बाली में ‘भारत विजय’

Last Updated 20 Nov 2022 08:32:46 AM IST

भारत इंडोनेशिया के बाली में अपनी विदेश नीति की बड़ी सफलता के साथ जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने जा रहा है, इसके तहत भारत 2023 में जी-20 शिखर वार्ता का आयोजन करेगा।


बाली में ‘भारत विजय’

देश में इस तरह का महत्त्वपूर्ण और व्यापक कूटनीतिक का आयोजन दशकों बाद होगा। भारत की अध्यक्षता में जी-20 से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन देश के विभिन्न नगरों में पूरे वर्ष चलेगा। इसका समापन संभवत: सितम्बर महीने में शिखर वार्ता के आयोजन के साथ ही पूरा होगा। बाली शिखर वार्ता में भारत की भूमिका को पूरी दुनिया में सराहा जा रहा है। शिखर वार्ता के बाद जारी संयुक्त घोषणापत्र में भारत की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कथन को केंद्रीय स्थान दिया गया है कि ‘वर्तमान युग युद्ध का नहीं है।’ अमेरिका सहित पश्चिमी देश और उनकी मीडिया इस बात का ढिंढोरा पीट रहे हैं कि जी-20 ने यूक्रेन पर आक्रमण करने की निंदा की। भारत के मीडिया में भी इस बात को दोहराया जा रहा है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। पश्चिमी देश सामान्य समझदारी का परिचय भी नहीं दे रहे हैं कि क्या रूस स्वयं अपनी निंदा करेगा? यूक्रेन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में तटस्थ रहने वाले भारत जैसे देश आखिर रूस की निंदा क्यों करेंगे?
वास्तव में संयुक्त घोषणापत्र के वाक्य और शब्दावली बहुत चतुराई पूर्ण हैं। सामान्य अनुमान है कि इसे तैयार करने में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने कूटनीतिक अनुभव का प्रयोग किया है। घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित उस प्रस्ताव का हवाला दिया गया है, जिसमें यूक्रेन युद्ध के लिए रूस की निंदा की गई थी, साथ ही रूस से आग्रह किया गया था कि वह यूक्रेन का भूभाग खाली करे। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित नहीं हुआ था। भारत सहित अनेक देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया था। इसलिए यह कहना भ्रामक है कि जी-20 शिखर वार्ता में रूस की निंदा की गई।

वास्तव में घोषणापत्र की अगली पंक्तियों में कहा गया है कि ‘अधिकतर देशों ने रूस की निंदा की।’ हालांकि यूक्रेन के घटनाक्रम के संबंध में कई देशों की अपनी अलग राय थी। विदेश मंत्री जयशंकर को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे घोषणापत्र को तैयार करने में भूमिका निभाई जिस पर रूस को भी ऐतराज नहीं था। अपनी इस कूटनीतिक सफलता को भारत आने वाले दिनों में भी दोहरा सकता है। भारत पश्चिमी देशों और रूस के बीच पुल का काम कर सकता है।
जाड़े के मौसम के कारण यूक्रेन में युद्ध के मैदान पर गतिरोध की स्थिति है। अगले दो-तीन महीनों तक कोई भी पक्ष बड़ा सैन्य अभियान चलाने की स्थिति में नहीं है। इस समय का उपयोग वार्ता प्रक्रिया को शुरू करने के लिए किया जा सकता है। यू्क्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की हठधर्मिंता के कारण वार्ता प्रक्रिया शुरू नहीं हो पा रही है। जेलेंस्की हकीकत को नजरअंदाज कर रहे हैं तथा अपने देश के लिए तबाही का कारण बन रहे हैं। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खेरसान नगर से रूसी सेनाओं को पीछे हटाने का फैसला कर अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह संकेत दिया है कि रूस का इरादा यूक्रेन पर कब्जा करना नहीं है। रूस केवल रूसी भाषाभाषी लोगों की जान माल की सुरक्षा करने के लिए डोनबास और अन्य क्षेत्रों को सुरक्षा कवच दे रहा है। क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने जनमत संग्रह के जरिए रूसी संघ में शामिल होने का फैसला किया है।
अमेरिका के सेना प्रमुख मार्क मिले ने हाल में यूक्रेन के घटनाक्रम का यथार्थपूर्ण विश्लेषण किया है। अमेरिकी जनरल के अनुसार यूक्रेन का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है तथा रूस के लिए यह संभव नहीं है कि वह पूरे देश पर कब्जा कर सके। यूक्रेन के लिए भी मुमकिन नहीं है कि वह डोनबास और अन्य क्षेत्रों को रूसी सेना से खाली करा सके। आश्चर्य की बात है कि पश्चिमी देशों के नेता और मीडिया अपने ही सैन्य अधिकारी के विश्लेषण को नजरअंदाज कर रहे हैं। यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति जारी है तथा रूस पर प्रतिबंध को सख्त बनाया जा रहा है। अमेरिका और पश्चिमी देशों का यह रवैया ही यूक्रेन की त्रासदी का मुख्य कारण है। समस्या यह है कि यूक्रेन युद्ध समाप्त भी हो जाए तो रूस के विरु द्ध प्रतिबंध जारी रहेंगे। भारत जैसे देशों के लिए सिरदर्द बना रहेगा। अमेरिका और पश्चिमी देश भारत और रूस के बीच कायम और निरंतर बढ़ रहे सहयोग को किस सीमा तक स्वीकार करते हैं, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

डॉ. दिलीप चौबे


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