सामयिक : विवेकाधीन शक्ति और पुलिस

Last Updated 17 Apr 2022 12:24:20 AM IST

हाल ही में लोक सभा में, आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022, जो वर्तमान में लागू ‘द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920’ का नया और संशोधित संस्करण है, को पारित किया गया है।


सामयिक : विवेकाधीन शक्ति और पुलिस

नये विधेयक में जहां कैदियों की पहचान को संरक्षित करने के लिए, तकनीक के उपलब्ध साधनों को समाहित करने का प्रयास किया गया है, वहीं व्यक्तिगत डाटा को किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सौंपने का प्रावधान भी किया गया है। हवलदार को ज्यादा अधिकार देने की अनुशंसा के साथ कैदी के डाटा को नष्ट करने के प्रावधान को कठिन बनाया गया है। हालांकि विधेयक के अधिकांश कानून अपराध को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन कुछ कानूनों के वर्तमान रूप से नकारात्मक प्रभाव की भी आशंका है।
नये एक्ट के तहत दोषियों और अन्य लोगों की उंगलियों के निशान, पैरों के निशान और तस्वीरों सहित माप लेने और रक्षित करने का प्रावधान था, प्रस्तावित दंड प्रक्रिया विधेयक 2022 उसी तर्ज पर कैदियों अथवा संदिग्धों के कई और नमूने लेने की अनुशंसा करता है। फिंगर प्रिंट, हथेली के निशान, पदचिह्न, फोटोग्राफ, आईरिस और रेटिना स्कैन, हस्ताक्षर, हस्तलेखन या आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53 और 53 ए में संदíभत किसी भी अन्य जांच सहित भौतिक और जैविक नमूने पुलिस अधिकारी अथवा न्यायालय के आदेश पर लिये जा सकेंगे। पुराने कानून के अनुसार जहां निम्नतम एक वर्ष या उससे ज्यादा की सजा के अपराधों में सजायाफ्ता या गिरफ्तार कैदियों का पहचान का नमूना लेने का प्रावधान था, वहीं अब नये कानून में निम्नतम सीमा को हटा दिया गया है। अगर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करता हुआ नागरिक भी गिरफ्तार या निरु द्ध किया जाता है, तो उसके साथ भी वही सलूक होगा, जो हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में गिरफ्तार अपराधियों के साथ किया जाता है। हालांकि जैविक नमूना महिलाओं और बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों में लिया जाएगा, जिसमें सात वर्ष या उससे ज्यादा के सजा का प्रावधान होता है। एक महत्त्वपूर्ण प्रस्तावित संशोधन यह है कि, पहले नाप और नमूना का आदेश अवर निरीक्षक या उसके ऊपर का अधिकारी दे सकता था, लेकिन अब हेड कांस्टेबल भी नाप और नमूने लेने का आदेश दे सकता है। पूर्व में निर्दोष साबित होने के बाद या न्यायालय द्वारा छोड़ दिये जाने के बाद पहचान के साक्ष्यों को या तो नष्ट कर दिया जाता था या फिर लौटा दिया जाता था, लेकिन नये कानून के अनुसार व्यक्ति के सारे उपलब्ध कानूनी निदानों के उपयोग के बाद निर्दोष साबित होने पर ही उसके पहचान के दस्तावेजों को लौटाया या नष्ट किया जाएगा। यही नहीं पहचान के नमूनों को किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी के साथ साझा करने का प्रावधान भी है।

इसका मतलब कोई भी आधिकारिक निकाय जैसे पंचायत, प्रखंड, यहां तक कि, यातायात सिपाही नागरिकों के निजी डाटा का उपयोग कर सकता है। जहां पूरे विश्व में निजी डाटा के गोपनीयता की बात चल रही है, वैसे में आम कैदियों के डाटा का सामान्य आदान प्रदान कदाचित उचित नहीं ठहराया जा सकता। साथ ही बिल्कुल मामूली अपराध अथवा नजरबंद किए गए कैदियों से अनावश्यक तौर पर पहचान के नमूने लेना और उसको 75 वर्ष तक संरक्षित करना तर्कसंगत नहीं  लगता। हालांकि सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे विकसित देशों में भी इसी तरह के कानून प्रचलन में है, जहां गिरफ्तार और निरुद्ध लोग जिनका अपराध साबित नहीं हुआ है, उनका भी पहचान नमूना लेने का प्रावधान है। मसलन; ब्रिटेन में गिरफ्तार व्यक्तिका जैविक नमूना जैसे अंगुली-चिह्न, तस्वीर, लार अथवा बालों की जड़ से डीएनए इत्यादि लेने का प्रावधान है। लॉस एंजिल्स काउंटी शेरिफ विभाग के 2022 मैनुअल में कहा गया है कि, चौदह वर्ष से अधिक उम्र के गिरफ्तार किए गए सभी व्यक्तियों का अंगुली-चिह्न लिया जाएगा, चाहे उनका अपराध छोटा हो या बड़ा।
विधेयक में प्रस्तावित कई कानून आजादी और निजता के मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं, अत: उनका पुनर्मूल्यांकन कर आवश्यक संशोधन करने के बाद ही व्यवहार में लाया जाना चाहिए। बेहतर होगा विवेकाधीन शक्ति पुलिस के बदले न्यायालयों के पास ही रहे।

प्रभात सिन्हा


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