थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बृहस्पतिवार को अरुणाचल प्रदेश के लिकाबाली स्थित एक ड्रोन केंद्र का दौरा किया और ड्रोन क्षमताओं के इस्तेमाल और संचालन पर सेना की ओर से जोर दिए जाने की बात को रेखांकित किया। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।

|
थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने एक बयान में कहा कि सेना ड्रोन और ड्रोन-रोधी प्रणालियों को तेजी से शामिल कर रही है। अधिकारी ने कहा, ‘‘सेनाध्यक्ष ने अरुणाचल प्रदेश के लिकाबाली स्थित एक ऐसे ही केंद्र का दौरा किया और ड्रोन क्षमताओं के इस्तेमाल पर भारतीय सेना के जोर दिये जाने को रेखांकित किया।’’
द्रास में 26 जुलाई को 26वें कारगिल विजय दिवस पर अपने भाषण के दौरान सेना प्रमुख ने घोषणा की थी कि प्रत्येक पैदल सेना बटालियन में एक ड्रोन प्लाटून होगी, तोपखाना रेजिमेंट ड्रोन-रोधी प्रणालियों और लोइटर हथियारों से लैस होंगे तथा सटीकता और अस्तित्व रक्षा के लिए मिश्रित ‘दिव्यास्त्र’ बैटरी तैयार की जाएंगी।
जनरल द्विवेदी ने घोषणा की थी, ‘‘आने वाले दिनों में हमारी मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।’’ उन्होंने जोर देकर कहा था कि सेना एक आधुनिक और भविष्य के लिए तैयार सेना बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
बयान में कहा गया है कि कई इकाइयां पहले ही चालू हो चुकी हैं और ‘प्रमुख प्रशिक्षण अकादमियों में ड्रोन केंद्र स्थापित किए गए हैं’ जैसे कि देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी, महू स्थित इन्फैंटरी स्कूल और चेन्नई स्थित अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए)।
अधिकारी ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य सेना के सभी अंगों के सैनिकों के लिए ड्रोन संचालन को एक मानक क्षमता के रूप में स्थापित करना है।
उन्होंने कहा कि सेना का दृष्टिकोण ‘ईगल इन द आर्म’ की अवधारणा (यह विचार कि प्रत्येक सैनिक ड्रोन चलाने में सक्षम होना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे वह अपना हथियार रखता है) में समाहित है।
बयान में कहा गया है कि इकाई या सैनिक के कार्य के आधार पर, ड्रोन का इस्तेमाल युद्ध, निगरानी, रसद या यहां तक कि चिकित्सा आधार पर निकासी के लिए भी किया जाएगा।
इसमें कहा गया है कि ड्रोन-रोधी उपायों को भी समानांतर रूप से लागू किया जा रहा है और इसके तहत मानवरहित मंचों का दोहन करने और उन्हें बेअसर करने के लिए एक स्तरित प्रणाली तैयार की जा रही है।
यह दोहरा प्रयास, जिसमें सैनिकों को ड्रोन से लैस करना और ड्रोन-रोधी सुरक्षा को मज़बूत करना शामिल है, सेना की इस मान्यता को दर्शाता है कि मानवरहित प्रणालियां अब विशिष्ट नहीं बल्कि ‘युद्धक्षेत्र की आवश्यक तत्व’ हैं।
अधिकारी ने कहा कि प्रशिक्षण को संस्थागत बनाकर, इकाइयों को क्रियान्वित करके और बल संरचनाओं को संरेखित करके, सेना यह सुनिश्चित कर रही है कि ‘भविष्य का सैनिक’ न केवल एक हथियार, बल्कि एक बाज भी लेकर चलेगा। यह बाज एक ऐसा ड्रोन होगा जो युद्धक्षेत्र में उसकी दृष्टि, पहुंच और शक्ति का विस्तार करेगा।
माना जा रहा है कि मई में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सशस्त्र बलों द्वारा ड्रोन और ड्रोन-रोधी तनकीक का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। ऑपरेशन सिंदूर पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद शुरू किया गया था, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी।
| | |
 |