इजरायल-ईरान संघर्ष : परमाणु बम की बुनियाद पर
इजरायल और फिलस्तीन के बीच युद्ध का दौर एक सदी से भी पुराना है। पिछले वर्ष भी यह जारी था। इजरायल बराबर गाजा पर हमले कर रहा था। अचानक इस युद्ध की दिशा मुड़ जाती है।
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इजरायल फिलस्तीन से टकराव को छोड़ कर अचानक ईरान की ओर मुड़ जाता है। फिर 13 जून को ईरान पर जबर्दस्त हवाई हमला करता है। सवाल उठता है कि यह इतना अचानक क्यों? विचारणीय बात यह है कि इजरायल क्यों इतनी खूंरेजी पर आमादा हो गया। उसकी एयर स्ट्राइक का पहला निशाना ईरान के परमाणु क्षेत्र और परमाणु वैज्ञानिक थे। सेनाधिकारियों के अलावा ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिक भी मारे गए। तो क्या इजरायली हमले का मकसद ईरान का परमाणु अनुसंधान रोकना है। अगर ईरान परमाणु हथियार बनाने के अनुसंधान में लगा है, तो इससे इजरायल का क्या नुकसान है?
इस सवाल का जवाब तलाश करने के लिए हम एक बार फिर लौटते हैं इजरायल-फिलस्तीन युद्ध की ओर। इस युद्ध का जनक ब्रिटेन था। उसने ही इजरायली और फिलिस्तीन के मुसलमानों के बीच जंग शुरू कराई। इजरायल में रहने वाले यहूदी मतावलंबी मुसलमानों से वैर मानते हैं। छोटा-सा इजरायल इसी कारण सारे मुस्लिम देशों से वैरभाव रखता है। ईरान भी उनमें एक है, और उसका पड़ोसी मुल्क है। अगर ईरान परमाणु शक्ति संपन्न हो जाता है तो निश्चित रूप से इजरायल के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। जाहिर है कि ऐसे में इजरायल उसे हर हाल में इस कोशिश से विफल करना चाहेगा।
इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को क्षति पहुंचाने के लिए कई बार गुप्त हमले किए। इनमें ईरानी परमाणु कार्यक्रम के जनक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या तक करा डाली लेकिन ईरान का परमाणु कार्यक्रम रु का नहीं। इजरायल बराबर प्रयास करता रहा। संयुक्त राष्ट्र में हिज्बुल्लाह-हमास विरोधी अभियानों का तो समर्थन किया गया था, लेकिन ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर उसे तबाह करने के प्रयासों पर वीटो के जरिए रोक लगा दी गई। ऐसे में इजरायल को इंतजार था सही वक्त का और वह वक्त मिला उसे अमेरिका की सत्ता पर दोबारा डोनाल्ड ट्रंप के आने पर। अमेरिका भी ईरान पर परमाणु संधि के लिए दबाव डाल रहा है। इजरायल के हमले से दोनों के लक्ष्य सधते प्रतीत हो रहे हैं।
इस संधि के लिए ही ईरान पर दबाव बनाने के लिए इजरायल ने हमला बोला है। दरअसल, यह टकराव सिर्फ ईरान और इजरायल का नहीं है। बेशक, मोर्चे पर ये दोनों देश हैं, लेकिन इनकी सरपरस्ती अलग-अलग देश कर रहे हैं। जब से ट्रंप अमेरिका के दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं, उनका सबसे बड़ा लक्ष्य दुनिया का सबसे बड़ा चौधरी बनने का है। रूस-यूक्रेन टकराव हो, भारत-पाक टकराव या अब ईरान-इजरायल टकराव, हर जगह चौधरी बनना चाहते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने में उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। कारण भी साफ है। रूस अमेरिका से कमजोर नहीं है, और रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन न तो अलग यूक्रेन को मान्यता देंगे और न ही इस बारे में ट्रंप की कोई बात मानेंगे। रही भारत-पाक टकराव के बाद सीजफायर की बात उसमें भी वह अब तक 17 बार दावे कर चुके हैं कि उनके कहने पर ही दोनों देशों के बीच सीजफायर हुआ।
