मानसून का जल्दी आना : प्रभावित होगा देश

Last Updated 04 Jun 2025 12:49:37 PM IST

कहते हैं जब जेठ तपता है तो आषाढ़ बरसता है और सावन-भादों में झड़ी लगती है। इस साल जब नौतपा में भारत वर्ष को खूब गरम होना था, बरसात की ऐसी झड़ी लगी, जैसे सावन हो।


मौसम वैज्ञानिक विचार करते रहे कि यह मानसून-पूर्व बरसात है, लेकिन चुपके से कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल में मानसून की बदलियां जल्दी ही धमक गई। हमारे देश का अर्थ-तंत्र और सामाजिक तानाबाना मानसून पर निर्भर है। इस तरह जल्दी बरसात ने भले ही ताप के प्रभाव को कम कर दिया हो, लेकिन यदि जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह मानसून अनियमित होता रहा तो देश के समीकरण गड़बड़ा जाएंगे। 

इस साल केरल में मानसून 24 मई, 2025 को आ गया, जबकि सामान्य आगमन तिथि 1 जून है  उससे  8 दिन पहले। मुंबई और कर्नाटक में भी मानसून समय से काफी पहले आ गया है। मुंबई में मानसून की सामान्य आगमन तिथि 11 जून है, जबकि आ गया 26 मई को। कर्नाटक में 1-5 जून की सामान्य तिथि की तुलना में बादलों का डेरा  26 मई को आ गया। जलवायु परिवर्तन का गहरा असर भारत में अब दिखने लगा है, इसके साथ ही ठंड के दिनों में ‘अलनीनो’ और दीगर मौसम में ‘ला नीना’ का असर हमारे मानसून-तंत्र को प्रभावित कर रहा है। इस साल बहुत पहले और भयंकर बरसात का प्रमुख कारण समुद्री सतह के  तापमान SST) में वृद्धि माना जा रहा है। 

अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाने से मानसून जल्दी शुरू हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंंग के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे वायुमंडल में नमी बढ़ती है और बादल जल्दी बनते हैं। जैसे-जैसे पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता है, वातावरण में नमी की मात्रा भी बढ़ती है। अनुमान है कि प्रति डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर वातावरण में 6 से 8% नमी बढ़ जाती है। यह बढ़ी हुई नमी मानसून की हवाओं को तेजी से सक्रिय कर सकती है। वैिक तापमान बढ़ने के चलते  यूरेशिया और हिमालय में बर्फ का कम होना और तेजी से पिघलने ने भी जल्दी बरसात को बुलाया दिया है।

बर्फ की कमी से जमीन जल्दी गर्म हो जाती है, जिससे कम दबाव का क्षेत्र मजबूत होता है, जो मानसूनी हवाओं को अपनी ओर खींचता है और मानसून को जल्दी ला सकता है। जल्दी मानसून के कुछ वैिक कारक भी हैं। अल नीनो की तरह इनमें से एक मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन हिन्द महासागर में बादलों और बारिश को प्रभावित करने वाली एक वैिक मौसमी घटना है। इसके अनुकूल चरण (चरण-3 और चरण-4 की शुरु आती गतिविधि) मानसूनी हवाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना सकते हैं और मानसून को जल्दी ला सकते हैं। एक अन्य कारण वैिक कारक सोमाली जेट है। मॉरीशस और मेडागास्कर के पास से निकलने वाली एक प्रमुख निम्न-स्तरीय पवन धारा-मई 2025 में तीव्र हो गई। यह जेट अरब सागर के पार केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र सहित भारत के पश्चिमी तट पर नमी से भरी हवा पहुंचाता है। 

