नशा निषेध दिवस : समाज की तबाही और हमारी चुप्पी

Last Updated 26 Jun 2025 11:41:12 AM IST

मादक पदार्थों का सेवन केवल व्यक्ति की निजी कमजोरी नहीं, बल्कि मानवता के विरुद्ध सबसे बड़ा अपराध है। यह प्रवृत्ति शहरों के क्लबों, पार्टियों और रेव-संस्कृति तक सीमित नहीं रही, बल्कि दूरस्थ गांवों और कस्बों तक पांव पसार चुकी है।


नशा निषेध दिवस : समाज की तबाही और हमारी चुप्पी

सबसे चिंता की बात यह है कि यह सब कुछ हमारे सामाजिक ढांचे का अभिन्न अंग बनता जा रहा है। वैसे यह समस्या भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अनेक देशों में भी नशीली दवाओं की तस्करी खासकर युवाओं में नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। 

नशीले पदार्थों की तस्करी पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 26 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय नशा एवं मादक पदार्थ निषेध दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन 36 वर्षो से यह दिवस मनाते रहने के बावजूद नशे की तस्करी पर लगाम कसे जाने की बजाय यह समस्या दुनिया भर में विकराल होती गई है। चिंताजनक स्थिति यह है कि भारत में तो नशे का धंधा अब देश के नामी-गिरामी शिक्षण संस्थानों तक फैल चुका है। बड़े शहरों की रेव पार्टयिां, जहां महंगे होटल और फार्म हाउसों में धुआं, शराब और कोकीन की गंध में आधुनिक युवा वर्ग डूबा होता है, इस विघटन की वीभत्स तस्वीरें पेश करती हैं।

राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक शिथिलता ने इन पार्टियों को लगभग ‘छूट प्राप्त अड्डों’ में बदल दिया है, जहां पुलिस की कार्रवाई महज दिखावा बनकर रह जाती है। रईसजादों के लिए नशे की संस्कृति ‘स्टेटस सिंबल’ और ‘मॉडर्निटी’ का पर्याय बन गई है। कोकीन जैसे पदार्थ, जिनमें गंध तक नहीं होती, उनके लिए नया फैशन स्टेटमेंट हैं, बिना यह समझे कि ये पदार्थ तंत्रिका तंत्र पर सीधा प्रहार करते हैं,  और धीरे-धीरे शरीर और आत्मा को खोखला कर देते हैं। इस भयावह स्थिति को बढ़ावा देने वाला माध्यम है इंटरनेट। सूचना क्रांति का यह माध्यम नशीली दवाओं की उपलब्धता और प्रचार-प्रसार का प्लेटफॉर्म बन गया है।

भारत में नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में कॉलेज छात्रों की भागीदारी चालीस प्रतिशत से अधिक है, और इस आंकड़े में लड़कियों की संख्या भी चिंताजनक स्तर तक बढ़ चुकी है। अनेक कॉलेज परिसरों में स्थिति यह है कि छात्र अपने ही परिसर में नशा खरीद सकते हैं, जो किसी संगठित गिरोह की गतिविधि से कम नहीं। छात्रों का नशे की ओर झुकाव कई कारणों से होता है-साथियों के दबाव, मॉडर्न दिखने की चाह, रोमांच की तलाश या फिर अवसाद, चिंता और मानसिक अकेलेपन की स्थिति में। चौंकाने वाली बात यह है कि वे दवाएं, जिन्हें मानव जीवन की रक्षा के लिए बनाया गया था, अब नशे के औजार के रूप में इस्तेमाल की जा रही हैं।

नशीली दवाओं के सेवन से शरीर पर अनेक घातक प्रभाव होते हैं-भूख मर जाना, वजन कम होना, आंखों में लाली और सूजन, कंपकंपी, नींद न आना, चिड़चिड़ापन, अवसाद, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता और यहां तक कि एड्स जैसे संक्रमणों का खतरा भी। मादक पदार्थों का सेवन धीरे-धीरे व्यक्ति की इच्छाशक्ति को इस हद तक खत्म कर देता है कि वह इनका गुलाम बन जाता है। प्रारंभिक प्रयोग के बाद व्यक्ति पहले जैसी अनुभूति के लिए मात्रा बढ़ाता है और ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है, जहां उसका अस्तित्व इन पर निर्भर हो जाता है।

समाज में व्याप्त यह भ्रांति कि नशे से सृजनात्मकता, सोचने की शक्ति, एकाग्रता और यौन शक्ति में वृद्धि होती है, भ्रामक और खतरनाक मिथक है। असलियत तो यह है कि नशे की गिरफ्त में व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी सोच-विचार की स्पष्टता खो देता है, उसकी निर्णय-क्षमता खत्म हो जाती है और उसके कार्य में तालमेल टूट जाता है। कोई भी रसायन, जो व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक क्रिया-प्रणाली में बदलाव लाए, मादक पदार्थ कहलाता है। 

देश में नशे का सबसे गंभीर पहलू यह है कि भारत नशे का उपभोक्ता नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय तस्करी के नक्शे पर प्रमुख ‘ट्रांजिट रूट’ भी बन चुका है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, ईरान और चीन जैसे देशों से होते हुए भारत के रास्ते मादक पदार्थ पश्चिमी बाजारों तक पहुंचते हैं। इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि भारत की भौगोलिक स्थिति तस्करों के लिए सबसे सुगम मार्ग है।

यह व्यापार अब वैश्विक अर्थव्यवस्था का 15 प्रतिशत हिस्सा बन चुका है। भारत में इस पर लगाम लगाने के लिए नारकोटिक्स एक्ट जैसे कठोर कानून मौजूद हैं, लेकिन अपराधी अक्सर इन कानूनों की कमियों का लाभ उठा कर बच निकलते हैं। हमें स्वीकार करना होगा कि नशा अब व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपदा है। इस आपदा से लड़ने का एक ही रास्ता है जनचेतना, सहयोग और सामूहिक संकल्प। यही वह क्षण है, जब हमें यह प्रण लेना होगा कि हम नशे के हर रूप, हर स्रोत और हर समर्थन के खिलाफ खड़े होंगे, बिना डरे, बिना रुके।

योगेश कुमार गोयल


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