इसके उलट ट्रंप को पाकिस्तान से इसलिए प्यार है कि पाकिस्तान को अड्डा बना कर ही अमेरिका ने अफगानिस्तान से रूस का वर्चस्व समाप्त कराया। अब चीन और भारत, दोनों को दबा कर ट्रंप एशिया महाद्वीप में अपनी धाक कायम रखना चाहते हैं। जहां तक इजरायल और ईरान की बात है, वहां भी चौधरी बनने के लिए ट्रंप ने साफ-साफ कहा है कि हमने जो भारत-पाकिस्तान में कराया वही ईरान-इजरायल टकराव में भी कराएंगे। इजरायली हमले का मकसद ईरान का परमाणु कार्यक्रम रोकना है, और इसे शह दी है ट्रंप ने। इजरायल के हमले में ईरान की जो क्षति हुई है, वह इस बात का ताजा सबूत है। 13 जून को इजरायल ने ईरान के खिलाफ ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ शुरू किया और इसके तहत ईरान में कई जगहों पर बड़े हमले किए। हमलों के बाद इजरायली सेना ने बयान जारी कर ईरान को अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताते हुए कहा कि खुफिया जानकारी के अनुसार वो परमाणु हथियार हासिल करने के बेहद करीब है। ईरान छह साइटों पर परमाणु अनुसंधान कार्यक्रम चला रहा है। इन साइटों पर यूरेनियम संवर्धन का काम चल रहा है।
इसमें उसकी मदद रूस और पाकिस्तान कर रहे हैं। इतना यूरेनियम उसके पास हो गया है कि वह कम से कम नौ परमाणु बम तैयार कर सकता है। अभी तक वह इतने बम तैयार कर पाया या नहीं, इस बारे में स्थिति साफ नहीं है, हालांकि ट्रंप का दावा है कि ईरान के पास अभी परमाणु हथियार नहीं हैं। जंग के इन छह दिनों में इजरायल ने नतांज और बोशहर पर हमले किए। सिर्फ नतांज को कुछ हद तक क्षति पहुंचा सका। बाकी सभी जगह यूरेनियम संवर्धन का काम जारी है। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई ने भी आंशिक क्षति की बात स्वीकार की है। बड़ा सवाल यह है कि क्या इजरायल ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोक पाएगा। इसका जवाब देने के पहले ईरान की उन छह साइटों की सुरक्षा व्यवस्था जान लेते हैं, जहां यूरेनियम संवर्धन का काम हो रहा है। ईरान ने इनकी सुरक्षा की ऐसी व्यवस्था की है कि इजरायल के लिए इसे भेद पाना मुश्किल है।
अगर उसके लिए यह संभव होता तो जाने कब इन साइटों को तबाह कर चुका होता। इन साइटों को तबाह करने की ताकत अमेरिका में है। लेकिन अगर वह सीधे जंग में कूदा तो स्थितियां और विकट हो जाएंगी। हालांकि ट्रंप कह चुके हैं कि जरूरत पड़ी तो जंग में भी शिरकत करेंगे, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप ऐसा करते हैं, तो यूक्रेन से युद्ध में लगे रहने के बाद भी रूस ईरान की ओर से मैदान में आ जाएगा। चीन ने जंग के बीच गुप्त रूप से ईरान को हथियार सप्लाई कर अपना रु ख पहले ही साफ कर दिया है। पाकिस्तान कितना भी कमजोर हो, लेकिन है तो ईरान के साथ ही। यह दीगर बात है कि अमेरिका के दबाव में उसने स्वयं को नियंत्रित कर रखा है। हालांकि इतना साफ है कि ट्रंप जंग में कूदे तो तीसरे विश्व युद्ध की स्थिति पैदा हो जाएगी।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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