पर्यावरण चिंतन : आधुनिकता की आग में जलते शहर
उत्तर भारत में इस दिनों मौसम की मार ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। पिछले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में पारा रिकॉर्ड तोड़ स्तर तक पहुंच चुका है।
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भारतीय मौसम विभाग के अनुसार बांदा, प्रयागराज, चुरू, श्रीगंगानगर, फिरोजाबाद और आगरा में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। राजधानी दिल्ली के कुछ इलाकों में तो ‘फील्स लाइक’ तापमान 50 डिग्री तक महसूस किया गया है। यह स्थिति केवल मौसम का असामान्य रूप नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन की चेतावनी है, जो अब भारत के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को गहराई से प्रभावित कर रही है।
दिल्ली स्थित जलवायु एवं ऊर्जा नीति संस्थान ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट ‘हाउ एक्सट्रीम हीट इज इंपैक्टिंग इंडिया’ के नवीनतम आंकड़ों ने भारत में ताप संकट की भयावहता को रेखांकित किया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 57 प्रतिशत जिले, जहां देश की लगभग 76 प्रतिशत आबादी निवास करती है, अब ‘उच्च’ से ‘बहुत उच्च’ ताप जोखिम वाली श्रेणियों में आ चुके हैं। 734 जिलों के 40 वर्षो के जलवायु और सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के आधार पर तैयार किए गए इस अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि 417 जिले अब स्थायी रूप से उच्च ताप संकट में हैं।
रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो भारत 2030 तक लगभग 3.5 करोड़ पूर्णकालिक रोजगार खो सकता है और जीडीपी में 4.5 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। पिछले वर्ष 1 मार्च से 18 जून के बीच हीटस्ट्रोक के 40 हजार से अधिक मामले सामने आए थे और 110 से अधिक मौतें दर्ज हुई थी। उत्तर भारत में वर्तमान में हीटवेव की स्थिति ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के पिलानी, गंगानगर और चुरू में तापमान 47 डिग्री से ऊपर पहुंच चुका है, वहीं उत्तर प्रदेश के प्रयागराज और बांदा में भी तापमान 46 डिग्री से ज्यादा दर्ज किया जा चुका है। दिल्ली में भी तापमान 44 डिग्री को पार कर गया है। यह स्थिति अब केवल दिन की गर्मी तक सीमित नहीं रह गई है बल्कि विभिन्न रिपोटरे से स्पष्ट होता है कि रात के तापमान में भी खतरनाक वृद्धि हो रही है।
पिछले एक दशक में देश के प्रमुख शहरों में बहुत गर्म रातों की संख्या तेजी से बढ़ी है। मुंबई में हर वर्ष औसतन 15, बेंगलुरु में 11, भोपाल और जयपुर में 7-7, दिल्ली में 6 और चेन्नई में 4 अतिरिक्त गर्म रातें दर्ज की गई हैं। यह परिघटना इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि जब रात में शरीर को ठंडा होने का मौका नहीं मिलता तो गर्मी से संबंधित बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। शहरीकरण की बेतहाशा गति और हरे क्षेत्रों में कटौती ने ‘अर्बन हीट आइलैंड इफैक्ट’ को बढ़ावा दिया है, जिससे महानगरों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है।
सीईईडब्ल्यू का लक्ष्य है कि वर्ष 2027 तक 300 से अधिक जिलों में स्थानीय हीट एक्शन प्लान तैयार किए जाएं। इन योजनाओं में ‘प्री-अलर्ट सिस्टम’, ‘हीट इंश्योरेंस’, ‘वर्किंग ऑवर मॉडिफिकेशन’ जैसे प्रावधान भी जोड़े जाने चाहिए। बहरहाल, जलवायु परिवर्तन की चुनौती अब केवल पर्यावरणीय नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट का रूप ले चुकी है। अत्यधिक तापमान से बच्चों की पढ़ाई, महिलाओं का स्वास्थ्य, श्रमिकों की उत्पादकता और सामान्य जन की जीवन गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। गरीब परिवारों के पास न तो पंखे हैं, न कूलर और न ही पर्याप्त पानी, जिससे वे गर्मी में काम करने पर विवश हैं और अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह स्पष्ट है कि भारत को जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए हर स्तर पर ठोस रणनीति अपनानी होगी। ऊर्जा नीति में बदलाव, सार्वजनिक परिवहन का विस्तार, प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण, शहरी नियोजन में हरियाली का विस्तार और कमजोर वगरे के लिए शीतलन तकनीकों की सब्सिडी जैसे कदम अनिवार्य हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को जलवायु न्याय के लिए सशक्त स्वर में अपनी बात रखनी होगी ताकि विकासशील देशों को जलवायु संकट से निपटने के लिए आवश्यक वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्राप्त हो सके। ताप संकट की भयावहता एक स्पष्ट चेतावनी है कि अब अनदेखी का समय समाप्त हो चुका है।
जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की नहीं, वर्तमान की सच्चाई है और इससे लड़ने के लिए वैज्ञानिक, सामाजिक और नीतिगत स्तर पर समन्वित और ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। यदि हम अभी भी नहीं चेते तो आने वाले वर्षो में गर्मी का यह संकट न केवल बढ़ेगा बल्कि मानव अस्तित्व पर ही संकट गहराता जाएगा।
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