स्वास्थ्य और स्वाद : समोसा और जलेबी से सावधान

Last Updated 16 Jul 2025 01:13:03 PM IST

भारत जैसे विविधताओं वाले देश में जहां हर नुक्कड़ पर समोसे की महक और जलेबी की मिठास लोगों को आकर्षित करती है, वहीं यह स्वादिष्ट व्यंजन अब स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी बनते जा रहे हैं।


हमारी परंपराओं और खानपान में गहराई से जुड़े समोसा, कचोरी और जलेबी जैसे तली-भुनी और अत्यधिक मीठी चीजें अब मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का प्रमुख कारण बन गई है। इन्हीं कारणों से देशभर में एक जागरूकता अभियान शुरू करने की आवश्यकता को महसूस करते हुए जनजागृति अभियान शुरू हुआ है। तले हुए व्यंजनों के उपभोग को कम करने की दिशा में किया जा रहा यह प्रयास सराहनीय एवं बढ़ती स्वास्थ्य चिंताओं को देखते हुए क्रांति का शंखनाद है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘फिट इंडिया अभियान’ के तहत तेल और चीनी का उपभोग कम करने का आह्वान किया था। केंद्र सरकार की सक्रियता से जैसे सिगरेट के पैकेट पर स्वास्थ्य चेतावनी होती है, ठीक वैसी ही चेतावनी इन तैलीय और मीठे खाद्य पदाथारे के बारे में जारी होगी। बड़े पैमाने पर इस बात का प्रचार रेडियो एवं अन्य टीवी चैनलों के माध्यमों से किया जा रहा है कि तैलीय या जरूरत से ज्यादा मीठे खाद्य पदाथरे के उपभोग से दूर रहा जाए। 

मोटापे एवं अन्य असाध्य बीमारियों की गंभीर स्थिति से जुड़े चौंकाने वाले तथ्य चिंताजनक है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ चीनी और ट्रांस वसा को मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के मुख्य कारणों में गिनते हैं। भारत में हर 5 में से 1 व्यक्ति मोटापे का शिकार है, और इसके पीछे मुख्य कारण अत्यधिक तला-भुना भोजन है। दुनिया में मोटापे के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। डब्लूएचओ के अनुसार, भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या 2045 तक 13.4 करोड़ तक पहुंच सकती है, जो दुनिया में सबसे अधिक होगी। बच्चों में बढ़ती मोटापे की दर का एक बड़ा कारण स्कूलों के आसपास मिलने वाले समोसा, कचौरी, बर्गर जैसी चीजें हैं।

समोसा और कचोरी जैसी चीजों को बार-बार एक ही तेल में तला जाता है, जिससे उसमें ट्रांस फैट और कैंसरकारी तत्व (ऐकिल्रामाइड) पनपने लगते हैं। ये हृदय की धमनियों को सख्त कर देते हैं और कोलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं। जलेबी को चीनी के गाढ़े सिरप-चासनी में डुबोया जाता है, जिससे शरीर में तुरंत ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती है। यह स्थिति इंसुलिन रेजिस्टेंस, टाइप-2 डायबिटीज और फैटी लिवर जैसी बीमारियों को न्योता देती है। समोसा और कचोरी में मैदा का अत्यधिक उपयोग होता है, जो पाचन को धीमा करता है। इससे गैस, कब्ज, अम्लपित्त और मोटापा जैसे विकार उत्पन्न होते हैं।

भारत में रसोई का अभिन्न हिस्सा है तेल, परंतु आज जिस प्रकार से हर व्यंजन में अत्यधिक तेल का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, इससे मोटापा भारत की बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन गई है, उसने अन्य अनेक बीमारियों को प्रोत्साहन देते हुए स्वास्थ्य संकट को जन्म दे दिया है। तले-भुने खाद्य पदार्थ जैसे समोसा, कचोरी, पकौड़ी, पूड़ी, जलेबी, फास्ट फूड, आदि मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारियों का कारण बनते जा रहे हैं। 

केंद्रीय स्वास्थ्य संस्थानों को कैफेटेरिया और सार्वजनिक स्थानों पर साफ तौर पर ‘तेल और चीनी के चेतावनी बोर्ड’ लगाने का निर्देश दिया गया है। ये सूचनात्मक पोस्टर खासे लोकप्रिय खाद्य पदाथरे में वसा और चीनी की मात्रा को उजागर करेंगे। तले हुए और चीनी से भरपूर खाद्य पदाथरे को हतोत्साहित करने का समय आ गया है। इसकी शुरुआत अस्पतालों में चल रहे लापरवाह रेस्तरां से होनी चाहिए। तमाम रेस्तरां और मिष्ठान भंडारों पर इस चेतावनी को लटकाना आवश्यक है। ऐसा नहीं है कि लोग समोसा या जलेबी खाना छोड़ देंगे, पर उनमें सजगता आएगी। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिमल छाजेड़ पिछले तीन दशकों से ‘जीरो ऑयल’ की खानपान पद्धति के माध्यम से हृदय रोगियों का प्रभावी इलाज कर उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। 

प्रधानमंत्री ने स्वस्थ जीवनशैली के सूत्र प्रस्तुत करते हुए जनता से आह्वान किया है कि तेल का सीमित उपयोग करते हुए पकवानों को तलने के बजाय भूनें, उबालें या भाप में पकाएं। शारीरिक गतिविधि बढ़ाने के लिये रोजाना योग, प्राणायाम, टहलना या व्यायाम करें। खानपान में नियंत्रण सबसे बड़ा उपचार है। अत: बचाव के उपाय जरूरी हैं। पिछले दिनों, हर व्यक्ति से अपने भोजन में तेल की खपत को दस प्रतिशत तक कम करने की अपील की गई है।

कुछ लोग अवश्य सुधार की ओर बढ़े होंगे और अब जब समोसे, जलेबी जैसे खाद्य पदाथरे पर चेतावनी रहेगी, तो खानपान में सुधार की गति को और बल मिलेगा। आज जरूरत है कि हम सिर्फ स्वाद के गुलाम न बनें, बल्कि अपने शरीर की सुनें। एक जिम्मेदार समाज वही है जो अगली पीढ़ी को स्वाद के नाम पर बीमारियां नहीं, स्वस्थ आदतें सौंपे। एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जो स्वाद के पीछे स्वास्थ्य को त्याग रही है। यह चेतावनी नहीं, चेतना का संदेश है कि यदि अब भी नहीं सुधरे, तो आने वाली पीढ़ियां बीमारियों से जूझती रहेंगी। गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाले महकमों और अधिकारियों को युद्ध स्तर पर सक्रिय होना पड़ेगा, तभी हम फिट इंडिया के ख्वाब को साकार कर पाएंगे।

ललित गर्ग


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