मुद्दा : कोमल मन पर भारी कठोर परवरिश
हाल ही में पश्चिम बंगाल के पंसकुरा में 7वीं क्लास में पढ़ने वाले बच्चे ने इसलिए आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसकी मां ने सबके सामने उसको डांट दिया था। बच्चा अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ गया है, जो झकझोर देने वाला है।
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अपने सुसाइड नोट में बच्चे ने लिखा था कि मां मैंने चोरी नहीं की। बच्चे के ये आखिरी शब्द दिल को झकझोर कर रख देने वाले हैं। दरअसल, स्कूल में पढ़ने वाले 13 साल के कृष्णोंदु दास पर एक मिठाई की दुकान से चिप्स के तीन पैकेट चुराने का आरोप लगा था। मिठाई की ये दुकान गोसाईबेर बाजार में एक सिविल वॉलंटियर शुभांकर दीक्षित की थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि शुभांकर की गैरमौजूदगी में बच्चे ने दुकान से चिप्स के तीन पैकेट चुरा लिए थे।
दुकान मालिक ने बच्चे को दुकान से थोड़ी दूर चिप्स के पैकेट के साथ देखा, तो उसके पीछे दौड़ पड़ा। उससे चोरी के बारे में पूछताछ की गई। उसने दुकानदार को पांच रुपये के हिसाब से तीन चिप्स के पैकेट के 15 रु पये दे दिए। इसके बाद भी दुकानदार नहीं माना। वह पैसे लौटाने के बहाने बच्चे को वापस दुकान पर ले गया और उसको मारा-पीटा। इतना ही नहीं, दुकानदार ने बच्चे से सार्वजनिक रूप से माफी भी मंगवाई।
बच्चे के साथ ये सब अभी हुआ ही था कि उसकी मां को जैसे ही इस बारे में पता चला, वह भी उसे फिर से उसी मिठाई की दुकान पर लेकर गई और सबके सामने डांटा। इस बात से 13 साल का लड़का इस कदर आहत हो गया कि घर लौटते ही उसने कीटनाशक पीकर आत्महत्या करने की कोशिश की। गंभीर हालत में उसे तुरंत तामलुक मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई। पुलिस का कहना है कि बच्चे के कमरे से एक सुसाइड नोट बरामद किया गया है। इसमें कृष्णोंदु ने आत्महत्या करने से पहले अपनी नोटबुक में लिखा है कि मां मैंने कुरकुरे नहीं चुराए। मुझे वो सड़क पर पड़े मिले थे। मैंने चोरी नहीं की है।
पीड़ित परिवार का आरोप है कि मिठाई दुकानदार के बर्ताव की वजह से बच्चा ऐसा खौफनाक कदम उठाने को मजबूर हो गया। तब से दुकान मालिक फरार है। परिवार इस बात को भी मान रहा है कि मां के सार्वजनिक रूप से डांटे जाने का भी बच्चे के मन पर गहरा असर हुआ। मां की डांट से बच्चा बहुत दुखी था। यह डांट उसके मन में घर कर गई। वह इस तरह के व्यवहार को सहन नहीं कर सका।
असल में यह घटना उन मां-बाप के लिए किसी सबक से कम नहीं है, जो बात-बात पर सबके सामने अपने बच्चों को बुरी तरह डांट देते हैं, क्योंकि उम्र के इस पड़ाव में बच्चे बहुत ही कोमल और संवेदनशील होते हैं। वह हर बात को अपनी बेइज्जती से जोड़ लेते हैं। कई बार वह ऐसा कदम उठा लेते हैं, जिसके बाद पछताने के अलावा कोई और रास्ता परिवार के पास भी नहीं होता, इसलिए माता-पिता को बच्चों के साथ पेश आने में बहुत ही सतर्कता बरतनी चाहिए। किसी भी बात पर उनको समझाएं, न कि सबके सामने उन्हें डांटें। अगर डांटना बहुत जरूरी है, तो अकेले में ही डांटें। सबके सामने ऐसा करने से बचें, ताकि उनको बेइज्जती महसूस न हो।
चाइल्ड एक्सपर्ट का कहना है कि आज के दौर में बच्चों की परवरिश करना बिल्कुल भी आसान नहीं है। उन्हें अच्छे या बुरे की अहमियत समझाना बहुत जरूरी है, लेकिन प्यार और अपनेपन के साथ। हर बात पर उन्हें डांटना या पीटना ठीक नहीं है। कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि माता-पिता बच्चों को नहीं डांटें तो वे मनमानी करते हैं और अगर डांटें तो बच्चे दिल पर ले लेते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि मां-बाप बच्चों को कैसे समझाएं, क्योंकि बच्चों का मन बहुत ही कोमल होता है। छोटी-छोटी बातों का उनके मन पर गहरा असर होता है। अगर सबके सामने उनको डांट दिया जाए, तो वे इसे अपनी बेइज्जती समझ लेते हैं। आहत होकर कई बार वह गलत कदम उठा लेते हैं।
असल में परिवार को अब इस बात को समझना होगा कि बदलते माहौल में बच्चों की परवरिश यदि उसके अनुसार न हो, तो उसके परिणाम गंभीर होते हैं। आमतौर पर कुछ बच्चे काफी सहज और सरल होते हैं, तो कुछ बेहद ही संवेदनशील। ऐसे में उनके स्वभाव के अनुसार ही उनकी देखभाल करने की जरूरत होती है। बच्चों की भावनाओं का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है। उनके कोमल मन को समझना भी बहुत जरूरी है। हर बात वह गलत हों, ऐसा जरूरी नहीं है। कई बार बच्चे सच बोल रहे होते हैं, तो भी उन्हें गलत मान लिया जाता है। परिवार को सही और गलत के निर्णय पर पहुंचने से पहले कई बार सोचना होगा। हर बात पर बाल मन का इस तरह तिरस्कार करना सही नहीं कहा जा सकता। हर बच्चे को कृष्णोंदु बनने से बचाना होगा।
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