सामयिक : अस्थिर सोच ने बिगाड़ी छवि
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपनी विश्वसीयता को कमतर कर रहे हैं। कभी अनाप-शनाप निर्णय के कारण तो कभी भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का श्रेय लेने के कारण।
![]() सामयिक : अस्थिर सोच ने बिगाड़ी छवि |
ताजा मामला ईरान और इजरायल के बीच युद्धविराम के एकतरफा ऐलान का है। इस कदम के फलस्वरूप न केवल उनके देश के नागरिकों में गुस्सा है बल्कि उनके सहयोगी देश भी सकते में हैं। यही नहीं ट्रंप ने दवा किया कि दोनों देश शांति के लिए उनके हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से विस्तृत युद्ध विराम की घोषणा की। आपने दावा किया कि ईरान और इजरायल लगभग एक साथ मेरे पास आए और कहां ‘शांति’, मुझे पता था कि अब समय आ गया है। विश्व और मध्य पूर्व ही असली विजेता है।’ आगे कहा कि ‘इजरायल और ईरान का भविष्य असीमित है और महान आशाओं से भरा है दोनों देश अपने भविष्य में जबरदस्त स्नेह, शांति और समृद्धि देखेंगे।
विचारणीय विषय यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के युद्धविराम योजना को स्वीकार कर लिया ताकि मध्य पूर्व में चल रहे 12 दिनी युद्ध को अलविदा किया जा सके। कहा गया तब तेहरान ने ईरान में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर जवाबी सीमित प्रक्षेपास्त्र द्वारा प्रहार किया था।
वास्तव में यह अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु स्थलों पर की गई बमबारी का बदला था। यह भी ध्यान रहे कि इजरायल ने भी अभी तक ट्रंप के युद्ध विराम की घोषणा को स्वीकार नहीं किया है। आखिरकार ट्रंप की इस प्रकार की खोखली घोषणाएं देश एवं दुनिया को क्या जाहिर कराना चाहती है। इस तरह ट्रंप अपने मुंह मियां मिट्ठू बनकर अमेरिका की प्रतिष्ठा को भी धूल धूसरित करने में लगे हैं।
दूसरी तरफ, इजरायल ने ईरान पर युद्धविराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए बलपूर्वक जवाब देने की कसम खाई है। ईरान तथा इजरायल के बीच युद्धविराम की बात जिसने 12 दिनों के संघर्ष को रोक कर राहत भले दे दी हो, किंतु अभी भी असमंजस की स्थिति स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ट्रंप अमेरिका के ही नहीं बल्कि दुनिया के ऐसे पहले राष्ट्र प्रमुख होंगे जिन पर विश्वास करना खतरे से खाली नहीं है।
दुनिया के हर मामले में हस्तक्षेप करके अपनी साख खोते जा रहे हैं। स्मरण रहे कि ट्रंप ने स्पष्ट रूप से ईरान इजरायल युद्ध में शामिल होने के संदर्भ में कहा था ‘अमेरिका दो हफ्तों के भीतर इस संघर्ष में शामिल होने का फैसला करेगा, किंतु दो दिन बाद ही अमेरिका के बी-2 बमवषर्कों द्वारा ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप भू राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तनाव बढ़ने की आशंकाएं बढ़ गई।
ट्रंप की घोषणा के बाद तेल अवीव और तेहरान संघषर्विराम पर सहमत हो गए हैं। बड़ी असमंजस की स्थिति बन चुकी है। एक ओर अमेरिका कह रहा है कि उसने ईरान की परमाणु क्षमता को सीमित कर दिया है वहीं ईरान का कहना है कि वह दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के सामने खड़े होकर मुकाबला करने का जज्बा, जोश और जुनून रखता है और किसी भी हालत में पीछे ने हटने की बात भी करता है। इजरायल बहुत हद तक ईरान को कमजोर एवं खंड-विखंड की बात कहता है।
