राष्ट्रीय पराक्रम से परास्त होगा ओमीक्रोन

Last Updated 05 Dec 2021 12:02:15 AM IST

जिस बात की आशंका थी, वो सच साबित हो गई है। कोरोना के डेल्टा वेरिएंट की विदाई से पहले ही इसका नया और अब तक के तमाम वेरिएंट में सबसे संक्रामक बताया जा रहा ओमीक्रोन वेरिएंट भारत पहुंच गया है।


राष्ट्रीय पराक्रम से परास्त होगा ओमीक्रोन

इस हफ्ते गुरु वार को कर्नाटक में इसके दो पॉजिटिव मरीज मिले हैं। दक्षिण अफ्रीका में इसका पहला मामला मिला था और केवल 10 दिनों में ही यह 30 देशों तक पहुंच गया है। जितनी तेजी से कोरोना का यह वेरिएंट अपना दायरा फैला रहा है, उतनी ही तेजी से इसकी दहशत फैल रही है। बेशक, हमारे देश में फिलहाल अफरा-तफरी का माहौल न दिख रहा हो, लेकिन चौतरफा चिंता जरूर पसर गई है। विशेषज्ञ इस बात की आशंका जताने लगे हैं कि ओमीक्रोन कोरोना की तीसरी लहर की वजह बन सकता है और इस वजह से 40 वर्ष की उम्र पार कर चुके लोगों को बूस्टर डोज लगाने तक की पैरवी शुरू हो गई है।

राष्ट्रव्यापी चिंता की और भी कई वजह हैं। कोरोना के खिलाफ देश में चल रहा दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान बेशक, रोज नये कीर्तिमान बना रहा हो लेकिन ओमीक्रोन से बदल रहे हालात में शायद इतना भर काफी नहीं होगा। देश की 126 करोड़ आबादी को वैक्सीन का सिंगल डोज तो लग गया है, लेकिन सुरक्षा को मजबूत करने वाला दूसरा डोज अभी तक केवल 46 करोड़ लोगों को ही लग पाया है यानी अभी भी हमारी करीब 60 फीसद आबादी वैक्सीन के सुरक्षा कवच से बाहर है।

सबसे कमजोर कड़ी हमारे बच्चे हैं, जिनके वैक्सीनेशन पर काम और चर्चा तो बहुत हो रही है लेकिन वैक्सीन कब लगनी शुरू होगी, इस पर तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। इस सबके बीच हमने बच्चों के स्कूल-कोचिंग भी खोल दिए हैं। हालांकि ओमीक्रोन की आहट पाकर कुछ राज्यों ने एहतियातन पाबंदियों पर फिर से विचार शुरू किया है। बच्चों का टीकाकरण इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ज्यादातर मामलों में संक्रमण हल्के दिखाई देते हैं, जो अक्सर रिपोर्ट किए जाने से बच जाते हैं। इसलिए भी देश में कोरोना संक्रमित हुए बच्चों को लेकर कोई प्रामाणिक आंकड़ा सामने नहीं आ पाया है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि 30 दिसम्बर, 2019 से 25 अक्टूबर, 2021 तक पांच साल से कम उम्र के बच्चों की वैश्विक मामलों में 2 फीसद और वैश्विक मौतों में महज 0.1 फीसद की हिस्सेदारी है। रिपोर्ट किए गए वैश्विक मामलों में 5-14 साल के बड़े बच्चों और छोटे किशोरों की हिस्सेदारी 7 फीसद और वैश्विक मौतों में 0.1 फीसद है। ये आंकड़े राहत भरे जरूर हैं, लेकिन इसके बावजूद सतर्कता से समझौता महंगा पड़ सकता है।

