क्रिप्टो पर उलझन की फांस, रोक लगाएं या करें रेग्युलेट!

Last Updated 04 Dec 2021 06:49:23 AM IST

फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य वाले कानून की मांग को लेकर गहमागहमी और विपक्षी राज्य सभा सांसदों के निलंबन पर हंगामे के बीच संसद के शीतकालीन सत्र में एक बड़ी तैयारी और भी चल रही है। यह तैयारी है क्रिप्टो करंसी पर एक बिल लाने की।


क्रिप्टो पर उलझन की फांस, रोक लगाएं या करें रेग्युलेट!

जो जानकारियां छन-छन कर बाहर आ रही हैं, उनके अनुसार इस बिल के जरिए निजी क्रिप्टो करंसी पर रोक लगाई जा सकती है और ऐसे प्रावधानों को शामिल किया जा सकता है, जिससे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की प्रस्तावित डिजिटल करंसी के अनुकूल वातावरण तैयार हो सके। क्रिप्टो करंसी को लेकर आरबीआई की राय ज्यादा उत्साहजनक नहीं है। ऐसे में जब देश का केंद्रीय बैंक ही क्रिप्टो करंसी को परंपरागत वित्तीय पण्राली के लिए खतरा बता रहा है, तो यह भी कयास लगने लगे हैं कि हो सकता है कि इस पर पूरी तरह से रोक ही लगा दी जाए। हालांकि क्रिप्टो करंसी को लेकर सरकार ने सीधे तौर पर कोई नकारात्मक टिप्पणी से बचते हुए इसको रेग्युलेट करने के विकल्प भी खोल रखे हैं।

संसद को जनता की सबसे बड़ी अदालत कहा जाता है, और इस अदालत में क्रिप्टो करंसी का मामला पहुंचने से यह अचानक जन चर्चा का विषय भी बन गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय अभी तक क्रिप्टो करंसी से अनजान थे, बल्कि इस कॉलम को पढ़ने वाले कई पाठकों के लिए यह जानकारी हैरानी भरी हो सकती है कि दरअसल, भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा क्रिप्टो निवेशक हैं। ब्रोकर डिस्कवरी और कंपैरिजन प्लेटफॉर्म ब्रोकरचूजर के अनुसार भारत में 10.07 करोड़ लोगों के पास क्रिप्टो करंसी है, जो देश की आबादी का सात फीसद से कुछ ज्यादा बैठता है। इन्होंने क्रिप्टो करंसी में सात लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया हुआ है। अप्रैल, 2020 से मई, 2021 के बीच यह निवेश 923 मिलियन डॉलर से बढ़कर 6.6 बिलियन डॉलर हो गया यानी एक साल से कुछ ज्यादा अरसे में ही इसमें 400 फीसद का उछाल आया है। छोटे एक्सचेंजों को छोड़ दिया जाए तो कुल 16 एक्सचेंज पर इसकी ट्रेडिंग होती है, लेकिन इस ट्रेडिंग की शेयर मार्केट से तुलना नहीं की जा सकती है। क्रिप्टो करंसी के भारतीय संदर्भ में तीन बातें बेहद अहम हैं। पहली-क्रिप्टो के 60 फीसद भारतीय निवेशक टियर-2 और टियर-3 शहरों में रहते हैं, दूसरी- इसमें निवेश करने वालों की औसत उम्र 24 वर्ष है, और तीसरी-65 फीसद लोगों ने इसमें पहले इन्वेस्टमेंट के तौर पर निवेश किया है।

सरकार की चिंता की वजहें
क्रिप्टो करंसी को लेकर सरकार की चिंता इन तीन वजहों से और ज्यादा बढ़ी हुई है। अभी पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब क्रिप्टो करंसी पर अपनी पहली टिप्पणी दी, तो उनकी बातों में युवा पीढ़ी के सामने खड़े इस आभासी जोखिम की ही फिक्र दिखाई दी। आशंका इसी बात की है कि कहीं जल्द अमीर बनने की हसरत देश के युवाओं को धोखे और अपराध की अंधेरी राह में न ढकेल दे। दरअसल, यह अंदेशा इसलिए बहुत बड़ा है कि क्रिप्टो करंसी न तो कोई औपचारिक मुद्रा है, न ही किसी औपचारिक संस्था की इसके लेन-देन के रिकॉर्ड तक पहुंच है। क्रिप्टो करंसी नोट या सिक्के की तरह न होकर एक तरह का कंप्यूटर कोड होती हैं, जिनकी खरीद-फरोख्त इंटरनेट के जरिए कंप्यूटर पर होती है। एनसीबी, एनआईए, ईडी, आईटी जैसी देश की तमाम जांच एजेंसियां इस ‘गुमनाम व्यापार’ के हवाला, ड्रग्स, मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग से कनेक्शन की आशंका जता चुकी हैं। यह आशंका निराधार नहीं है। हाल ही में कर्नाटक में ईडी ने ड्रग्स के अवैध व्यापार में बिटकाइन के उपयोग का और पिछले साल एनआईए ने दिल्ली में टेरर फंडिंग में इसके इस्तेमाल का भंडाफोड़ किया था।