इस युद्ध में हर देश अपने को एक दूसरे से बड़ा विजेता बनने की बात करता है, किंतु इसकी सत्यता तो समय पर पता लगेगी कि वास्तविक जीत किसकी हुई है? ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने कतर में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर किए गए अपने आक्रमण को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इस हमले में किसी को नुकसान नहीं पहुंचा है। ईरान किसी के द्वारा की गई ज्यादती को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करेगा। हम किसी के आगे नहीं झुकुेंगे। यही ईरानी राष्ट्र की सोच है। स्पष्ट कर दूं कि एक दिन पूर्व अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु प्लांट्स पर हमला किया था, जिसमें फोर्डा परमाणु सुविधा संपन्न केंद्र भी शामिल था।
इसमें अमेरिका ने बी-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर्स के द्वारा 14 जीबीयू-57 में सिर्फ ऑर्डिनेंस पेनिट्रेटर गिराए थे। इससे ईरान के परमाणु सुविधा को बड़ी हानि उठानी पड़ी। ट्रंप अपने देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के पहले राष्ट्राध्यक्ष होंगे जो अपनी अस्थिर सोच, विचार, क्रियाकलाप एवं व्यवहार के रूप में जाने जाएंगे।
नोबेल शांति पुरस्कार की लालसा रखने वाले अपने पद, प्रतिष्ठा एवं प्रतिबद्धता को भी दांव में लगाकर दोहरी, दोमुखी एवं दुधारू तलवार से दुनिया को चलाने का जो प्रयास कर रहे हैं, वह बेहद विरोधाभास से भरा हुआ है। जिस स्थिति एवं व्यवहार को अपनाकर वे ‘ट्रंप चाल’ चल रहे हैं, उससे उनकी जीत कभी भी बड़ी हार में बदल सकती है। बड़ा बनने के लिए एक बड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और स्वयं की बजाय लोगों को साबित करना होता है।
एक ओर आतंकी पाकिस्तान के साथ दोस्ती का डिनर दूसरी ओर ईरान पर हमला तीसरी और जी-7 की बैठक को बीच में छोड़ना, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के समय भारत-पाकिस्तान युद्ध में युद्ध विराम का श्रेय खुद लेना और स्वयं पीछे हट जाना कि इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी; आखिर कितना छिछलापन है? यह सर्वविदित सत्य है कि जहां अस्तित्व हेतु संघर्ष बेहद जरूरी है वहां शांति के बिना जीवन का आधार नहीं है। संघर्ष की अवधारणा अत्यंत व्यापक है, जो शांति की इच्छा को प्रोत्साहित करती है। वर्तमान दौर में संघर्ष एवं शांति बेहद महत्त्वपूर्ण समसामयिक चिंता एवं चिंतन का विषय है।
हम सभी शांति, सुरक्षा, सद्भाव, सदाचार, सहयोग, समर्थन, स्नेह, सहानुभूति एवं सार्थक शिक्षा की बात करते हैं, किंतु उन्हें जीवन व्यवहार में अपनाने की बात पर अमल नहीं करते। देशों एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को अपना पिट्ठू बनाए रखने की ललक स्वयं एवं विश्व हित में नहीं होती है।
अत: ट्रंप द्वारा स्वयं की शेखी बघारना या डींग हांकना बंद करके मानवीय मूल्यों की सुरक्षा के प्रति गंभीर रूप से चिंता व चिंतन करें तो इतिहास उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से बड़ा मानवीय हित संरक्षक पुरस्कार से सम्मानित करेगा। जिस तरह की दोहरी सोच वह प्रकट करते हैं, इससे उनके व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वहीं अमेरिका की छवि भी धूल धूसरित होती है। उन्हें जो अभी अपने बेहद खास नजर आ रहे हैं, वो भी कुछ दिनों में पराए हो जाएंगे। काश! उन्हें सदबुद्धि आए और विश्व का कल्याण हो।
(लेख में विचार निजी है)
| Tweet![]() |