विवाद : काश! राहुल कुछ सीख लेते अपनी दादी से
राहुल गांधी संसद के शीतकालीन सत्र में संसद भवन जाएं तो एक बार देख लें विनायक दामोदर सावरकर का वहां पर लगा चित्र।
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वे संसद भवन के स्टाफ से यह भी पूछ लें कि इस चित्र का अनावरण कब और किसने किया था। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में वीर सावरकर पर ओछी टिप्पणियां करके अपनी अज्ञानता और मंद बुद्धि का ही परिचय दिया है। हो सकता है कि उन्हें पता ही न हो कि वीर सावरकर का चित्र संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में लगा हुआ है, जहां तमाम सांसद रोज ही जाते हैं। वीर सावरकर के चित्र का 26 फरवरी, 2003 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने संसद भवन में अनावरण किया था। इसे चंद्रकला कुमार कदम ने बनाया था।
जब वीर सावरकर का चित्र लगाने की पहल हुई तब कांग्रेस ने यह कहकर विरोध किया था कि वे सांसद नहीं थे। इस पर कांग्रेस को जवाब दिया गया था कि लोकमान्य तिलक तथा महात्मा गांधी जैसे राजनीति और स्वाधीनता संग्राम में अहम योगदान देने वाले व्यक्ति भी तो सांसद नहीं थे। उनके त्याग और समर्पण को देखते हुए सेंट्रल हॉल में उनके चित्र स्थापित उन्हें सम्मान दिया गया। क्या राहुल गांधी को पता नहीं है कि संसद भवन में किसी असाधारण शख्सियत का ही चित्र लग सकता है?
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान विगत मंगलवार को राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में रैली की। उन्होंने कहा कि एक ओर बिरसा मुंडा जैसी महान शख्सियत हैं, जो अंग्रेजों के सामने झुकी नहीं और दूसरी ओर सावरकर हैं, जो अंग्रेजों से माफी मांग रहे थे। राहुल गांधी ने कहा, ‘भगवान बिरसा मुंडा जी 24 साल की आयु में शहीद हो गए। अंग्रेजों ने उन्हें जमीन देने की कोशिश की, धन देने की कोशिश की, उन्हें खरीदने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने सब नकार दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने लोगों को हक दिलवाना है।’ राहुल गांधी, उनके सलाहकार और समर्थक उन्हें संविधान से प्राप्त अभिव्यक्ति की आजादी के तहत कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं।
अपनी सियासी यात्रा में उन्होंने स्वातंत्र्यवीर सावरकर जी के संबंध में जो टिप्पणी की है, उसकी जरूरत क्या थी। काश! उन्होंने सावरकर के बारे में अपनी दादी एवं देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ही राय को जान लिया होता। इंदिरा जी जब भारत की सूचना एवं प्रसारण मंत्री थीं, तब उन्हीं के निर्देश पर और उन्हीं की देखरेख में सावरकर जी पर केंद्रित डाक्यूमेंट्री फिल्म उनके विभाग ने बनाई थी। इंदिरा जी के प्रधानमंत्री रहते हुए सावरकर की स्मृति या सम्मान में डाक टिकट जारी होने की जानकारी भी शायद इन लोगों को नहीं होगी। ऊपर से, इनको यह जानकारी क्यों नहीं है कि स्वयं इंदिरा गांधी ने अपने निजी खाते से सावरकर स्मृति कोष के लिए 11,000 रुपये का अंशदान किया था। जो बातें आज राहुल गांधी कहते हैं, वे इंदिरा जी को क्यों नहीं मालूम थीं, या राहुल गांधी अपनी पसंद का नया इतिहास ही जानने की जिद पर अड़े हैं।
आपको कोई पसंद नहीं तो ठीक है। आप सावरकर जी की तुलना बिरसा मुंडा से क्यों कर रहे हो। राहुल गांधी के साथ दिक्कत यह है कि उन्हें खुद भी नहीं पता होता कि वे क्या बोल रहे हैं। जो उनके सलाहकार उन्हें कह देते हैं, वे बोल देते हैं। राहुल गांधी को कायदे से इस समय देश के आम जन के सामने उपस्थित मसलों पर अपनी बात रखनी चाहिए। वे तो न जाने कहां जा रहे हैं। इस समय वैसे भी सावरकर जी पर टिप्पणी करने का क्या मतलब है पर राहुल को तो कुछ न कुछ बोलना है। क्या उन्हें पता नहीं है कि सावरकर जी को लेकर उनकी दादी किस तरह से सोच रखती थीं। अगर पता है तो इसका मतलब है कि वे अपनी दादी के विचारों को भी नहीं मानते। वे यह बात एक बार खुलकर देश को बता क्यों नहीं देते। अगर उन्हें यह नहीं पता है कि इंदिरा गांधी की सावरकर जी को लेकर किसी तरह की सकारात्मक राय थी, तब तो उनका भगवान ही मालिक है। राहुल के साथ दिक्कत यह भी है कि वे पढ़ने-लिखने की दुनिया से बहुत कोसों दूर हैं। जब कुछ बोलते हैं, तो समझ आ जाता है कि उनका उस विषय पर ज्ञान और समझ अधकचरी है। इसलिए उनके इटालियन ज्ञान पर अब लोगों को दया ही आती है।
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