी तरह की बातें चल रही हैं। दूसरी लहर के दौरान हमने देखा कि पूर्ण पाबंदी शायद वायरस पर उतनी भारी नहीं पड़ती जितनी यह मानव जीवन और उसकी आजीविका को प्रभावित करती है। बेहतर है कि इसका उपयोग अंतिम उपाय के तौर पर ही किया जाए। इसके बजाय रात का कर्फ्यू, सार्वजनिक आयोजनों पर प्रतिबंध जैसे अपेक्षाकृत कम कड़े उपाय ज्यादा कारगर हो सकते हैं। लेकिन यह सब कुछ ओमीक्रोन की चाल पर निर्भर करेगा। दो दिसम्बर को देश में ओमीक्रोन का पहला मामला सामने आया। अगले चार दिनों में इसने पांच राज्यों में 21 लोगों को संक्रमित किया तो चिंताएं भी बढ़ीं। लेकिन उसके बाद से इसका प्रसार स्थिर हुआ है, और संक्रमितों का आंकड़ा अभी दो दर्जन के आसपास ही पहुंचा है। इसलिए एहतियात बरतते हुए फिलहाल वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाना बेहतर होगा। अगले दो-तीन महीनों में पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को लेकर सरकार भी इसी रणनीति पर आगे बढ़ती दिख रही है। गौर करने वाली बात यह है कि विशेषज्ञों के बताए समय पर ही अगर ओमीक्रोन पीक करता है, तो यह समय ठीक वही होगा जब इन राज्यों में मतदान हो रहा होगा। चिंताएं इसलिए ज्यादा हैं क्योंकि दूसरी लहर को हवा देने में उस समय हुए विधानसभा चुनावों का रोल भी सामने आया था। जाहिर है कि देश के अवाम की तरह ही सरकार और चुनाव आयोग भी इसे लेकर सतर्कता बरत रहे होंगे।

शासन और समाज के इसी सामूहिक समन्वय से इस संभावित तीसरी लहर के असर को न्यूनतम किया जा सकता है। अभी हम देख रहे हैं कि बाजारों से लेकर दफ्तरों तक कोरोना प्रोटोकॉल के कायदे तार-तार हो रहे हैं। मास्क, सामाजिक दूरी और हाथ धोने की आदतें हवा हो गई हैं। सार्वजनिक और निजी आयोजनों में जमकर भीड़ उमड़ रही है। इस पर रोक लगानी होगी। सबसे पहले तो देश के हर नागरिक को अपने हिस्से की वैक्सीन की दोनों डोज लगवानी होगी। जो ऐसा नहीं करते हैं तो जरूरत पड़ने पर उन पर रेस्त्रां, मॉल, सिनेमाघरों और वाटर पार्क जैसी सार्वजनिक मनोरंजन की जगहों में प्रवेश पर रोक लगाने जैसी प्रतीकात्मक ही सही, कुछ-न-कुछ दंडात्मक कार्रवाई भी की जा सकती है। संदेश बड़ा स्पष्ट है। कोरोना महामारी एक राष्ट्रीय आपदा है, जिसमें हर हाथ को आहूति देने की जरूरत है।

उपेन्द्र राय


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