चीनी उत्पाद : टूट नहीं पा रहा मोह

Last Updated 16 Oct 2023 01:19:39 PM IST

कूटनयिक संबंधों में चढ़ाव-उतार के बावजूद चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है। हालांकि भारत-चीन के संबंध छह दशकों से उतार-चढ़ाव वाले बने हुए हैं। अब फिर इनमें तनातनी है।


चीनी उत्पाद : टूट नहीं पा रहा मोह

कई विशेषज्ञों को आशंका है कि हालात धीरे-धीरे शीतयुद्ध की तरफ जा सकते हैं।

कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या तथा वहां छिड़े गैंगवार के बीच कनाडा के गलत वक्तव्यों के बाद भारत के कड़े प्रतिरोध और संयुक्त राष्ट्र तक में कनाडा को भारत के विदेश मंत्री के कड़े जवाब के दौरान चीन का भी नाम लेने से तो चीन बुरी तरह कौंधियाया हुआ है। हालांकि, इसकी संभावना कम है कि वह भारत से किसी तरह के युद्ध का खतरा मोल ले। वजह यह कि भारत चीनी वस्तुओं का बड़ा खरीददार है।

सूत्रों के अनुसार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था से हैरान हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ढाई-तीन साल पहले तक भारत चीन के बीच 8.4% की वृद्धि के साथ व्यापार 135.98 अरब डॉलर पहुंच गया था। 2023 की पहली छमाही के आंकड़े तो 162 अरब डॉलर से भी ऊपर जा चुके हैं। पिछले वर्ष 9 दिसम्बर को अरु णाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के यांग्त्से में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई। इससे पहले लद्दाख की गलवान घाटी में मई, 2020 हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों की मौत हो गई थी। उसके बाद तो मीडिया रिपोटरे में भारत-चीन के बीच जल्द युद्ध तक छिड़ जाने तक का ऐलान कर दिया गया था।

कुछ वर्षो से दोनों देशों के बीच एक के बाद तनाव की घटनाएं उभरती रही हैं। गलवान से पहले डोकलाम में करीब ढाई महीने तक दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ चुकी थीं। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में 2020 में गंभीर हालात बने ही थे, अप्रैल, 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध के बाद भारत ने चीन से स्पष्ट कहा था, ‘सीमा पर तनाव के साथ बाकी संबंध सामान्य नहीं रह सकते।’ इसके बाद चीन से निवेश में कमी आई क्योंकि मोदी सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगा दी थीं। लेकिन भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़े देखें तो पता लगता है कि गलवान के बाद भी चीन से आयात बढ़ता गया। ताजा आंकड़े भारत के लिए चिंताजनक कहे जा सकते हैं। भारत का व्यापार घाटा 2022 में 101.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया, जबकि 2021 में यह 69.38 अरब डॉलर था यानी हम आयात तो बढ़ाते जा रहे हैं किन्तु हमारा निर्यात तुलनात्मक लिहाज से कम है।

सवाल है कि क्या हमारे उत्पाद दूसरे देशों की तुलना में निम्नस्तरीय हैं, अथवा हम स्वयं चीन की चालों से अनजान तथा आम भारतीय चीन के सस्ते सामानों का मोह त्याग नहीं पा रहे हैं। बीजिंग में भारतीय दूतावास की वेबसाइट पर जारी बयान के अनुसार, इस सदी की शुरु आत में चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार ने नई ऊंचाई छूई और 2008 तक चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया था। 2015-21 के बीच भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार में करीब 75% इजाफा हुआ और वार्षिक विकास दर देखें तो व्यापार में औसतन हर साल 12.55% की वृद्धि दर्ज होती आई। चीन के कस्टम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में चीन के कुल निर्यात में 7% जबकि आयात में 1.1% की वृद्धि हुई।

पिछले साल चीन का ट्रेड सरप्लस 887.6 अरब डॉलर था और कुल निर्यात 3.95 ट्रिलियन डॉलर था। उल्लेखनीय है कि चीन ने एक समय (भारत का बिना नाम लिए) अमेरिका से कहा था-‘लोकतंत्र कोकाकोला नहीं है कि हर जगह एक ही स्वाद होगा।’ इसे मुख्यतया भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने और भारतीयों को लूटते रहने की उसकी घातक कुचाल ही कह सकते हैं किन्तु टिकाऊ और अच्छे की बजाय सस्ते सामानों के मोही आम भारतीय तथा अपनी दूकान किसी भी कीमत पर चलाते रहने को लालायित भारतीय व्यापारी कब व कैसे समझ सकेंगे?

भारत चीन में जारी व्यापार में असंतुलन के कारणों पर अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने किसी अवसर पर बताया था, ‘भारत चीन को कच्चा माल बेचने का काम करता है जबकि वहां से आयात में भारत ज्यादातर बने-बनाए प्रोडक्ट खरीदता है।’ वह कहते हैं, ‘चीन से भारत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी के अलावा कई तरह के केमिकल खरीदता है। ये केमिकल भारत की इंडस्ट्री के लिए बेहद अहम हैं।  इससे हमारे देश में दवाएं बनाई जाती हैं, लेकिन उनकी ओरिजिनल सामग्री चीन से ही आती है।’ दूसरी ओर भारत चीन को बड़े पैमाने पर कॉटन, आयरन एंड स्टील, फूल, अयस्क, स्लैग, राख और ऑर्गेनिक केमिकल बेचने का काम करता है। इन हालात में भारत को ऐसी टिकाऊ चीजें बनानी होंगी जो सस्ती हों ताकि सामान्य खरीददार उनको अपनाने के लिए प्रेरित हों।

डॉ. मत्स्येन्द्र प्रभाकर


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