होड़बाजी का बन सकती है सबब  
टियर-2 और टियर-3 शहरों में क्रिप्टो करंसी का बढ़ता चलन दूसरे तरह के खतरे की जमीन तैयार करता है। इस श्रेणी में मेट्रो से महानगर और छोटे शहरों से मेट्रो शहर की ओर दौड़ रही बसाहट आती है, जहां ‘बड़ा नाम और बड़ी शान’ को लेकर गलाकाट स्पर्धा है। क्रिप्टो करंसी एक तरफ इस होड़ में बढ़त लेने का ‘लोकप्रिय’ जरिया बनती दिख रही है, तो दूसरी तरफ ऐसे महत्त्वाकांक्षी लोगों को आसान शिकार बना लेने की संभावना को भी मजबूत कर रही है। सरकार को डर इस बात का है कि इसमें निवेश करवाने वाली कंपनियां मोटे रिटर्न का सपना दिखाकर ऐसे लोगों की पूंजी पर हाथ साफ कर सकती हैं। देश में क्रिप्टो करंसी के उज्ज्वल भविष्य के दावे कर रहे विज्ञापन को लेकर इसीलिए भी सतर्क रहने की जरूरत है।

युवाओं के बीच क्रिप्टो करंसी में निवेश का पहली पसंद के तौर पर उभरना भी छोटा-मोटा सिरदर्द नहीं है। यह चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि अब तक इस मोर्चे पर बिटकाइन, इथेरियम जैसी क्रिप्टो करंसी का रिकॉर्ड बेहतर रहा है। इसके पीछे मांग और आपूर्ति का फॉर्मूला भी काम कर रहा है। यहां नोट छापने या जाली नोट के प्रचलन में आने जैसी समस्या नहीं है। साल 2009 में जब क्रिप्टो करंसी की शुरु आत हुई थी, तब तय हुई 2.1 करोड़ की संख्या में अब तक कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि इसके निवेशकों की संख्या कई गुना तक बढ़ी है। सरकारों के नियंतण्रसे बाहर होने के कारण इसके लेन-देन पर सरहद की कोई रोक भी नहीं है। क्रिप्टो करंसी की इस सुविधा ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के लेन देन को असुविधा में डाल दिया है। हालांकि सच्चाई यह है कि इनमें परस्पर कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि भारी अवमूल्यन के बावजूद मुद्रा का कोई-न-कोई मोल जरूर रहता है, जबकि क्रिप्टो करंसी रातों-रात की गिरावट में अनमोल से बिना मोल की भी हो सकती है। इसलिए यह सवाल तो बरकरार रहता ही है कि क्रिप्टो करंसी के पास क्या मुद्रा की जगह लेने के लिए जरूरी पर्याप्त विसनीयता है?

ऐसा भी नहीं है कि सरकार इस विषय को लेकर अब तक हाथ पर हाथ धरे बैठी थी। इतना जरूर है कि साल 2016 में क्रिप्टो करंसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बाद उसके रु ख में काफी बदलाव दिखा है। इसकी शुरु आत बिल के बदले नाम से ही हो जाती है।

वर्तमान में नहीं है कोई प्रतिबंध
साल 2019 में लाया गया बिल क्रिप्टो करंसी पर प्रतिबंध और आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विधेयक था, जबकि इस बार पेश हो रहा बिल क्रिप्टो करंसी और आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विधेयक, 2021 है। पुराने कानून में इसकी माइनिंग से लेकर बिक्री और लेनदेन जैसी हर गतिविधि पर पूर्ण प्रतिबंध की बात थी, जबकि वर्तमान में प्रतिबंध का कोई जिक्र नहीं है। यहां तक कि पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को क्रिप्टो के लेन देन से दूर रहने के आरबीआई के निर्देश को भी पलट दिया था। हालांकि आरबीआई ने अब खुद भी सरकार को देश की डिजिटल करेंसी लॉन्च करने का प्रस्ताव दिया है। जयंत सिन्हा कमेटी ने भी क्रिप्टो करंसी पर रोक को व्यावहारिक नहीं मानते हुए इसके नियमन और राष्ट्रीय डिजिटल मुद्रा के निर्माण के लिए सुविधाजनक ढांचा तैयार करने की अनुशंसा की है।

क्रिप्टो करंसी से लड़ाई में दुनिया के कई दूसरे देश भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। एल साल्वाडोर, क्यूबा और यूक्रेन जैसे देश इसके अपवाद हैं, जहां क्रिप्टो के लिए अलग कानूनंहैं, जबकि वियतनाम, रूस, ईरान और तुर्की में क्रिप्टो आंशिक रूप से प्रतिबंधित है। अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता खत्म करने पर आमादा एल साल्वाडोर ने तो आईएमएफ की आपत्ति के बावजूद क्रिप्टो करंसी को लीगल टेंडर के तौर पर स्वीकार कर लिया है। लेकिन जी-20 जैसी तमाम विकसित अर्थव्यवस्थाएं अभी क्रिप्टो करंसी को भरोसेमंद नहीं मान रही हैं। चीन, जापान, स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, कनाडा, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर सभी जगह के केंद्रीय बैंक आरबीआई की तरह अपनी-अपनी राष्ट्रीय डिजिटल मुद्रा लाने की तैयारी कर रहे हैं। डिजिटल मनी का यह दशर्न कितना कामयाब होगा, यह अलग बहस का विषय हो सकता है लेकिन इससे जुड़ी राहत की बड़ी बात यह है कि किसी भी तरह की चूक के लिए इसमें कम-से-कम राष्ट्रीय सरकारों जैसी औपचारिक संस्थाओं की जवाबदेही तो तय की जा सकेगी। इससे उलट क्रिप्टो करंसी  अभी विकास के दौर वाली तकनीक है और इसलिए अभी उस पर एहतियात बरतने की बहुत जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस पर जो भी कदम उठाएगी, वो वर्तमान की चुनौतियों और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप ही होगा।

उपेन्द्र राय


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