सामयिक : आतंक का खात्मा जरूरी
दु़निया में सबसे विकट, गंभीर और बर्बरता का पर्याय आतंकवाद वर्षो से मानवता का विध्वंसक बना हुआ है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर इससे अत्यंत गंभीर समस्याएं पैदा हुई हैं।
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अमेरिका, अफ्रीका, रूस, फ्रांस, जर्मन, जापान जैसे विकसित देश तो आतंक की बर्बर हिंसक गतिविधियों से पीड़ित हैं ही, तकरीबन सभी एशियाई मुल्क, जिनमें भारत सबसे ज्यादा प्रभावित है, भी इससे त्रस्त हैं।
भारत आंतरिक और विदेशी (बाह्य) आतंकवाद, दोनों से गंभीर रूप से पीड़ित है। भारत में आतंकवाद के कई कारण और रूप हैं, जिनमें राजनीतिक कारण सबसे अहम है, जिसमें अलगाववादी आंदोलन, जातीय संघषर्, सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव और पड़ोसी देश द्वारा सीमा से आतंकवादियों की घुसपैठ करा कर आतंकवाद फैलाना शामिल हैं। धर्म या मजहब के नाम पर भी कट्टरपंथी सोच और हिंसा भी आतंकवाद का महत्त्वपूर्ण कारण है। वैचारिक मतभेद, हिंसा द्वारा विचारधारा को फैलाने के हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल आम है। सामाजिक-आर्थिक असमानता भी आतंकवाद की वजह रही है जैसे नक्सलबाड़ी से जन्मा वामपंथी नक्सलवाद जो बाद में हथियारबंद तथाकथित आंदोलन बन गया।
पिछले चार दशकों से भारत में अनेक दुर्दात आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। ग्यारह राज्यों में दशकों से वामपंथी नक्सलवाद हिंसक गतिविधियां चलाता रहा है, जिसमें हजारों लोग और पुलिस बल (सेना के जवान भी) शिकार हुए हैं। सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देने वाले और धर्म व मजहब के नाम पर हिंसा करने वाले अपनी बात जबरन मनवाने वाले संगठन भारत में अराजकता फैलाने का काम करते रहे हैं। कुछ राज्यों में आतंकवाद की वजह से उद्योग, पर्यटन और दूसरे तमाम क्षेत्रों में रोजगार में कमी आई है। इससे शासन और सरकार की स्थिरता पर भी गहरा असर रहा है साथ में, देश भर में अराजकता का माहौल पैदा करने की इनकी कोशिश जगजाहिर है।
यह देशों के बीच संघर्ष और तनाव पैदा करने का काम भी करता है। भारत में 2014 के पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल की सीमा से आतंकवादी घुसपैठ करते थे और बड़े पैमाने पर भारत में तकरीबन सभी राज्यों में बम विस्फोट और हिंसा की बर्बर घटनाएं आये दिन होती थीं, जिससे बड़ी तादाद में जान-माल का नुकसान होता था। कहना न होगा कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद कानून व्यवस्था हर तरह से चाक-चौबंद की गई और आतंकवादी घटनाओं पर कुछ ही महीने में काबू पा लिया गया लेकिन जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवादियों की घुसपैठ पूरी तरह खत्म नहीं हुई। इसी दौरान धारा 370 खत्म की गई और जम्मू-कश्मीर को पुनर्गठित कर तीन केंद्रशासित प्रदेशों कश्मीर, जम्मू और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया।
केंद्र सरकार के पिछले दस वर्ष आजादी के इतिहास में कई विकट समस्याओं के समाधान करने वाले रहे हैं। यह सरकार की नीतियों में आमूलचूल बदलाव से ही संभव हुआ है। विदेश नीति के मामले निर्गुट नीति की जगह ‘सर्वगुट’ नीति को अपनाया गया। गौरतलब है कि 1947 से 2013 तक भारत की विदेश नीति निर्गुट, समझौतावादी और हिंसा का जवाब अहिंसा से देने की रही। यही वजह है कि पिछले चार दशकों से अधिक समय से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और घुसपैठ की घटनाएं भारत में लगातार जारी रहीं। पानी की तरह पैसा बहा कर भी धारा 370 के लागू रहने की वजह से केंद्र का यहां सीमित हस्तक्षेप था, जिसकी वजह से आतंकवाद लगातार फूलता-फलता रहा। जाहिर तौर पर पिछले कई दशकों से आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गया है। यूं तो भारत में आतंकवादी गतिविधियां 50 के दशक में ही बड़े पैमाने पर चालू हो गई थीं। विश्व भर में 1950 के दशक में हुए वामपंथ के उत्थान के बाद आतंकवादी गतिविधियां दुनिया के तमाम मुल्कों में देखी जाने लगी थीं जिनकी जद में यूरोप, अमेरिका, जापान, जर्मनी और भारत जैसे अनेक देश आए लेकिन भारत में आतंकवाद सबसे ज्यादा गंभीर, मुखर और बर्बर गतिविधियों के एक विस्तृत स्वरूप में जारी रहा है।
इसलिए 1967 में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, बनाया गया। बाद में इस अधिनियम को संशोधित किया गया जिसमें संघीय सरकार को संगठनों और व्यक्तियों को ‘आतंकवादी के रूप में नामित करने की शक्ति मिली है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (एनएसए) भी अत्यंत कारगर है जिसमें अधिनियम अधिकारियों को आतंकवादियों से ताल्लुक रखने वाले गुटों के सदस्यों को बिना किसी प्रदर्शन के घोषित अवधि के लिए हिरासत में रखने की अनुमति देता है। फिर पोटा कानून बनाया गया लेकिन 2002 में इसे निरस्त कर दिया गया। आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) 1985 में लागू किया गया जिसे 1995 में निरस्त कर दिया गया।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों का भी इस्तेमाल किया जाता है। आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में आर्म्स एक्ट लागू है, जो आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल होने वाले हथियारों के संबंध में लागू किया जाता है। इसी क्रम में विस्फोटक अधिनियम कानून भी लागू है, जो विस्फोटक चीजों के इस्तेमाल से संबंधित मामलों से ताल्लुक रखता है। कुछ राज्यों ने आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए कानून बनाए हैं, जिनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं, जिनके जरिए आतंकवाद को रोकने का कार्य किया जाता है। आतंकवाद मानवता विरोधी, कानून विरोधी, समाज विरोधी, धर्म विरोधी (मानव मूल्यों के क्षरण) बर्बर गतिविधियों की पहचान के साथ दुनिया भर में जारी है।
दुनिया में आतंकवाद जिस तेजी से बढ़ा है, और हजारों आतंकवादी संगठन और गुट इसमें लिप्त हैं, ऐसे हालात में भारत के सामने आतंकवाद खत्म करने की बहुत बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को दुनिया के उन सभी देशों को स्वीकार करने की जरूरत है, जो आतंकवाद के खतरे से कई तरह से पीड़ित हैं। देखना यह होगा कि भारत के सामने आतंकवाद की जो चुनौती है, उससे पार पाने में दुनिया के कौन-कौन से देश खुल कर भारत का साथ देते हैं।
(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)
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