संघर्ष विराम : किसका पलड़ा रहा भारी

Last Updated 24 May 2025 03:01:00 PM IST

ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत जिस प्रकार भारत के डिफेंस सिस्टम के सामने चीन की मिसाइल और तुर्किए के ड्रोन बेहद बौने और फेल साबित हुए, ठीक वैसी ही स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भी देखने को मिली।


भारत के इस अभियान के दौरान ट्रंप काफी सक्रिय दिखे और उन्होंने अपनी चौधराहट दिखाने के लिए ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तर्ज पर जहां अपनी ओर से सबसे पहले सोशल मीडिया के जरिए भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की घोषणा की सूचना दी, वहीं एक कदम और आगे बढ़ते हुए उनका कहना था ‘हमने भारत-पाक संघर्ष को रोकने में बहुत मदद की। मैंने दोनों देशों से कहा कि अगर आप संघर्ष रोकते हैं तो हम व्यापार करेंगे, नहीं तो कुछ नहीं।’ और फिर अचानक कहा, ‘ठीक है, हम रु कते हैं, और वे रुक गए।’

यह वक्तव्य था ट्रंप का जबकि यह सत्य से बिल्कुल परे था और ट्रंप द्वारा संघर्ष विराम का श्रेय लेने, व्यापार संबंधित धमकी एवं कश्मीर की मध्यस्थता से जुड़े बयान को भारतीय विदेश मंत्रालय ने पूरी तरह से खारिज कर दिया था। कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ तौर पर कह दिया है कि पाकिस्तान के साथ सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दे पर ही चर्चा होगी और न्यूक्लियर ब्लेकमेल बर्दाश्त नहीं होगा, वहीं पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हुए यह भी कहा है कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते। व्यापार और आंतकवाद एक साथ नहीं चल सकते।

बाद में ट्रंप ने अपने सुर बदलते हुए कहा, ‘मैं यह नहीं कहना चाहता कि मैंने ही यह किया, लेकिन मैंने जरूर पाकिस्तान और भारत के बीच समस्या सुलझाने में मदद की।’ जबकि अमेरिका की छीछालेदर तो स्वयं पाकिस्तान ने उस समय कर दी थी जबट्रंप के संघर्ष विराम की घोषणा के तीन घंटे के भीतर ही पाकिस्तान ने चीन के उकसावे पर संघर्ष विराम का उल्लंघन किया और अमेरिका को वि समुदाय के समक्ष मुंह की खानी पड़ी। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी होगा कि पहलगाम में पाकिस्तान की इस घिनौनी हरकत के बावजूद उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मिलने वाले कुल 2.3 बिलियन डॉलर कर्ज में भी अमेरिका की भूमिका अप्रत्यक्ष रूप से काफी महत्त्वपूर्ण रही है।

इसका कारण यह है कि अमेरिका आईएमएफ का सबसे बड़ा शेयरधारक (स्टेकहोल्डर) है, और उसके पास आईएमएफ के निर्णयों पर प्रभाव डालने की क्षमता है, जबकि भारत ने इसका पुरजोर विरोध किया था। असल में पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से जो रौद्र रूप अपनाया उसकी पाकिस्तान को कल्पना तक नहीं थी। भारतीय जल, थल और नभ, तीनों सेनाओं के रणबांकुरों ने युद्ध में जो पराक्रम दिखाया, उससे पाकिस्तान को काफी नुकसान हुआ। भारतीय हमले की जद में पाकिस्तान का परमाणु जखीरा भी आ गया जिस पर पाकिस्तान को नाज था और भारत को बार-बार गीदड़भभकी देता था। इससे घबराया पाकिस्तान अमेरिका की शरण में जाकर सीजफायर करवाने के लिए गिड़िगड़ाया और उसके बाद उसके सैन्य अभियान महानिदेशक ने भारत से संपर्क साधा।  

चीन और तुर्किए ने भी पाकिस्तान की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने में सहयोग का आासन देकर उसके प्रति अपनी एकजुटता प्रदर्शित की, लेकिन चीन ने पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई किए जाने का खंडन किया, जबकि स्टॉकहोम इंटरनेशल पीस रिसर्च (सिपरी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान ने 2020-24 तक चीन के हथियारों की खरीद का 81 प्रतिशत हासिल किया है। असल में चीन को अब अपने हथियारों की गुणवत्ता और उन्हें निर्यात करने में आने वाली परेशानी का पता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से चीन भी निश्चित तौर पर आतंकित होगा क्योंकि पहले ही पूर्वी लद्दाख की घटना में भी उसने भारत की सैन्य शक्ति को देख लिया था और 4 साल से अधिक समय तक चले सैन्य गतिरोध के बाद उसे पीछे हटना पड़ा था। 

जहां तक तुर्किए का संबंध है, तो यह वही तुर्किए है जहां फरवरी, 2023 में आए तीव्र भूकंप के बाद जिस तरीके से भारत की ओर से ‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत भारतीय सेना ने आपदा के 12 घंटे के भीतर राहत सामग्री के साथ अपने बचाव दल तैयार कर वहां भेजे थे। इसलिए हम इसे तुर्किए की एहसानफरामोशी की इंतिहा नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे। फिलहाल, भारत ने तुर्किए की ग्राउंड हैंडलिंग फर्म सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की सुरक्षा मंजूरी तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी है। देश के विभिन्न संस्थान राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तुर्किए के साथ अपने अनुबंधों को समाप्त कर रहे हैं। गौरतलब है कि सेलेबी एविएशन दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद और गोवा सहित नौ शहरों के हवाई अड्डों पर यात्री सुरक्षा, उड़ान संचालन, कार्गो और डाक सेवाओं के साथ-साथ वेयरहाउस सेवाओं का प्रबंधन प्रदान करती है।

फिलहाल, भारत और पाकिस्तान के सैन्य अभियान महानिदेशकों (डीजीएमओ) ने औपचारिक रूप से 10 मई, 2025 को संघर्ष विराम पर परस्पर सहमति जता दी है। असल में यहां तक नौबत ही नहीं आती यदि पाकिस्तान में सुबुद्धि होती। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने जब स्पष्ट कर दिया था कि उसका मकसद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाना था न कि पाकिस्तान या उसकी जनता को, लेकिन पाक ने उसे अपने ऊपर हमला मान लिया।

प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार वे मानते हैं कि यह युग युद्ध का नहीं है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि यह युग आतंकवाद का भी नहीं है। इसलिए ऐसे आतंकवादियों का सफाया करना बहुत जरूरी है। अब देखना होगा कि वि विशेषकर संयुक्त राष्ट्र कहां तक इस पर अमल करता है। अभी भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1267 के अनुपालन के लिए सुरक्षा परिषद की समिति की निगरानी टीम और अन्य भागीदार देशों के साथ बातचीत कर रहा है। इसका उद्देश्य आधिकारिक तौर पर ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ को आतंकी गुट के रूप में सूचीबद्ध कराना और इस गुट को पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन से वि समुदाय को परिचित कराना है।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

गिरीश पांडे


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