इस साल इसकी असामान्य ताकत मानवजनित प्रभावों के कारण प्रतीत होती है। इंडियन ओशन डायपोल (IOD) का पॉजिटिव होना भी एक बड़ा कारण है। यह अरब सागर में नमी के जमाव को बढ़ाता है, जिससे मानसूनी हवाएं तेज होती हैं और मानसून के जल्दी आने का कारण भी बन सकता है। अब जल्दी बरसात आने से माहनगरों की तैयारी अधूरी रही और चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहर डूब गए, लेकिन सबसे बड़ा संकट तो किसान का है। किसानी आज भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। किसानों को अक्सर मानसून के एक निश्चित समय पर आने की उम्मीद होती है। यदि यह जल्दी आ जाता है, तो वे खेत तैयार करने, बुवाई करने या सही फसल का चुनाव करने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं।

यदि बुवाई के बाद अचानक भारी बारिश होती है, तो कोमल पौधे (अंकुरित फसल) नष्ट हो सकते हैं या मिट्टी की ऊपरी परत कठोर हो सकती है, जिससे पौधों के बढ़ने में बाधा आती है। अगर कोई फसल पहले से ही पक चुकी है या कटाई के करीब है और मानसून जल्दी आ जाता है, तो भारी बारिश से फसलें खराब हो सकती हैं, उनमें फंगस लग सकता है या वे खेत में ही सड़ सकती हैं। कुछ फसल को एक निश्चित शुष्क अवधि की आवश्यकता होती है, और जल्दी मानसून से उनका सामान्य फसल चक्र बाधित हो सकता है। 

महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में पिछले कुछ दिनों से जारी बारिश ने बड़े पैमाने पर फसलों को प्रभावित किया है। राज्य में समय से पहले मानसून के सक्रिय होने से किसानों की चिंताएं और बढ़ गई है। आम, अनार, नींबू जैसी बागवानी फसलों के साथ साथ बाजरा, मक्का की फसल भी प्रभावित हुई है। बारिश की सबसे ज्यादा मार प्याज किसानों पर पड़ी है। इसके अलावा सोयाबीन और उड़द एवं मूंग जैसी फसलों के प्रभावित होने की भी आशंका जताई जा रही है। मई महीने में हो रही बारिश के कारण 29,483 हेक्टेयर फसल, खासतौर पर आम, अनार, संतरा, मीठा नींबू और सब्जियों जैसी बागवानी फसल को नुकसान पहुंचा है। नासिक में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। भारी बारिश के कारण बागवानी के आलावा बाजरा, मक्का, जैसी फसल को भी नुकसान पहुंचा है। किसानों को इस बारिश ने परेशान कर दिया है, खासकर मराठवाड़ा और विदर्भ के ऐसे किसान जो आगामी खरीफ सीजन के लिए अपने खेतों को तैयार करने में जुटे थे। किसानों के मुताबिक सोयाबीन के लिए जुताई और कतार बनाने के मामले में खेत की तैयारी अभी पूरी नहीं हुई है। 

बारिश ने काम रोक दिया है। बुवाई का काम खेत में पर्याप्त नमी होने के बाद भी शुरू होता है। मूंग और उड़द जैसी फसलों के लिए बुवाई का समय कम होता है, जबकि कपास और सोयाबीन जैसी फसल के लिए यह समय लंबा होता है। किसानों को चिंता है कि कहीं यह बारिश बुवाई के दौरान मुश्किल न बन जाए। सामान्य मानसून से किसी भी प्रकार का विचलन, चाहे वह जल्दी हो या देर से, दूरगामी परिणाम पैदा कर सकता है, जिसका असर कृषि, ग्रामीण आजीविका, समग्र अर्थव्यवस्था और यहां तक कि सामाजिक स्थिरता पर भी पड़ सकता है। जल्दी मानसून का आना मौसम के पैटर्न में एक व्यवधान का संकेत हो सकता है, जो कृषि से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे तक कई क्षेत्रों में अनपेक्षित और नकारात्मक परिणाम पैदा कर सकता है।
 (लेख में विचार निजी है)

पंकज चतुर्वेदी


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