आम नागरिकों की सेहत से जुड़ी इस चिंता के साथ ही देश की आर्थिक सेहत भी चर्चा में आ गई है। यह सवाल भी सिर उठाने लगा है कि क्या दूसरी तिमाही में जीडीपी में आई उछाल से आर्थिक क्षेत्र में बन रहा सकारात्मक माहौल ओमीक्रोन की भेंट चढ़ जाएगा। इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी 8.4 फीसद रही है जबकि बीते वर्ष इसी अवधि में जीडीपी गोता लगाकर-7.5 फीसद रह गई थी। दूसरी लहर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को जो चोट पहुंचाई थी, उसकी यादें अभी धुंधली नहीं पड़ी हैं। वैश्विक अस्थिरता और राष्ट्रीय लॉकडाउन ने वो दिन दिखाए जो देश की अर्थव्यवस्था ने लंबे समय से नहीं देखे थे। घरेलू खर्च में कमी और बेरोजगारी के बढ़ते ग्राफ ने समस्या को और विकराल बना दिया। वैश्विक मांग में ठहराव ने भारत को निर्यात और मैन्युफैक्चरिंग में बढ़ोतरी के लिए प्रेरित किया। इकोनॉमी इमरजेंसी से निपटने के लिए सरकार ने एक तरफ इकोनॉमी फ्रेंडली रणनीति पर काम किया और दूसरी तरफ वित्तीय चुनौतियों के बावजूद अपना खजाना खोलकर विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में किया। पिछली दो तिमाही की आर्थिक रिकवरी इसका बड़ा प्रमाण है। अब चुनौती ओमीक्रोन को साधने की है क्योंकि वायरस का यह वेरिएंट जितना ज्यादा फैलेगा, इस रिकवरी में उतनी ही बड़ी सेंध भी लगाएगा।

हालांकि मुश्किल हो रहे हालात के बीच देश की जनता के लिए महंगाई के मोर्चे पर एक सकारात्मक स्थिति भी तैयार हो रही है। वैक्सीन को बायपास करने की ओमीक्रोन की कथित क्षमता ने कच्चे तेल की कीमतों को जमीन पर ला दिया है।

ब्रेंट कच्चे तेल की कीमत में 16.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि र्वल्ड ट्रेड इंडेक्स में 20.8 प्रतिशत की गिरावट आई है जो मार्च, 2020 के बाद की सबसे बड़ी मासिक गिरावट है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का असर आने वाले हफ्तों में अन्य सभी वस्तुओं पर देखा जाएगा, जिससे थोक मुद्रास्फीति में कमी आएगी। इसका ईधन की कीमतों पर भी प्रभाव पड़ेगा जो हमेशा अन्य वस्तुओं पर व्यापक प्रभाव डालता है।

महंगाई एक फैक्टर जरूर हो सकता है लेकिन फिलहाल शायद सरकार का सबसे बड़ा जोर ओमीक्रोन को पैर पसारने से पहले ही परास्त करने पर रहेगा। इसके लिए कोशिशें भी शुरू हो गई हैं। प्रधानमंत्री की ओर से हालात की लगातार समीक्षा किए जाने के बाद स्वास्थ्य से लेकर विदेश यात्राओं तक व्यावहारिक बदलाव दिखाई भी देने लगे हैं। लेकिन सबसे बड़े बदलाव की जरूरत शायद हमारे-आपके व्यवहार में लाने की है। कोरोना का असर कम पड़ने पर जैसे ही प्रतिबंधों में छूट की शुरु आत हुई, वैसे ही कोरोना प्रोटोकॉल में शिथिलता भी शुरू हो गई। नो मास्क-नो एंट्री, दो गज की दूरी-अभी भी जरूरी जैसे संकल्प महज नारे बनकर हवा हो गए। बाजार पहले की तरह केवल कारोबार से ही नहीं, भीड़ से भी गुलजार हो गए।

नतीजा यह है कि ‘दुनिया गोल है’ की तर्ज पर हम घूम-फिरकर वहीं आ गए हैं, जहां दूसरी लहर की शुरु आत से पहले खड़े थे। इतना जरूर है कि इस बार हम यह बात भली-भांति जानते हैं कि लापरवाही की कीमत क्या हो सकती है? ऐसे में समूचे राष्ट्र का संकल्प यह होना चाहिए कि सरकार को समझाइश की औपचारिकताओं में उलझाने के बजाय समस्या के निपटारे पर फोकस करने दिया जाए और आम नागरिकों को कोरोना से निपटने के लिए मास्क, सामाजिक दूरी और वैक्सीन जैसे तमाम उपायों को राष्ट्रीय जिम्मेदारी समझकर पूरा करने चाहिए। ओमीक्रोन के विस्तार की रफ्तार बेशक, बहुत तेज हो, लेकिन अगर 130 करोड़ कदम एक साथ उठेंगे तो इस दौड़ में ओमीक्रोन को पीछे छोड़ना मुश्किल भले ही हो, लेकिन नामुमकिन नहीं होगा।

उपेन्द्र राय


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