मुद्दा : नाला बनतीं नदियों को मिलेगा पुनर्जीवन!

Last Updated 18 Apr 2022 12:08:33 AM IST

जब छोटी नदियां सूखने लगती हैं, तो बड़ी नदियों के प्रवाह में बाधा आती हैं। छोटी नदियां नाले में तब्दील होने लगती हैं, तो बड़ी नदियां प्रदूषित होने लगती हैं, और जब बड़ी नदियां प्रदूषित होने लगती हैं, तो जनजीवन प्रभावित होने लगता है, गंभीर पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो जाते हैं।


मुद्दा : नाला बनतीं नदियों को मिलेगा पुनर्जीवन!

दिल्ली में प्रदूषित यमुना नदी के बाद एक छोटी नदी है-साहिबी, जिसे दिल्ली के लोग लगभग भूल चुके हैं। उसे अब ‘नजफगढ़ के नाले’ के रूप में जाना जाता है। इसमें दिल्ली शहर का कचरा, मल-मूत्र और कल-कारखानों के उत्सर्जित पदार्थ बहाए जाते हैं। इसलिए इसे ‘गंदा नाला’ के नाम से भी हम बेहतर जानते हैं। यह तो एक उदाहरण है, सच्चाई है कि देश भर में कई ऐसी नदियां हैं, जो अपना अस्तित्व खोकर नाले का रूप ले चुकी हैं। काली सिंध नदी की भी यही कहानी है। हालांकि लोगों के संकल्प और अथक प्रयासों से काफी हद तक इसे पुनर्जीवित कर लिया गया है। मगर लंबे समय तक प्रशासन एवं लोगों की उपेक्षा की वजह से यह नदी अपना अस्तित्व खो चुकी थी।
काली सिंध मध्य प्रदेश की नदी है, जिसका उद्गम देवास जिले के बागली गांव से है। यह चंबल की सहायक नदी है, जो बागली से निकलकर शाहजहांपुर और राजगढ़ जिले से प्रवाहित होकर राजस्थान में प्रवेश करती है, और झालावाड़-कोटा से बहती हुई नोनहरा नामक जगह पर चंबल नदी में मिल जाती है। काली सिंध मध्य प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक है, जिसे लोगों ने लगभग गंदे नाले में तब्दील कर दिया था। दिल्ली में यमुना नदी का पानी भी काला हो गया है। कूड़े-कचरे के साथ इस नदी में ज्यादातर आपको गाद नजर आएगा। यूं समझिए कि वजीराबाद के एकतरफ यमुना का पानी साफ तो दूसरी तरफ एकदम काला पाएंगे। इससे पता चलता है कि किस नदी में किस कदर गंदगी बहाई जा रही है, या इसके प्रति हम सभी कितने जिम्मेदार हैं? जल आंदोलनों के प्रणोता राजेंद्र सिंह के मुताबिक यमुना नदी नहीं, बल्कि अब नाला है, जिसमें राजधानी शहर के कई नाले आकर मिलते हैं। यह नदी कचरा बहाने का आज मुख्य साधन बन गई है। प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक है कि इसमें जीव-जंतु भी प्रभावित होते हैं। इस पानी से फसलों की सिंचाई करना भी खतरनाक है। बहती जलधारा के अभाव में यह नदी दिल्ली से आगे जाकर मृतप्राय हो जाती है।

छोटी नदियां आज अभिशाप बन कर रह गई है। तेजी से बढ़ रहे उद्योग-धंधों ने इन्हें नाले में बदल दिया है। उत्तर प्रदेश की हिंडन और कई सहायक नदियां काली और कृष्णा हैं, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब आधे दर्जन जिलों से होकर बहती हैं। इनमें उद्योगों का प्रदूषित पानी छोड़ा जाता है, जिस वजह से ये नदियां किसी गंदे नाले से भी ज्यादा प्रदूषित हो गई हैं। बनारस में गंगा से जुड़ने वाली नदी है अस्सी, जो अब बरूणा नाला के रूप में बदल गई है। सवाल है कि क्या सचमुच दिल्ली की ‘साहिबी’ नदी को पुनर्जीवन मिल पाएगा। क्या इस नदी में फिर से कल-कल जलधारा बहने लगेगी, क्या इसमें जलीय जीवों की दुनिया वापस लौट सकेगी या क्या इसके बहाने दिल्लीवासियों को और पानी मिलेगा? जी हां, दिल्ली सरकार ने इस सपने को साकार करने के लिए 705 करोड़ रुपये की परियोजना तैयार की है, जिससे दिल्ली का सबसे गंदा नाला नदी में बदल जाएगा।  
कुछ दशकों के दौरान इस नदी की पहचान नजफगढ़ नाले के तौर पर हो गई है, जिसमें लोग न केवल कूड़ा-कचरा फेंकते हैं, बल्कि नाली व सीवर का गंदा पानी बहाते हैं। नजफगढ़ से आगे 57 किमी. के दायरे में जिन-जिन इलाकों से होकर यह गुजरता है, उनमें कई जगहों पर कल-कारखानों का कचरा और गंदगी भी बहाई जाती है। अब दिल्ली सरकार ने इस नदी को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य बनाया है। दिल्ली सरकार के प्रयासों से उसकी खोई हुई पहचान फिर से वापस मिल सकेगी। कहते हैं कि इस नदी को नाले में तब्दील करने में आम लोगों से ज्यादा विभागीय लचरता भी जिम्मेदार रही है। यहां कई बार नदी क्षेत्र की सीमाओं का अतिक्रमण किया गया। कई जगहों पर जल के प्रवाह को बाधित करने की कोशिश की गई। अब इस नदी को जिंदा करने के लिए ऐसी परियोजना तैयार की है जिससे इसे साफ कराने के साथ-साथ दोनों किनारों पर सुंदरीकरण व सड़क निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। नाले की सफाई कर रिवर फ्रंट के रूप में विकसित करने की योजना है। शॉपिंग, वोटिंग, मॉल, रेस्टोरेंट और अन्य आकषर्क व्यवस्था बनाई जाएंगी जो दिल्ली के अन्य इलाके से ज्यादा स्वच्छ व सुंदर होगा। 40-50 साल पहले से ही नाले में तब्दील हो चुकी साहिबी नदी अलवर से आकर नजफगढ़ होती हुई सीधे यमुना में समा जाती थी। दिल्ली देहात के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत थी। इसे पुरानी पहचान दिलाने की कोशिश सफल रही तो हमें कहना पड़ेगा कि नाला नहीं, बल्कि यह नदी है। यदि यह संभव हुआ तो दिल्ली सरकार की एक और अच्छी व ऐतिहासिक पहल कही जाएगी।

सुशील देव


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