शोध व नवाचार : आर्थिक विकास की गारंटी
हाल ही में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा प्रकाशित वैश्विक नवाचार सूचकांक (जीआईआई) 2023 की रैंकिंग में 132 अर्थव्यवस्थाओं में भारत 40वें पायदान पर दिखाई दे रहा है।
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पिछले वर्ष जीआईआई रैंकिंग में भारत 40वें क्रम पर ही था। यद्यपि 10 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रकाशित विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2023 के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की विकास दर दुनिया में सबसे अधिक 6.3 फीसद रहेगी, लेकिन देश के बहुआयामी तेज विकास और 2027 में दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था तथा 2047 में विकसित देश बनने के ऊंचे लक्ष्य को पाने के लिए भारत में शोध एवं नवाचार पर और अधिक ध्यान दिया जाना जरूरी है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत में शोध और नवाचार पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। जहां वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत 2015 में 81वें स्थान पर था, वहीं अब भारत की रैंकिंग 40वीं है। खास बात यह भी है कि इस बार भारत 37 निम्न-मध्यम-आय समूह अर्थव्यवस्थाओं के बीच अग्रणी बनकर उभरा है। साथ ही भारत नवाचार के संबंध में मध्य और दक्षिणी एशिया की 10 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ऊपर है। इन सबके बावजूद अब देश की अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की रफ्तार तेजी से बढ़ाने के लिए देश में शोध व नवाचार के नए अध्याय लिखे जाने जरूरी हैं।
गौरतलब है कि शोध एवं नवाचार की दुनिया में भारत की रैंकिंग यह दर्शा रही है कि भारत इनोवेशन का हब बनता जा रहा है। भारत ने कारोबारी विशेषज्ञता, रचनात्मकता, राजनीतिक और संचालन से जुड़ी स्थिरता, सरकार की प्रभावशीलता जैसे विविध क्षेत्रों में अच्छे सुधार किए हैं। साथ ही भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था, घरेलू कारोबार में सरलता, विदेशी निवेश, जैसे मानकों में भी बड़ा सुधार दिखाई दिया है। भारत की शोध एवं नवाचार ऊंचाई में अपार ज्ञान पूंजी, स्टार्ट-अप और यूनिकॉर्न, पेटेंट वृद्धि, घरेलू उद्योग विविधकरण, हाइटेक विनिर्माण और सार्वजनिक और निजी अनुसंधान संगठनों द्वारा किए गए प्रभावी कार्यो के साथ-साथ अटल इनोवेशन मिशन ने भी अहम भूमिका निभाई है। यहां उल्लेखनीय है कि 25 सितम्बर को केंद्र सरकार ने फॉर्मा और मेडटेक सेक्टर (पीआरआई) में शोध व नवोन्मेष को प्रोत्साहन देने के लिए 5000 करोड़ रु पए की योजना शुरू की है। यह योजना भारत के फॉर्मा-मेडटक सेक्टर को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगी।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस समय जब दुनिया चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिवेश का सामना कर रही है, तब भी भारत शोध एवं नवाचार की मदद से तेज विकास दर के साथ आगे बढ़ रहा है, लेकिन अब हमें यह ध्यान रखना होगा कि इस समय जो भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, उसे वर्ष 2027 में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने और फिर 2047 तक विकसित देश बनाने के लिए शोध और विकास (आरएंडडी) की भूमिका अहम बनाना होगी। यदि हम आरएंडडी की दृष्टि से देखें तो आज भारत लगभग उसी मुकाम पर खड़ा है, जहां 60-70 वर्ष पहले अमेरिका था। यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिका ने आरएंडडी पर तेजी से अधिक खर्च बढ़ाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, दवाओं, अंतरिक्ष अन्वेषण, ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढकर दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का अध्याय लिखा है।
इस समय अमेरिका में आरएंडडी पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 2.8 प्रतिशत, चीन में करीब 2.1 फीसद इजराइल में 4.3 फीसद और दक्षिण कोरिया में करीब 4.5 फीसद व्यय किया जाता है। जहां दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आरएंडडी पर खर्च निरंतर तेजी से बढ़ा है। वहीं भारत में पिछले चार दशक से आरएंडडी पर व्यय करीब 0.6 से 0.7 प्रतिशत के बीच स्थिर दिखाई दे रहा है। जो ब्रिक्स देशों की तुलना में कम है और विश्व औसत 1.8 फीसद से भी कम है।
ऐसे में भारत को भी आर्थिक शक्ति और विकसित देश बनाने के लिए आरएंडडी की ऐसी सुविचारित रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, जिसके तहत सरकार, निजी क्षेत्र और शोध संस्थानों के बीच सहजीविता और समन्वय के सूत्र आगे बढ़ाए जा सकें। इसके साथ ही आरएंडडी में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ाई जानी होगी। इस समय देश में निजी क्षेत्र का आरएंडडी पर खर्च जीडीपी के मात्र 0.35 फीसद के स्तर पर है। यहां यह उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जिस नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना के विधेयक पर मुहर लगाई है, वह कानून बनने पर देश में शोध एवं नवाचार को क्रांतिकारी बदलाव के साथ नए स्वरूप में नई ऊंचाई देते हुए दिखाई दे सकेगा। इससे उच्च शिक्षा और तकनीकी शोध दोनों में बड़े बदलाव लाए जा सकेंगे। एनआरएफ से अनुसंधान उच्च शिक्षा संस्थाओं के साथ सामाजिक विज्ञान एवं मानिवकी क्षेत्र पर भी फोकस किया जा सकेगा। इससे छोटे वैज्ञानिक शोधों पर ध्यान केंद्रित हो सकेगा।
इससे हमारी उच्च शिक्षा पण्राली में काम कर रहे लाखों शिक्षाविदों और सार्वजनिक एवं निजी संस्थानों में काम कर रहे लाखों स्नातक एवं शोध करने वाले छात्रों को शोध एवं नवाचार के लिए मदद पहुंचाई जा सकेगी। साथ ही आरएंडडी की राशि को केवल सरकारी शोध प्रयोगशालाओं तक ही सीमित न करके बुनियादी शोध के लिए व्यापक आधार तैयार करने पर भी खर्च किया जा सकेगा। ऐसे में इन विभिन्न कामों में एनआरएफ के तहत दी जाने वाली संपूर्ण 50,000 करोड़ रु पए का सार्थक इस्तेमाल हो सकेगा। चूंकि नई प्रतिभाओं का एक पावर हाउस हमारे अग्रणी शैक्षणिक संस्थाओं में रहता है।
अतएव उम्मीद है कि एनआरएफ रणनीतिक रूप से काम करेगा और इससे हमारी नई शिक्षा पण्राली के तहत शोध व नवाचार गुणवत्ता में बड़ा सुधार हो सकेगा और वैज्ञानिक शोध से आवश्यक नतीजे भी सामने आ सकेंगे। हम उम्मीद करें कि सरकार दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह भारत में भी शोध एवं नवाचार पर जीडीपी की दो फीसद से अधिक धनराशि व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ेगी। इससे जहां ब्रांड इंडिया और मेड इन इंडिया की वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित की जा सकेगी, वहीं स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, कारोबार, ऊर्जा, शिक्षा, रक्षा, संचार, अंतरिक्ष सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगा।
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